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सुख-दुख

बजट व्याख्या : ग़रीबों को लात, अमीरों को लाभ ही लाभ… जानिए कैसे!

शीतल पी सिंह-

सिर्फ़ कारपोरेट्स को फायदा देता बजट, कारपोरेट टैक्स पर सरचार्ज 12% से घटाकर 7% किया गया ! दीर्घकालिक कैपिटल गेन्स को 15% किया गया ।अपने कार्यकाल में मोदीजी कारपोरेट टैक्स को तीस फ़ीसदी से घटाकर अठारह फ़ीसदी तक ले आए हैं और अब इस बजट में यह अतिरिक्त मदद की गई है ।

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इनकमटैक्स देने वाले पुरानी दर पर बिना किसी राहत के इनकमटैक्स देते रहेंगे।

पिछले आठ वर्षों में देश के कारपोरेट समुदाय की आय में ऐतिहासिक वृद्धि हुई है और करीब पचास करोड़ गरीब लोगों की आय आधी हो चुकी है। मोदीजी की नीतियां स्पष्ट हैं लेकिन हमारे सवर्ण बहुमत वाले मध्य वर्ग को सांप्रदायिक रतौंधी हो चुकी है!

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विश्व दीपक-

अभी भी कोई शक कि यह सूट-बूट सरकार है? आज जबकि कारपोरेट से पैसा लेकर गरीबों को देना चाहिए मोदी सरकार ने आज के बजट में कारपोरेट टैक्स और सरचार्ज में कटौती कर दी.

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पूरी दुनिया में मांग उठ रही है की बडे़ कॉर्पोरेट्स पर और टैक्स लगाया जाय, यहां घटा दिया गया.

याद है ना ? कुछ दिन पहले ऑक्सफैम ने एक रिपोर्ट जारी करके कहा था कि भारत के टॉप 10 प्रतिशत अमीर का 77 प्रतिशत धन संपत्ति पर कब्जा है. इसको आप 80 प्रतिशत समझिए.

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नीचे लगा चार्ट बताता है की भारत की अर्थव्यवस्था के सापेक्ष, भारत के कारपोरेट की संपत्ति किस बेतहाशा अंदाज़ में बढ़ी है. क्रॉनी कैपिटलिज्म यही है.

आज के बजट ने बता दिया है कि आने वाले वक्त में भारत में आर्थिक असमानता और भयानक तरीके से बढ़ने वाली है.


संत समीर-

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लगभग बोगस बजट। समझदारी और मूर्खता का समुच्चय, पर मूर्खता का प्रतिशत ज़्यादा है। महिलाओं का ख़याल किया गया है और गहने वगैरह कुछ सस्ते हो सकते हैं, जो बुरा नहीं है। ई-विद्या की योजना अच्छी है, पर इसमें बुनियादी ढाँचे की योजना का सिरे से अभाव है। यह ऐसी योजना है, जिसमें धन की कम, बढ़िया कार्ययोजना की ज़रूरत ज़्यादा है। अन्तिम रूप से शिक्षा पर कुल बजट अनुपात घटता दिख रहा है। ज़रूतमन्द वर्ग को मुफ़्त अनाज देना भी सरकार का सराहनीय क़दम माना जा सकता है, पर इसे इस वर्ग का ‘इम्पॉवरमेण्ट’ यानी सशक्तीकरण कहना देश को मूर्ख बनाना है। रसायनमुक्त खेती को बढ़ावा देना, समय की ज़रूरत मान सकते हैं, पर इस पर काम कर्मकाण्ड से आगे बढ़े तभी। ख़ैर, ऐसे कामों में मोदी जी के सुर के साथ हमारे जैसे लोग भी अपना सुर मिला ही सकते हैं। बिना स्पष्ट खाका दिए एमएसपी पर ‘रिकॉर्ड ख़रीदारी’ करने के बजटीय वादे का असली अर्थ सरकार ही बता सकती है। अलबत्ता, फ़ोन जैसी कुछ डिजिटल चीज़ें सस्ती हो सकती हैं, जिसके लिए हम-आप ख़ुश हो सकते हैं। कुछ शङ्काओं-कुशङ्काओं के बीच बिजली अगर थोड़ी भी सस्ती होती है तो इसका स्वागत आमजन ज़रूर दिल से करेगा। जहाँ तक स्वास्थ्य क्षेत्र की बात है तो इस मोर्चे पर बस एलोपैथी तौर-तरीक़ों को बढ़ावा देने का ही इन्तज़ाम दिखाई दे रहा है।

