नारा लगा कि आएगा तो मोदी ही और आए भी मोदी ही। तो क्यों आए मोदी ? जवाब साफ है कि ना तो राजनीति ईमानदार थी और ना ही वोटर। 2014 से 2019 के बीच देश पर विदेशी कर्ज का बोझ 49 फीसदी बढ़ा। मतलब कर्ज खाकर घी पीती रही मोदी सरकार और कर्ज का बोझ उठाने लगी देश की जनता। बावजूद इसके उसी जनता ने कहा कि आएगा तो मोदी ही और आए भी मोदी ही। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, रेल यात्रा समेत आम आदमी के लिए जरूरी हर चीज महंगी होती गई, आम आदमी की गाढ़ी कमाई जाती रही, बावजूद इसके आम आदमी ने कहा आएगा तो मोदी ही और आए भी मोदी ही।
बेरोजगारी के आंकड़े के मामले में पूरे देश को चुनाव से पहले अंधेरे में रखने वाली मोदी सरकार को उन बेरोजगारों ने भी वोट दिया जो मोदी सरकार की नीतियों की वजह से बेरोजगार रहे और अब नौकरी पाने की उम्र गवां चुके हैं। सर्वाधिक बेरोजगारी दर का रिकॉर्ड बनाने वाली मोदी सरकार ने प्रचंड बहुमत से वापसी की। नोटबंदी के दौरान देश के हर जिले में ज़मीन खरीदने वाली बीजेपी के पास इतना पैसा कहां से आया, न तो ये पूछने वाला कोई है और ना ही पूछने वाले को बताने वाला कोई है। दिल्ली में अरबों रुपयों का फाइव स्टार दफ्तर भी यूं नहीं खड़ा हो गया। जब कोर्ट ने पूछा कि वो बेनामी चंदा दाता कौन हैं और ये गुमनाम लोग पार्टी को अरबों रुपये चंदा क्यों देते हैं तो, इसी मोदी सरकार ने कहा कि इससे देश को क्या मतलब कि पार्टियों को चंदा क्यों और कहां से आता है।
मतलब न तो पार्टी ईमानदार दिखी और ना ही सरकार। राफेल मामले में बड़ी गड़बड़ी से कोई इनकार नहीं सकता। तो फिर आएगा तो मोदी ही और फिर आये भी मोदी ही क्यों ? क्या विकास ने कोई नया मानक गढ़ लिया ? सड़कें पहले भी बनती रहीं हैं, इंदिरा आवास योजना के तहत बेघरों को पहले भी घर मिलते रहे हैं और देश के 76 फीसदी गांवों तक बिजली भी 2014 से पहले ही पहुंच गई थी। तो फिर क्या उज्ज्वला ने कमाल दिखाया ? उज्ज्वला के जरिए तो गैस कनेक्शन बेचे गए। ये तो कंपनियों का माल बेचने की सरकारी योजना है। 85 फीसदी उज्ज्वला धारकों ने दोबारा गैस रिफिल नहीं करवाया क्योंकि उज्ज्वला के तहत मिले गैस पर कोई सब्सिडी नहीं है।
तो फिर बात शौचालय पर आकर टिकती है। लेकिन, फिर सवाल वही कि क्या शौचालय के जरिए प्रचंड बहुमत संभव है? जवाब सोचिएगा। कुछ लोगों का मानना है कि बालाकोट एयर स्ट्राइक ने रंग दिखाया। बालाकोट से पहले पुलवामा का होना इसी मोदी सरकार की नाकामी है। साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (satp.org) के मुताबिक, मनमोहन सिंह के UPA-2 की सरकार के आखिरी के चार वर्षों यानी 2010 से 2013 के दौरान कुल 2022 आतंकवादी मार गिराए गए थे, जबकि नरेंद्र मोदी के चार वर्षों के कार्यकाल में 1737 आतंकवादियों को ढेर किया जा सका है. मतलब चुपचाप मनोमोहन सिंह ने जो कर दिखाया वो चीखने वाले मोदी नहीं कर पाए।
मनमोहन सिंह के कार्यकाल के आखिरी चार वर्षों (2010-2013) के दौरान J&K में आतंकवादी हमलों में कुल 177 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि मोदी राज में जम्मू एवं कश्मीर में कुल 263 सैनिकों को अपनी शहादत देनी पड़ी. तो इस मामले में तो मनमोहन सिंह की सरकार मोदी से काफी बेहतर साबित होती है। और रही बात सेना को खुली छूट देने की तो 1971 में पाकिस्तान को दो टुकड़े करने वाली सेना के हाथ-पांव बंधे थे क्या? 90 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण करवाने वाली भारतीय सेना के हांथ-पांव बंधे थे क्या?
अपनी हर चुनावी रैली में गलत तथ्य पेश करने वाले नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा देश ये संदेश देता दिखा कि भारत झूठ का विश्वगुरु बनने को बेताब है। बावजूद इसके नारा लगा कि आएगा तो मोदी ही और आए भी मोदी ही। यही नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि है। नरेंद्र मोदी ने एक नेता के तौर पर आपके सोचने के तरीके बदल दिए। अब आप देश,समाज और खुद के लिए नहीं सोच रहे हैं। अब आप सिर्फ नरेंद्र मोदी के लिए सोच रहे हैं। अब आप महंगाई, भ्रष्टाचार, सैनिकों की शहादत, बेरोजगारी, विकास के लिए नहीं सोच रहे हैं। आप सिर्फ नरेंद्र मोदी के लिए सोच रहे हैं। यही एक नेता के तौर पर नरेंद्र मोदी की सफलता है।
लेखक असित नाथ तिवारी टीवी पत्रकार हैं.
rajesh bharti-dehradun
June 7, 2019 at 6:35 pm
शानदार लेख…एक-एक शब्द सच और भाजपा की दुष्ट राजनीती व देश के वोटरों की मूर्खता के छिलके उधेड़ता हुआ….देश पांच साल और देखेगा खुद को गर्त में जाते हुए.