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सुख-दुख

बालभोगी बनाम भुक्तभोगी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े रहे एक छात्रनेता पर छात्रसंघ चुनाव में कांग्रेस के छात्र संगठन (NSUI) से जुड़े छात्रनेता ने एक नारा उछाला। बालभोगी, बालभोगी। विद्यार्थी परिषद के लोगों ने दूसरा नारा निकाल लिया। भुक्तभोगी, भुक्तभोगी। जब तक बालभोगी का आरोप था वो मजे का विषय था। परिषद में काम करने वाले उस समय के हर कार्यकर्ता का मजाक ये कहकर उड़ाया जा सकता था।

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े रहे एक छात्रनेता पर छात्रसंघ चुनाव में कांग्रेस के छात्र संगठन (NSUI) से जुड़े छात्रनेता ने एक नारा उछाला। बालभोगी, बालभोगी। विद्यार्थी परिषद के लोगों ने दूसरा नारा निकाल लिया। भुक्तभोगी, भुक्तभोगी। जब तक बालभोगी का आरोप था वो मजे का विषय था। परिषद में काम करने वाले उस समय के हर कार्यकर्ता का मजाक ये कहकर उड़ाया जा सकता था।

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यहां तक कि संघी के नाम पर अभी भी बहुत से- सामान्य और चरित्रहीन टाइप के भी- बुद्धिजीवी ये आरोप लगाकर दांत चियार देते हैं। संघी होने भर से लोगों पर ऐसे आरोप ये तथाकथित बुद्धिजीवी लगा देते थे और त्याग, संयम से जीने वाले प्रचारकों का मजाक उड़ा देते थे। संघियों की सरकार आने के बाद थोड़ा ठिठकते हैं, डरते हैं, ये कहने से। और वही संघी जब पलटकर बालभोगी का आरोप लगाने वाले को भुक्तभोगी साबित करने पर जुट जाता है, तो चिट चिट की आवाज सुनाई देने लगती है।

ऐसा ही कुछ पत्रकार रवीश कुमार के भाई पर सेक्स रैकेट में शामिल होने के आरोपों पर भी दिख रहा है। बड़का-बड़का पत्रकार, बुद्धिजीवी लोग रवीश पर आरोप न लगाने की बात कर रहे हैं। इससे मैं भी सहमत हूं कि पत्रकार रवीश कुमार की पत्रकारिता अपनी जगह और उनके भाई ब्रजेश पांडे की कांग्रेसी नेतागीरी अपनी जगह। लेकिन, दुनिया के लिए आइना लेकर घूमने पर कभी तो आइना आपकी भी शक्ल उसमें दिखा ही देगा। रवीश जी को ये बात समझनी चाहिए। बस इत्ती छोटी सी ही बात है। और तो जो है सो तो हइये हैं।

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कई न्यूज चैनलों में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने यह टिप्पणी अपने एफबी वॉल पर प्रकाशित की है.

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