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भास्कर के मालिकों की इच्छा पूरी न हो सकी, सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से बेहाल

 

सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई दो महीने की मियाद खत्म होने में अब थोड़ा ही वक्त शेष रह गया है। यही वह गंभीर, गलाकाटू या कहें कि जानलेवा खंजर-तलवार, नए जमाने का वह आयुध है जो यदि प्राण बख्श भी दे तो चेत-चेतना को कदापि नहीं बख्शेगा। मतलब, जान बच भी जाए तो शेष जीवन अचेतावस्था में ही गुजरने के सारे बंदोबस्त मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश ने कम से कम दैनिक भास्कर के महामहिम मालिकों के लिए तो कर ही दिए हैं। भास्कर मालिकान ने मजीठिया से बचने के लिए अपने भरसक सारे जुगत – कोशिश – उपाय – प्रयास कर लिए, यहां तक कि उन कर्मचारियों को भी येन-केन प्रकारेण अपने पक्ष में करने, धमकाने-फुसलाने-बहलाने, खरीदने, सेटलमेंट-समझौता करने के अथक-अनवरत प्रयास किए, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली।

 

सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई दो महीने की मियाद खत्म होने में अब थोड़ा ही वक्त शेष रह गया है। यही वह गंभीर, गलाकाटू या कहें कि जानलेवा खंजर-तलवार, नए जमाने का वह आयुध है जो यदि प्राण बख्श भी दे तो चेत-चेतना को कदापि नहीं बख्शेगा। मतलब, जान बच भी जाए तो शेष जीवन अचेतावस्था में ही गुजरने के सारे बंदोबस्त मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश ने कम से कम दैनिक भास्कर के महामहिम मालिकों के लिए तो कर ही दिए हैं। भास्कर मालिकान ने मजीठिया से बचने के लिए अपने भरसक सारे जुगत – कोशिश – उपाय – प्रयास कर लिए, यहां तक कि उन कर्मचारियों को भी येन-केन प्रकारेण अपने पक्ष में करने, धमकाने-फुसलाने-बहलाने, खरीदने, सेटलमेंट-समझौता करने के अथक-अनवरत प्रयास किए, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिली।

उनकी कोशिश थी कि कंटेम्प्ट केस करने वाले कर्मचारियों से बिना किसी लिखा-पढ़ी के, अपने हिसाब से कुछ ले-देकर, दो नंबर में समझौता कर लिया जाए और केस को वक्त रहते खारिज-रद्द करवा कर, मजे से मूछों पर ताव देते हुए (यदि कुछ मूंछे सफाचट होने से बची रह गई हों तो!) कोर्ट परिसर से बाहर आ जाएं। और फिर जोर-शोर से, गर्वोन्माद में प्रचारित करवा दिया जाए कि – अब वे (भास्कर के मालिकान-रमेश चंद्र अग्रवाल, सुधीर अग्रवाल, गिरीश अग्रवाल, पवन अग्रवाल आदि) मजीठिया देने को मजबूर-बाध्य नहीं हैं, क्यों कि सर्वोच्च अदालत के शिकंजे से वे आजाद हो गए हैं। अब वे वही करेंगे या उसे ही जारी रखेंगे, जो वर्षों से करते आ रहे हैं, उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यहां तक कि कोई कानून भी उनका बाल बांका नहीं कर सकता। ठीक उसी तरह जैसे पिछले अनेक वर्षों से वे नियम-कायदे को अंगूठा दिखाते रहे हैं, अनदेखी करते रहे हैं, उसे अपने सामने कुछ नहीं समझते रहे हैं, फिर वही करेंगे-करते रहेंगे। उसे ही अनंत काल तक निर्बाध जारी रखेंगे और अपना मनमानापन बेखौफ करते रहेंगे। यानी दैनिक भास्कर के मालिकान अपने को कानून-व्यवस्था, यहां तक कि ईश्वर-भगवान-खुदा-गॉड से भी अपने को यथावत ऊपर मानते-समझते-दिखाते रहेंगे।

