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सियासत

बीजपी लोकसभा में अल्पमत में आ गयी

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डॉ राकेश पाठक
प्रधान संपादक, कर्मवीर

लगातार उपचुनाव हार रही है, अब सहयोगी दल भी छिटक रहे हैं, अगला आम चुनाव आसान नहीं… उत्तर प्रदेश और बिहार की तीन लोकसभा सीटें बीजपी हार गई है। इनमें से दो उसके पास थीं और एक राजद के पास। खास ख़बर ये है कि इन सीटों को गंवाते ही भारतीय जनता पार्टी अकेले अपने दम लोकसभा में सामान्य बहुमत खो बैठी है। गठबंधन के रूप में उसके पास बहुमत फिलहाल बना हुआ है लेकिन सहयोगियों के छिटकना जारी है। ऐसे में अगले साल होने वाले आम चुनाव बीजपी के लिए टेढ़ी खीर साबित होते लग रहे हैं।

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डॉ राकेश पाठक
प्रधान संपादक, कर्मवीर

 लगातार उपचुनाव हार रही है, अब सहयोगी दल भी छिटक रहे हैं, अगला आम चुनाव आसान नहीं… उत्तर प्रदेश और बिहार की तीन लोकसभा सीटें बीजपी हार गई है। इनमें से दो उसके पास थीं और एक राजद के पास। खास ख़बर ये है कि इन सीटों को गंवाते ही भारतीय जनता पार्टी अकेले अपने दम लोकसभा में सामान्य बहुमत खो बैठी है। गठबंधन के रूप में उसके पास बहुमत फिलहाल बना हुआ है लेकिन सहयोगियों के छिटकना जारी है। ऐसे में अगले साल होने वाले आम चुनाव बीजपी के लिए टेढ़ी खीर साबित होते लग रहे हैं।

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बीजपी गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटें हार चुकी है। बिहार की अररिया सीट भी वो राजद से छीन नहीं सकी। ये नतीजे सिर्फ इतना भर नहीं हैं। आंकड़े इसके भीतर छुपे संदेश का खुलासा करते हैं जो कि बीजपी के माथे पर चिंता की लकीरें उभारने वाला है। संख्या का खेल बता रहा है कि 2014 में प्रचंड बहुमत से जीती बीजपी अब अकेले के दम पर लोकसभा में बहुमत खो चुकी है। गठबंधन के दम पर बहुमत बचा हुआ है।

गौरतलब है कि मोदी लहर पर सवार बीजपी को बीते चुनाव में अकेले ही 282 सीटें मिली थीं। लोकसभा में बहुमत के लिए 272 का आंकड़ा चाहिए होता है। तब पार्टी ने अकेले बहुमत होते हुए भी सभी सहयोगी दलों को सरकार में शामिल किया था। एनडीए गठबंधन को कुल 335 सीटें मिली थीं। 

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सन 2014 के तुरंत बाद हुए दो उपचुनाव बीड और बड़ोदरा बीजपी ने जीते थे। उसके बाद शहडोल और लखीमपुर में जीत दर्ज की। लेकिन बाक़ी अपने कब्जे वाली सीटों पर पार्टी लगातार हार रही है। गुरुदासपुर, अजमेर, अलवर, झाबुआ और आज गोरखपुर और फूलपुर जैसे अपने गढ़ भी नहीं बचा पाई। आज के नतीजों से पहले अकेले बीजपी के सांसदों की संख्या 273 बची थी और आज 271 रह गयी है। अकेले अपने दम पर तो पार्टी अल्पमत में आ गयी है लेकिन सहयोगी दलों की टेक से सरकार को कोई खतरा नहीं है।

उपचुनाव में लगातार हार के अलावा गिनती में कमी गोंदिया भंडारा सीट के सांसद नाना भाऊ महोड़ के संसद से इस्तीफा देने से आई थी। नाना भाऊ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रवैये की आलोचना कर पार्टी भी छोड़ गए थे। गुजरात चुनाव के दौरान वे कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। एनडीए में शामिल सहयोगी दलों को साथ रखने में भी बीजपी को मुश्किल हो रही है। कुछ महीनों शिवसेना कह चुकी है कि वह अगला चुनाव बीजपी से अलग होकर लड़ेगी। और अब हाल ही में तेलगु देशम पार्टी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। उसके मंत्रियों ने सरकार से इस्तीफे भी दे दिए हैं।

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फिलहाल लोकसभा में शिवसेना के 18 और तेलगू देशम के 16 सदस्य हैं। अन्य छोटी छोटी कई पार्टीयों का समर्थन भी बीजपी को हासिल है। ऐसे में बीजपी के लिए अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव आसान नहीं लग रहे।

लेखक डॉ राकेश पाठक ‘कर्मवीर’ के प्रधान संपादक हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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