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पीएम मोदी के Soft Interview का इनाम! अरनब गोस्वामी को Y कैटिगरी की सुरक्षा मिली

Nadim S. Akhter : अरनब गोस्वामी को “पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण” उसी दिन मिल गया था, जिस दिन उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का Soft Interview लिया था. भारत सरकार की ओर से अरनब को मिली Y कैटिगरी की सुरक्षा उसकी पहली कड़ी भर है. Soft Journalism का ये कमाल आगे कइयों के सिर चढ़कर बोलने वाला है. Soft रहके ही स्वादिष्ट SOFTY खाई जा सकती है. बस Softy पिघलने से पहले उसे गटकने का हुनर आना चाहिए. Soft Journalism तेजी से फैलती बीमारी है. पत्रकारों के अलावा सोशल मीडिया पर citizen journalists भी द्रुत गति से इसकी चपेट में आ रहे हैं.

<p>Nadim S. Akhter : अरनब गोस्वामी को "पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण" उसी दिन मिल गया था, जिस दिन उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का Soft Interview लिया था. भारत सरकार की ओर से अरनब को मिली Y कैटिगरी की सुरक्षा उसकी पहली कड़ी भर है. Soft Journalism का ये कमाल आगे कइयों के सिर चढ़कर बोलने वाला है. Soft रहके ही स्वादिष्ट SOFTY खाई जा सकती है. बस Softy पिघलने से पहले उसे गटकने का हुनर आना चाहिए. Soft Journalism तेजी से फैलती बीमारी है. पत्रकारों के अलावा सोशल मीडिया पर citizen journalists भी द्रुत गति से इसकी चपेट में आ रहे हैं.</p>

Nadim S. Akhter : अरनब गोस्वामी को “पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण” उसी दिन मिल गया था, जिस दिन उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का Soft Interview लिया था. भारत सरकार की ओर से अरनब को मिली Y कैटिगरी की सुरक्षा उसकी पहली कड़ी भर है. Soft Journalism का ये कमाल आगे कइयों के सिर चढ़कर बोलने वाला है. Soft रहके ही स्वादिष्ट SOFTY खाई जा सकती है. बस Softy पिघलने से पहले उसे गटकने का हुनर आना चाहिए. Soft Journalism तेजी से फैलती बीमारी है. पत्रकारों के अलावा सोशल मीडिया पर citizen journalists भी द्रुत गति से इसकी चपेट में आ रहे हैं.

Priyabh Ranjan : मैंने सुना था कि पत्रकार यदि वाकई ईमानदार होता है तो ‘सत्ता’ उसे नुकसान पहुंचाने की भरपूर कोशिश करती है। लेकिन हमारी सरकार अपने ‘प्रिय’ पत्रकारों को Y कटेगरी की सुरक्षा मुहैया करा रही है। मतलब साफ है – ‘सत्ता’ को पसंद आ रहे ये पत्रकार ‘जनता’ से जुड़े मुद्दों की पत्रकारिता नहीं कर रहे। देश के असल मुद्दों को उठाने वाले पत्रकारों को तो सरकार या उनके ‘भक्त’ तरह-तरह से परेशान करते हैं, सुरक्षा मुहैया कराने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता!

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पत्रकार नदीम एस. अख्तर और प्रियभांशु रंजन की एफबी वॉल से.

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0 Comments

  1. anujm

    October 17, 2016 at 12:16 pm

    ऐसे लोग खुद को मीडिया विश्लेषक कहलाते हैं…. हास्यास्पद .

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