अमित शाह का केस लड़ ने वाला वकील सुप्रीम कोर्ट में जज बना, जिस जज ने शाह को बरी किया वह राज्यपाल बन गया

Share the news

भारत में न्यायपालिका को लेकर बहस जारी है. सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने जो विद्रोह कर सुप्रीम कोर्ट के भीतर सब कुछ ठीक न चलने की जो बात कही है, उसके दूरगामी मायने निकाले जा रहे हैं. इसी दौर में कुछ लोगों ने कुछ घटनाओं की तरफ ध्यान दिलाया. जैसे अमित शाह का जो केस एक वकील लड़ रहा था, उसे सुप्रीम कोर्ट में जज बना दिया गया. सुप्रीम कोर्ट के जिस जज ने अमित शाह को बाइज्जत बरी किया, उसे रिटायरमेंट के बाद राज्यपाल बना दिया गया.

जिस जज ने अमित शाह को अभियुक्त करार देते हुए दंडित किया, उसकी बहन की शादी में आयकर विभाग का छापा पड़ गया. ये तीनों खबरें विभिन्न समय पर विभिन्न वेबसाइटों पर छप चुकी हैं. तीनों खबरों का स्क्रीनशाट यहां दिया जा रहा है ताकि आप जान सकें कि अदालतों का किस कदर राजनीतिकरण किया जा चुका है. साथ ही यह भी कि अगर आप अदालत को न्याय का घर मानते हैं तो यह आपकी अपनी समझदारी का स्तर है. अदालतें भी अब गिव एंड टेक के चंगुल में बुरी तरह  फंस चुकी हैं.

जुमला सुन भोंकने लगा

सुप्रीम कोर्ट में जिस न्यायाधीश ने अमित शाह को हत्या, अपहरण ठगी आदि केस से बरी कर दिया था, वह जज रिटायर के 7 दिन बाद केरल के राज्यपाल बन गए…

जो वकील अमित शाह का केस लड़ रहा था, वह वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट का जज बन गया है…

गुजरात हाई कोर्ट में जिस जज ने अमित शाह को अभियुक्त करार देते हुए दंडित किया था, उनकी बहन की शादी में आय कर विभाग का छापा पड़ गया..

और आखिरी में यह भी पढ़ें-देखें….

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें, नई खबरों से अपडेट रहें: Bhadas_Whatsapp_Channel

भड़ास का ऐसे करें भला- Donate

Comments on “अमित शाह का केस लड़ ने वाला वकील सुप्रीम कोर्ट में जज बना, जिस जज ने शाह को बरी किया वह राज्यपाल बन गया

  • vinay oswal says:

    क्या इस देश को , संविधान की भावनाओं से नहीं सत्ताधारी पार्टी की भावनाओं के अनुसार चलाने के लिए तैयार किया जा रहा है ?सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के क्रिया कलापों को कल, विभिन्न टीवी चैनलों के टॉक शो में चार के मुकाबले बीस मतों से सही ठहराने की होड़ देख कर , ऐसा लगा कि किसी को इस बात से कोई सरोकार नही है कि – – – ” न्यायाधीशों के लिए स्थापित मर्यादा कि – – वे न्यायायलयों के आंतरिक मतभेदों और मसलों को सार्वजनिक नही करते , का उलंघन हुआ है या नहीं ? अगर हुआ है तो क्या उन जजों के विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही होगी ? और ये कार्यवाही कौन करेगा ? कब करेगा ? ” ये कभी तय होगा या इन सवालों और उसके सम्भावित उत्तरों , को सदा सदा के लिए दफना दिया जाएगा ? पहली बार देश के सामने आयी इस घटना को दफना दिया गया तो भविष्य में पुनरावृत्ति होने पर भी दफ़नाने की परंपरा का सूत्रपात हो गया समझना चाहिए । आपस में मिल बैठ कर आपसी मतभेदों को सुलझाने के प्रयासों में और दफ़नाने के प्रयासों में क्या अंतर होगा मेरी समझ से परे है । सीधा सीधा उद्देश्य है पूरे मसले पर लीपा-पोती करना। आज सत्ता के सूत्र किसी पार्टी के हाँथ में हैं, कल दूसरी पार्टी के हाथ में हों सकते हैं । आज चार जजों को किसी एक पार्टी के साथ सहानुभति रखने के आरोप लगा के पल्ला झाड़ने वाले तैयार रहे , कल किन्ही दूसरे जजों पर उनकी पार्टी के साथ सहानुभति रखने के आरोप लगेंगे। न्यायाधीशों को अब राजनैतिक पार्टियों का सक्रिय कार्यकर्ता बताने या होने के आरोप खुल्लम खुल्ला लगाने की परम्परा को सार्वजनिक स्वीकृति दिलाना , जिनका लक्ष था , वो उन्हें हांसिल होगया। भविष्य में अन्य संवैधानिक संस्थाओं की सार्वभौमिकता और सम्मान का भी , इसी तरह सड़कों पर मान मर्दन किया जा सकता है । बहुत कुछ ऐसा और भी हो सकता है , जिसकी कल्पना इस देश के आवाम ने कभी की ही नही है । इस देश को संविधान की भावनाओं से नहीं सत्ताधारी पार्टी की भावनाओं के अनुसार चलाने के लिए तैयार किया जा रहा है । चुनाव कराना सरकारों की संवैधानिक बाध्यता है। जब आवाम ही सरकारें को इस बाध्यता का सम्मान न करने से मुक्त कर देगा तो लोकसभा और विधानसभाओं में सत्ताधारी पार्टियाँ ही सदस्यों को नामित करेगी । देश में एक दलीय शासन व्यवस्था का सूत्रपात हो गया ऐसा अंदेशा तो व्यक्त किया ही जा सकता है।

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *