Prabhat Dabral
जितने नोट मार्किट में थे उनमे से ज़्यादातर बैंकों में वापस आ गए इसलिए नोटबंदी पूरी तरह से फ़ेल हो गयी… न ब्लैक मनी वापस आयी न भ्रष्टाचार रुका… लोग बेतरह परेशान हुए सो अलग. साथ ही गरीब आदमियों की जेबों से उनकी छोटी मोटी बचत खोंच कर अम्बानी/अडानी जैसों की सेवा में लगा दी गयी.
ये तो वो तथ्य है जो सब के सामने हैं. इनसे ऐसा लगता है कि बेचारी सरकार ने नासमझी/ अतिउत्साह में नोटेबंदी कर ली थी. लेकिन क्या आपको वाकई लगता है मोदी और शाह इतने सीधे हैं. ज़रा इस बात पर गौर कीजिये…
नोटबंदी के पहले दो दिन में ही गुजरात के पांच कोआपरेटिव बैंकों में हज़ारों करोड़ रुपये जमा हो गये. अकेले अमित शाह के बैंक में पांच सौ करोड़ जमा हुये. इसके बाद कोआपरेटिव बैंकों में ये नोट जमा करने पर पाबंदी लगा दी गई. सरकार बदलने दीजिये. ये आज़ाद भारत की सबसे बड़ी लूट साबित न हो तो कहना.
नोटबंदी के फ़ौरन बाद गुजरात के कई कोआपरेटिव बैंकों में पहले दो दिनों में ही हज़ारों करोड़ जमा हो गए थे, मानो कुछ लोग इस घोषणा के इंतज़ार में बैठे थे कि कब घोषणा हो और हम बोरियां लेकर बैंक पहुंचें. जब गुजरात, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में ये काम हो गया तो कोआपरेटिव बैंकों में पुराने नोट जमा करने पर रोक लगा दी गयी.
कोआपरेटिव बैंकों वाली ये खबर एक आरटीआई के हवाले से आयी थी. खबर अब भी मौजूद है. ‘gujraat Cooperative bank demonitisation’ टाइप करके गूगल कर लें. ये भी मालूम पड़ जायेगा कि इनमें से ज़्यादातर बैंक बीजेपी वालों के हैं.
गूगल में ही नोटबन्दी के फ़ौरन बाद महाराष्ट्र, बंगाल और अन्य स्थानों पर पहले दो दिनों में ही हज़ारों करोड़ के पुराने और कुछ स्थानों पर तो नए नोट पकडे जाने की ख़बरें भी मिल जाएंगी. फिर भी जिसको आजतक का ये सबसे बड़ा घोटाला न दिख रहा हो वो गूगल से ही हक़ीम लुकमान का नया पता ढूंढ ले.
वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल की एफबी वॉल से.
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