अटल बिहारी वाजपेयी जी के मन में कभी एक तुगलकी शौक़ जगा था, उसे यह सरकार जैसे पार्टी का पितृयज्ञ मानकर पूरा करना चाहती है। नदियों को जोड़ने की योजना का ज़ोर-शोर से ऐलान किया गया है। हो सकता है कि मोदी सरकार की सुपर मूर्खताओं में से यह भी एक साबित हो। अगर यह हो गया तो आने वाली पीढ़ियाँ इस मूर्खतापूर्ण काम के लिए भाजपा को याद करेंगी। भ्रष्टाचार के पैमाने पर बड़े बजट का यह बड़ा खेल साबित हो सकता है। टिहरी में रहकर मैं नज़दीक से देख चुका हूँ कि ऐसी चीज़ों में दो सौ करोड़ कैसे देखते-देखते दो हज़ार करोड़ में बदल जाते हैं। अपना तो ऐलान अभी से है कि इस ‘नदी जोड़ो’ का मैं भरपूर विरोध करूँगा। जब आसान विकल्प सोचे जा सकते हैं, तो प्रकृति के साथ छेड़खानी की ऐसी मूर्खताओं का क्या मतलब?

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बजट से स्पष्ट हो चुका है कि सरकार क्रिप्टो करेंसी जैसी चीज़ों को हतोत्साहित करने के लिए कमर कस रही है। कुछ अर्थों में यह ठीक हो सकता है, पर सवाल यह है कि दूसरे रास्ते से ख़ुद सरकार भी आख़िर उस दुनिया में क्यों उतरना चाहती है? क्रिप्टो में मुनाफ़े पर 30 प्रतिशत टैक्स लगाना जायज़ मान लिया जाय, पर घाटे की स्थिति में भी टैक्स लगाने का क्या तुक है? ऐसा नहीं है कि क्रिप्टो में सिर्फ़ धन्धेबाज़ ही धन लगाते हैं या लगाएँगे, आम आदमी भी चार पैसे कमाने की सोच सकता है। क्रिप्टो को इतना ही हतोत्साहित करना है तो इसे पूरी तरह से अमान्य क्यों नहीं घोषित कर देते? घाटे पर टैक्स का मैं इतना ही अर्थ समझ पा रहा हूँ कि धनी लोग 30 प्रतिशत देकर भी क्रिप्टो से सचमुच मुनाफ़ा कमा लेंगे, पर आम निवेशक दोहरा नुक़सान उठाएगा।

ऐसे मुश्किल समय में ही एक अच्छे बजट की उम्मीद की जाती है, पर नेताओं की पढ़ाई जितनी है, उनकी बुद्धि से उससे ज़्यादा की उम्मीद भला कैसे कर सकते हैं? नौकरशाह तो ख़ैर हर सरकार में एक जैसे ही होते हैं और उनका काम इशारों पर नाचना भर होता है। मुद्दे कई निकल रहे हैं, पर आनन-फानन में जो मन में आया, लिखा।

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सौमित्र रॉय-

आज का सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस बार का बजट किसके लिए था?

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आम जनता के लिए, या मोदीजी के दोस्त कॉरपोरेट्स के लिए?

वित्त मंत्री ने बजट को अगले 25 साल की बुनियाद बताया है। क्या यह मान लें कि भारत की आज़ादी के 100वें साल में लोग ही ख़त्म हो जाएंगे?

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एक ऐसे देश में जहां 5.3 करोड़ बेरोजगार बैठे हैं, 60% श्रम शक्ति के पास काम नहीं है, उपभोग 40 साल में सबसे कम है, 23 करोड़ लोग ग़रीबी के गर्त में डूब चुके हैं और भारतीय रुपया एशिया की सबसे निम्न मुद्रा बन चुकी है- बजट में मानवीय दृष्टिकोण की ज़रूरत थी।

लेकिन निर्मला सीतारमण ने मोदी के पिछले 15 अगस्त को दिए भाषण के 7 विज़न से पढ़ना शुरू किया।

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बुलेट ट्रेन नहीं तो 400 वंदे भारत ट्रेन (ज़्यादा किराया और लूट), 100 लॉजिस्टिक हब (अडाणी और अम्बानी के लिए)- ये सब किनके लिए है?

किसानों को 2.7 लाख करोड़ की MSP तो 2020-21 के 2.87 लाख करोड़ से भी कम है। क्या यही समावेशी विकास है? (टेबल देखिये)

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किसानों को उपज का सही भाव चाहिए और वित्त मंत्री उन्हें ड्रोन दे रही हैं। ये उनके ड्रोनाचार्य बॉस का ही आईडिया हो सकता है।

तबाही के लिए अकेले केन-बेतवा ही काफ़ी नहीं थी कि 5 और नदियों को जोड़ेंगे। माने लाखों विस्थापित, लाखों हेक्टेयर जंगल डूबेंगे और बाढ़ की तबाही अलग से।

मोटा अनाज ठीक है, लेकिन उसे कौन, किस कीमत पर बेचेगा? अम्बानी और रामदेव? 10 गुना कीमत पर?