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लेकिन उनकी यह ख्वाहिश धरी की धरी रह गई है। अब वे अहर्निश-दिन रात अपने अफसरनुमा दासों-कारिंदों-जी हुजूरी करने वालों-चाकरों के साथ दिल्ली, भोपाल और अपने माकूल अन्य जगहों पर बैठकें कर रहे हैं। चंडीगढ़ दैनिक भास्कर के विभिन्न विभागों के मोटी पगार-वेतन-तनख्वाह लेने वाले अफसरों, मुखियों, जिनमें एचआर विभाग की प्रधान, संपादकीय विभाग के बड़े संपादक आदि भी शामिल हैं, इन बैठकों की हाजिरी बजाने के लिए निरंतर दिल्ली, भोपाल का चक्कर लगा रहे हैं। इन बैठकों का मकसद है, रहा है मजीठिया की काट खोजना। और अगर इसमें कामयाबी नहीं मिलती है तो ऐसे तरीके खोजना, ऐसी जुगत भिड़ाना कि कम से कम लोगों-कर्मचारियों को इस वेतन आयोग की संस्तुतियों का लाभ मिल सके। लाभ भी ऐसा कि कर्मचारियों को उतना ही देना पड़े जिससे कर्मचारी चूं तक न करें और ऊपर से इस-ऐसे लाभ के चटखारे भी ले सकें, रसास्वादन भी कर सकें।

महामहिम अग्रवालों की कोशिश है कि मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन कम कर्मचारियों को दिया जाए पर कागजों में ऐसे दर्शाया जाए कि मानों जैसे सारे कर्मचारियों को इसका लाभ दे दिया गया है। मीटिंगों में यही कवायद की जा रही है। क्योंकि आगामी 5 जनवरी की तारीख पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इसे लागू कर दिए जाने का पूरा लेखा-जोखा प्रस्तुत करना है। अगर ऐसा करने में विफल रहते हैं तो कंटेम्ट का सामना करना पड़ेगा और फिर तिहाड़ की सलाखों के पीछे जाना पड़ सकता है।

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मालिकों को पता है-ज्ञात है या यूं कहें कि उन्होंने ऐसे ही लोगों को अपनी नौकरी में रखा है जो चुपचाप-शांति-खामोशी से, बे ना-नुकुर, थोपी-लाद दी गई जिम्मेदारियों को ढोते-निबाहते रहते हैं, काम करते हैं। वह भी सरकार के बनाए हुए नियमों नहीं, बल्कि मालिकों-प्रबंधन द्वारा नियत नियमों के तहत रोजाना 10-12 घंटे तक काम करते रहते हैं। और वह भी सभी की ड्यूटी एक ही शिफ्ट यानी नाइट शिफ्ट की होती है। दिन की अमूमन कोई शिफ्ट ही नहीं होती है। अगर किसी को या सभी को दिन में ही किसी खास काम के लिए ड्यूटी पर बुला भी लिया जाता है तो छुट्टी एडिशन छोडऩे के बाद यानी देर रात को ही मिलती है। इसके लिए कोई एलाउंस नहीं मिलता है। रही बात नाइट एलाउंस की तो भास्कर कर्मी इस एलाउंस का नाम भी नहीं सुने होंगे, इसे मांगना-मिलना तो दूर की बात है।

भास्कर का एक कर्मचारी जिज्ञासावश पूछने लगा कि मजीठिया के हिसाब से यदि वेतन मिलता है तो कितना मिलेगा? उससे जब प्रति प्रश्न पूछा गया कि उसका मौजूदा मूल वेतन कितना है? तो उसने कहा साढ़े पांच हजार रुपए। पूछने वाला सुनकर हैरान रह गया। उसने कहा- भई, यदि इससे पहले के वेज बोर्ड, मणिसाना वेज बोर्ड के ही हिसाब से मूल वेतन मिले तो वह भी सात-सवा सात हजार रुपए से कम नहीं होना चाहिए। साफ है कि दैनिक भास्कर में उसके उदय से आज तक कोई भी वेज बोर्ड नहीं लागू किया गया है। उक्त कर्मचारी को जब बताया गया कि मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से मूल वेतन 16-16 हजार रुपए बनेगा तो वह हैरान रह गया।

