कहते हैं न जब आदमी मर जाता है तब कुछ नहीं सोचता कुछ नहीं बोलता और जब कुछ नहीं सोचता कुछ नहीं बोलता तो मर जाता है आदमी। यकीनन अतृप्त इच्छाओं वाले शहर नोएडा में सोचने और बोलने की शुरुआत अच्छी लगी। लोकतंत्र के तीन स्तंभों के बड़े बड़े और जिम्मेदार लोग एक मंच पर एक साथ समाज की चिंता करते दिखे तो ऐसा लगा कि समष्टि भी कुछ सोच रही है, कुछ बोल रही है। 4 अप्रैल को नोएडा के सेक्टर छह स्थित इंदिरा गांधी कला केंद्र की दर्शक दीर्घा में जमे लोग शायद यह संदेश दे रहे थे कि वे सूरज को भी तराशने के लिए तैयार हैं।
नोएडा के सेक्टर छह स्थित इंदिरा गांधी कला केंद्र में ‘पुलिस और पत्रकार की समाज में भूमिका’ विषय पर गोष्ठी की एक झलक
शायद आप समझ गए होंगे कि मैं यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के तत्वावधान में ”पुलिस और पत्रकार की समाज में भूमिका” विषयक गोष्ठी और सम्मान समारोह की बात कर रहा हूं। समारोह की भव्यता से मैं अवश्य ही अभिभूत हुआ, लेकिन दिव्यता कहीं नजर नहीं आई। वक्ताओं ने कई विंदुओं पर वाजिब चिंता जताई, लेकिन पत्रकारिता और पत्रकार के मिट रहे अस्तित्व पर एक दो को छोड़ न तो किसी ने चिंता जताई और न ही कोई चिंतन किया। वरिष्ठ अधिवक्ता परमानंद पांडेय ने अवश्य यह साबित किया कि वह एक अच्छे अधिवक्ता ही नहीं बेबाक वक्ता भी हैं। उन्होंने कहा कि अब पत्रकार कहां रह गए हैं। जिन्हें पत्रकार होने का थोड़ा बहुत गुमान है, वे पत्रकार कहां हैं, वे तो लालाओं के नौकर भर हैं। असली पत्रकार होने का दावा तो अखबारों के मालिक करते हैं, जो पत्रकारिता की समस्त शक्तियों को समेट कर उन्हें अपनी मुनाफाखोरी का साधन बनाने में लगे हैं।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डॉक्टर प्रीतेंद्र सिंह की एक स्वर से सराहना किए जाने से ऐसा लगा कि वह वास्तव में अपनी जिम्मेवारी को ठीक से निभा रहे हैं। ऐसे पुलिस अधिकारी की सराहना करना हमारा दायित्व ही नहीं कर्तव्य भी बनता है। गोष्ठी में एक न्यायाधीश की उपस्थिति उसकी गंभीरता को अवश्य बढ़ा गई। वरिष्ठ टीवी पत्रकार अजीत अंजुम ने गोष्ठी के लिए अपने अमूल्य समय की शहादत दी। यह शायद एक शुभ संकेत है।
जिलाधिकारी महोदय ने पत्रकार की जो तात्विक विवेचना की, उससे पत्रकारों को सीख लेनी होगी। उन्होंने नारद को पहला पत्रकार बताया और कहा कि जब पत्रकार लक्ष्मी को पाने के लिए सक्रिय होता है तो उसका मुंह बंदर का हो जाता है। यह अलग बात है कि कई अखबार मालिक पत्रकार बन कर व्यवस्था से धन लूट रहे हैं और लक्ष्मी पर कब्जा जमाए बैठे हैं, लेकिन उनका मुंह बंदर का नहीं सिकंदर का बन गया है। उम्मीद है कि भविष्य में इस विषय पर अवश्य ही चिंतन मनन किया जाएगा।
श्रीकांत सिंह के फेसबुक वॉल से