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2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का 2018 में मोदी ने फेंका था, वह एक्सपायर हो गया।

इस साल तक सभी को घर देने का भी वादा था। लेकिन बजट में 80 लाख नए मकानों के लिए 48 हज़ार करोड़ का टुकड़ा फेंककर वित्त मंत्री चुप हो गईं। अकेले यूपी की 24 करोड़ आबादी में सिर्फ 9.82 लाख लोगों के पास छत है। जल जीवन मिशन के लिए 60 हज़ार करोड़ नाकाफ़ी हैं।

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वित्त मंत्री ने सबसे बड़ा जुमला मेक इन इंडिया के फ्लॉप शो से 60 लाख नौकरियां जुटाने का फेंका है। उन्होंने दावा किया कि 15 लाख नौकरियां पैदा हुई हैं। 5.3 करोड़ बेरोजगार और 15 लाख नौकरियों का दावा।

देश में 1.5 लाख डाकघरों को बैंक बनाया जाएगा। फिर बैंक क्या करेंगे? बंद हो जाएंगे?

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200 चैनलों से पढ़ाई, ई विद्या स्कूलों के लिए खतरे की घंटी है।

हां, वित्त मंत्री ने एक बड़ी घोषणा भी की है। राष्ट्रीय टेली मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम बहुत से भक्तों, पाखंडियों, झूठे, जुमलेबाज़ लोगों के लिए फायदेमंद होगा- जिनके दिमाग में ज़हर भरा है।

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बस, इसी ऐलान में “लोग” हैं, वरना आज के पूरे बजट से लोक ही गायब है।

गरीब लोगों के पेट पर लात!

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मोदी सरकार ने आज पेश किए गए बजट में देश के सबसे गरीब लोगों के पेट पर जोरदार लात मारी है।

ये लात देश के किसानों और 60 करोड़ ग़रीबों को ज़िंदा रखने के लिए चलाई जा रही योजनाओं के बजट और सब्सिडी में कटौती कर मारी गई है।

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  1. मनरेगा के लिए वित्त मंत्री ने सिर्फ़ 73000 करोड़ रुपये दिए हैं, जो 98000 करोड़ के पिछले आवंटन से कम हैं। कोविड की दोनों लहर में मनरेगा ने ही गांव में लोगों को ज़िंदा रखा था।
  2. खाद्य सब्सिडी को 2.86 लाख करोड़ से घटाकर 2.06 लाख करोड़ किया गया है।
  3. उर्वरक सहायता की राशि को 1.40 लाख करोड़ से घटाकर 2022-23 के लिए 1.05 लाख करोड़ कर दिया गया है।

मोदी सरकार से बड़ा किसान, ग़रीब विरोधी और कोई हो ही नहीं सकता।

सेना को भी नहीं बख़्शा

मोदी सरकार ने अपने बजट में ग़रीब, किसान, मध्यम वर्ग को ही नहीं सेना को भी नहीं बख़्शा है।

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इधर, लद्दाख में चीन हमारी सरहद में घुसकर बैठा है, वहीं फेकेंद्र ने थलसेना के पूंजीगत खर्च में 10105 करोड़, नौसेना के लिए 7193 करोड़ और वायुसेना के लिए 1384 करोड़ की कमी कर दी है।

दूसरी तरफ, कॉर्पोरेट टैक्स और सरचार्ज दोनों घटाया गया है।

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मोदी सरकार सिर्फ़ कॉरपोरेट्स की भलाई के लिए है।

हेल्थ पर भी ध्यान नहीं

कोविड के बावज़ूद स्वास्थ्य का बजट सिर्फ़ 0.23% बढ़ा है। पिछले बजट के संशोधित अनुमान 86 हज़ार करोड़ से इस बार का बजट 86200 करोड़ हुआ है।

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2017 की स्वास्थ्य नीति के मुताबिक सरकार को जीडीपी का 2.5% स्वास्थ्य पर 2025 तक खर्च करना ही है। अभी यह 2.1% से कुछ ही ज़्यादा है।

पिछले बजट में मोदी सरकार ने कोविड इमरजेंसी रेस्पॉन्स पैकेज में 15730 करोड़ डाले थे। इस बार कोई फण्ड नहीं है।

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पोषण 2.0 के लिए 20,263 करोड़ दिए तो हैं, लेकिन योजना अभी तक शुरू ही नहीं हुई है।

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