सागरिका घोष ने मुख़्तार परिवार के महिमामंडन वाला लेख लिखा!

ये एक दिन में नहीं हुआ है। और, ये स्थापित करने में सबसे बड़ी भूमिका बड़का टाइप के सरोकारी साबित पत्रकार, लेखकों ने निभाई है। ताज़ा सागरिका घोष का मुख़्तार परिवार का महिमामंडन वाला लेख पढ़ लीजिए या किसी हरिशंकर तिवारी, रघुराज प्रताप सिंह जैसों के बारे में दिल्ली लखनऊ से इन आरोपी अपराधियों के इलाक़े में गए पत्रकारों की रिपोर्टिंग पढ़िए। सब राबिनहुड छवि बनाने का ठेका लिए दिखते हैं।

बालभोगी बनाम भुक्तभोगी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े रहे एक छात्रनेता पर छात्रसंघ चुनाव में कांग्रेस के छात्र संगठन (NSUI) से जुड़े छात्रनेता ने एक नारा उछाला। बालभोगी, बालभोगी। विद्यार्थी परिषद के लोगों ने दूसरा नारा निकाल लिया। भुक्तभोगी, भुक्तभोगी। जब तक बालभोगी का आरोप था वो मजे का विषय था। परिषद में काम करने वाले उस समय के हर कार्यकर्ता का मजाक ये कहकर उड़ाया जा सकता था।

इस दलित-स्त्री विमर्श के स्वर्णकाल ने एक 12 साल की बच्ची को डॉक्टर के पास पहुंचा दिया

12 साल की है ये बच्ची। लेकिन, दलित नहीं है। किसी राजनीतिक दल के समर्थक भी इसके पीछे नहीं हैं। इसके पिता दयाशंकर सिंह भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष थे। एक शर्मनाक बयान दिया। उस पर तय से ज्यादा प्रतिक्रिया हुई। संसद भी चल रही थी। मोदी के गुजरात में दलितों पर कुछ अत्याचार की घटनाएं आ रही थीं। मामला दलित विमर्श के लिए चकाचक टाइप का था। उस पर महिला विमर्श भी जुड़ा, तो चकाचक से भी आगे चमत्कारिक टाइप की विमर्श की जमीन तैयार हो गई। सारे महान बुद्धिजीवी मायावती की तुलना भर से आहत हैं। देश उबल रहा है। दलित-स्त्री विमर्श अपने स्वर्ण काल तक पहुंच गया है। इस दलित-स्त्री विमर्श के स्वर्णकाल में एक 12 साल की बच्ची को डॉक्टर के पास पहुंचा दिया।