एमपी में जिन लोगों ने भूखंड प्राप्त किए उनमें नवभारत, दैनिक जागरण, नईदुनिया और दैनिक स्वदेश के मालिक भी हैं!

अनिल जैन

Anil Jain : मध्य प्रदेश यानी ‘व्यापमं प्रदेश’ की सरकार ने पत्रकारों के नाम पर करीब तीन सौ लोगों को भोपाल में अत्यंत सस्ती दरों पर आवासीय भूखंड आबंटित किए है। सार्वजनिक हुई लाभार्थियों की सूची में सुपात्र भी हैं और वे कुपात्र भी जो बेशर्मी के साथ पत्रकारिता के नाम पर सत्ता की दलाली में लगे हुए हैं। बहरहाल, यह खबर कतई चौंकाती नहीं है बल्कि इस बात की तसदीक करती है मध्य प्रदेश में सत्ता और पत्रकारिता का आपराधिक गठजोड न सिर्फ कायम है बल्कि निरंतर फल-फूल रहा है।

इंडिया टीवी को तगड़ा झटका, एक्जिक्यूटिव एडिटर शुभाशीष मलिक का इस्तीफा

इंडिया टीवी को एक तगड़ा झटका लगा है। यहां कार्यरत बेहद प्रतिभाशाली और एक्जिक्यूटिव एडिटर के पद पर तैनात शुभाशीष मलिक ने संस्थान से इस्तीफा दे दिया है ।

जनरल साहब कारपोरेट मीडिया के मालिकों पर भी तो कुछ सचबयानी करिए !!

जनरल साहब आपने अगर मीडिया को #presstitude कहा तो अपने हिसाब से ठीक ही कहा होगा. हो सकता है इस बार खरीद बिक्री में कुछ कमी रह गयी होगी और सौदा नहीं पटा होगा जिसकी परिणति तल्खबयानी में हुई. 

पत्रकार बन कर लूट रहे अखबार मालिक, फिर भी ‘उनका मुंह बंदर का नहीं, सिकंदर का’

कहते हैं न जब आदमी मर जाता है तब कुछ नहीं सोचता कुछ नहीं बोलता और जब कुछ नहीं सोचता कुछ नहीं बोलता तो मर जाता है आदमी। यकीनन अतृप्‍त इच्‍छाओं वाले शहर नोएडा में सोचने और बोलने की शुरुआत अच्‍छी लगी। लोकतंत्र के तीन स्‍तंभों के बड़े बड़े और जिम्‍मेदार लोग एक मंच पर एक साथ समाज की चिंता करते दिखे तो ऐसा लगा कि समष्टि भी कुछ सोच रही है, कुछ बोल रही है। 4 अप्रैल को नोएडा के सेक्‍टर छह स्थित इंदिरा गांधी कला केंद्र की दर्शक दीर्घा में जमे लोग शायद यह संदेश दे रहे थे कि वे सूरज को भी तराशने के लिए तैयार हैं।

नोएडा के सेक्‍टर छह स्थित इंदिरा गांधी कला केंद्र में ‘पुलिस और पत्रकार की समाज में भूमिका’ विषय पर गोष्‍ठी की एक झलक

मीडिया मालिकों ने बंधुआ मजदूर बना रखा है पत्रकारों को

देश में आज सबसे ज्यादा अगर शोषित है तो वह पत्रकार है। चाहे पत्रकार अखबार से जुड़ा हो या टेलिविजन से । पता नहीं कितने लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने खून पसीने से अखबारी संस्थानों को सींच कर बड़ा किया लेकिन मुसीबत में वे उसे कोई मदद नहीं देते। अखबार -न्यूज़ चैनल के मालिकन जब चाहें, किसी को काम पर रख लेते हैं , जब चाहें उन्हें काम से निकाल देते हैं । इनके यहाँ इन न्यूज़ चैनल या अखबारों को टीआरपी दिलाने वाले, संवाददाता, रिपोर्टर या स्ट्रिंगर की कोई औकात नहीं। पत्रकार इनके लिए मात्र बंधुआ मजदूर से अधिक की हैसियत नहीं रखते। 

संजय गुप्‍ता प्रकरण : क्या मीडिया मालिकों का चुनावी कदाचार अपराध नहीं?

राजनैतिक पार्टियाें और अधिकारियों के खिलाफ कानून का डंडा फटकारने वाला चुनाव आयोग जब मीडिया के खिलाफ कार्रवाई करने का समय आता है तो बंगले झांकने लगता है। पेड न्‍यूज के मामले में तो गजब तर्क का सहारा ले रहा है।

रजत शर्मा और सुभाष चंद्रा : पत्रकार का मालिक और मालिक का पत्रकार होना

अखबारों और केबल की दुनिया में यह बात आम है, लेकिन सेटेलाइट चैनलों की दुनिया में इसे अजूबा ही कहा जाएगा कि मालिक पत्रकार की तरह बनना चाहे और मालिक पत्रकार की तरह। रजत शर्मा का करियर पत्रकार के रूप में शुरू हुआ और आज वे इंडिया टीवी के सर्वेसर्वा है। दूसरी तरफ सुभाष चंद्रा है जिन्होंने बहुुत छोटे से स्तर पर कारोबार शुरू किया और पैकेजिंग की दुनिया से टीवी की दुनिया में आए। रजत शर्मा कभी इनके चैनल पर कार्यक्रम प्रस्तुत किया करते थे। इतने बरसों में यह अंतर आया है कि रजत शर्मा सुभाष चंद्रा की तरह मालिक बन गए और सुभाष चंद्रा रजत शर्मा की तरह टीवी प्रेजेंटर बनने की कोशिश कर रहे है। चैनलों का मालिक होने का फायदा सुभाष चंद्रा को जरूर है, लेकिन इससे वे रजत शर्मा की बराबरी नहीं कर सकते।

शेखर गुप्ता अब अपनी मीडिया कंपनी शुरू करेंगे, अखबार से लेकर टीवी तक लांच करेंगे

दूसरों की नौकरियां करते करते उब चुके शेखर गुप्ता अब खुद की नौकरी करेंगे. यानि अपनी मीडिया कंपनी बनाएंगे. इस कंपनी के बैनर तले वह अखबार, वेबसाइट, चैनल सब लांच करेंगे. पता चला है कि शेखर गुप्ता ने अपनी खुद की मीडिया कंपनी वर्ष 2000 में ही बना ली थी लेकिन उसे लेकर बहुत सक्रिय नहीं थे क्योंकि उनका पूरा वक्त इंडियन एक्सप्रेस समूह की सेवा में जाता था. अब जब वह इंडियन एक्सप्रेस से लगाकर इंडिया टुडे तक से हटाए जा चुके हैं तो उनके पास अपनी कंपनी को देने के लिए वक्त खूब है.