जयदीप कर्णिक-
पत्रकारिता की यात्रा में कई तरह के अनुभव होते हैं। बहुत दिलचस्प भी और बहुत अलग भी। यही अनुभव पत्रकार कर्म के शिलालेख भी बनते चले जाते हैं।
कल यानि १५ अप्रैल को अमर उजाला डिजिटल टीम की वार्षिक पार्टी थी। पिछले वित्तीय वर्ष के आकलन और अगले की तैयारी के बाद अब तो यही आवश्यक भी था। उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए और आगे की योजना के लिए ऊर्जा और उत्साह अर्जित करने के लिए….
सो यह जश्न तय हुआ था। शाम से ही मस्ती शुरु हो गई थी। Work Hard and Party Harder वाले अंदाज में थे अमर उजाला के सभी साथी।
हालांकि कुछ साथी वहीं पार्टी में भी लैपटॉप लगाकर आईपीएल के कवरेज में लगे थे और जैसा कि खबरों की दुनिया में होता है, १- २ साथी दफ्तर में मोर्चे पर डटे थे।
इधर महफिल अपने पूरे शबाब पर थी और सब मानो अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन की तमाम तकलीफों और समस्याओं को भूलकर बस पार्टी में डूब जाना चाहते थे।
इसी बीच खबर आई कि अतीक और अशरफ को मार दिया गया है!!
मैं सन्न रह गया। एक बारगी तो यकीन ही नहीं हुआ। पार्टी के उस बहुत ऊंचे म्यूजिक के शोर शराबे से बाहर आकर समझने की कोशिश की और एकदम से माथा ठनक गया…ये तो बड़ा कांड हो गया।
बस फिर क्या था। पार्टी छोड़ कर संपादकीय साथी दौड़ पड़े दफ्तर की तरफ। नोएडा के सेक्टर १८ से अमर उजाला के सेक्टर ५९ स्थित दफ्तर का फासला चंद मिनटों में ही पूरा हो गया। इतनी जल्दी ये सफर शायद ही पहले कभी पूरा हुआ हो। रास्ते से फोन पर ही प्रयागराज दफ्तर और अन्य आवश्यक संपर्क कर लिए गए थे।
सभी साथी मौके की नज़ाकत भांपकर अपने – अपने काम में जुट गए।
अतीक अहमद जैसा माफिया सरगना जो वैसे ही उमेश पाल की हत्या के बाद से जबर्दस्त चर्चा में रहा। ठीक दो दिन पहले ही उसका बेटा असद झांसी में एक मुठभेड़ में मारा गया।
वही अतीक अहमद जिसकी इसी प्रयागराज में तूती बोलती थी। जिसने बंदूक के दम पर राजनीतिक रसूख हासिल किया था। वही अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ अपने ही गृह क्षेत्र प्रयागराज में यों सरे आम पुलिस हिरासत में ही गोलियों से भून दिए गए!! और ये सब कैमरे पर लाइव भी हुआ!!
ऐसे अवसर बिरले ही होते हैं। पर न्यूज रूम की इसी सनसनाहट के लिए ही शायद हम इस काम को कर रहे होते हैं।
बहरहाल टीम जुट गई और हर एंगल पर कवरेज किया। खबरें भी बनी और वीडियो भी। लाइव भी हुआ।
जब एक – डेढ़ घंटे बाद हल्ला थमा तो ध्यान आया कि हम सब तो पार्टी छोड़ कर भाग आए, और खाना तो खाया ही नहीं!!
फिर क्या था। खाना मंगवाया गया और मिलकर खाया गया। सबकुछ कब चट हो गया पता ही नहीं। क्योंकि एक बड़ी खबर को कवर कर लेने का सुकून भी सबके चेहरे पर था।
ऐसी ही टीम किसी भी मीडिया संस्थान और न्यूजरूम की शक्ति होती है। यही साथी और उनकी शैली अमर उजाला डिजिटल की अमूल्य पूंजी है।
Rakesh bhartiya
April 19, 2023 at 6:20 pm
शानदार, उत्कृष्ट लेखन … शब्दों से लाइव बहुत खूब .. इसी प्रकार की घटनाओं की यादें ताजा कर दी