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भारत के सबसे बड़े समाचार-पत्र में सबसे कम वेतन कर्मचारियों को मिलता है। यहां ज्यादातर नौकरी सिफारिश, जान-पहचान, पहुंच के आधार पर मिलती है। ऐसे में वेतन भी उसी के अनुकूल मिलता है। यहां तो एक ही पद पर काम करने वालों के वेतन में बहुत अंतर होता है। जूनियॉरिटी-सीनियॉरिटी, योग्ता, अनुभव आदि अमूमन इस अखबार में कोई मायने नहीं रखते। हां, इन कर्मचारियों पर डंडा-हुक्म चलाने वाले अफसरों-कारिंदों को मोटी पगार, खूब सुविधाएं मिलती हैं। इन्हें जितना पैसा मिलता है, उतने में आठ-दस कर्मचारी अपना गुजारा करने को अभिशप्त रहते हैं।

डीबी कॉर्प के आंकड़े के अनुसार इस अखबार की मार्च 2014 की वार्षिक आय 1854 करोड़ रुपए से ज्यादा है। मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के मुताबिक क्लास वन में आने वाले वे अखबार हैं जिनकी सालाना आमदनी 1000 करोड़ रुपए या उससे अधिक है। इस हिसाब से दैनिक भास्कर तो क्लास वन में आता है। लेकिन उपलब्ध जानकारी के अनुसार मालिकों-मैनेजमेंट अपने ही दिए हुए आंकड़े को छिपाने-झुठलाने की तिकड़मों में मशगूल है। उसका पूरा प्रयास है कि अपनी वास्तविक-दर्शायी हुई कमाई पर किसी तरह पर्दा डाला जाए और कम सालाना आमदनी का एक फर्जी आंकड़ा प्रस्तुत करके ऐसी स्थिति पैदा की जाए जिससे सुप्रीम कोर्ट का कोप भी न झेलना पड़े और कर्मचारियों को भी कम ही देना पड़े। इसके लिए वे एकाउंट्स के अनेक माहिरों-विशेषज्ञों की सेवा ले रहे हैं और असली को नकली बनाने में जुटे हुए हैं।

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चंडीगढ़ दैनिक भास्कर में शायद ही कोई कर्मचारी हो जिसे पता हो कि मजीठिया मिल रहा है। जिसे थोड़ा-बहुत अनुमान है भी तो बोलने-बताने से बच रहा है। उसे डर लगा हुआ है, लगा रहता है कि यदि वह कुछ बोला तो शिकायत हाकिमों तक पहुंच जाएगी। फिर कहीं उसकी नौकरी पर बन आई तो क्या होगा? कर्मचारी तो अफसरों की आवाजाही, उनकी चल रही बैठकों, दिल्ली-भोपाल के उनके अनवरत दौरों से अपने-अपने ढंग से अनुमान लगा रहे हैं, अटकलें लगा रहे हैं कि लगता है मजीठिया मिलेगा। लेकिन कितना मिलेगा? इससे तो तकरीबन सभी अनभिज्ञ हैं। हैरानी तब और बढ़ जाती है जब पता चलता है कि इन कर्मचारियों में अधिकांश ने मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों की रिपोर्ट पढ़ी तक नहीं है।

चंडीगढ़ से भूपेंद्र प्रतिबद्ध की रिपोर्ट. संपर्क: 09417556066

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0 Comments

  1. rajeev

    December 12, 2014 at 8:16 am

    मालिकों को पूरा भरोसा है पत्रकार नामकी मुर्दा कौम पर । जो टुकड़ों में काम करेगी लेकिन अपना हक नहीं मांगेगी .उन्हें कोर्ट की चिंता है . इन गुलामों की नहीं ।

  2. tarun

    December 12, 2014 at 1:17 pm

    DB k malinkon k khilaf supreme court me ek aur case darj
    case diary no. 36976

  3. hement

    December 13, 2014 at 6:43 am

    yah shi hai.

  4. hement sharma

    December 13, 2014 at 6:53 am

    भास्कर के मालिक मजीठिया से बचने के रास्ते निकालने में लगे है। कोटा राजस्थान में १२५ कर्मचारी मजीठिया की राह देख रहे हैं. उन पर कोर्ट में कार्रवाई नहीं करने का दबाव बना रहे हैं। पिछले दिनों एच आर का मेल भी आया था। भास्कर पत्रकारों का शोषण कर रहा है।

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