नई दिल्ली: एक का दो और दो का चार बनाने का दावा करती हैं चिटफंड कंपनियां. कंपनियां कुछ ही समय में लखपति बनाने का सपना दिखाती हैं और इनके लालच में आ जाते हैं गरीब और आम निवेशक. लोगों से लिए गए पैसों से चिटफंड कंपनियां संपत्तियां खरीदती हैं और जब निवेशक पैसा वापस मांगते हैं तो उन्हें दर-दर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है पर आज की कहानी ये नहीं है. आज हम बता रहे हैं किस तरह चिटफंड कंपनियां अपने कारोबार को चमकाने के लिए न्यूज चैनल और अखबार शुरू करती हैं और फिर निवेशकों का पैसा डूबने के बाद पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को बर्बाद होने के लिए छोड़ देती हैं.
अब हम आपको कुछ पत्रकारों के नाम बताते हैं. हर्षवर्धन त्रिपाठी, अगस्त्य अरुणाचल, मनोजित मलिक और सुभदीप राय ये सभी वो टीवी पत्रकार हैं जिन्हें चिट फंड कंपनी वाले टीवी चैनलों ने कहीं का नहीं छोड़ा. P7 चैनल में काम कर चुके अगस्त्य अरुणाचल आज बेरोजगार तो नहीं लेकिन इनका दर्द किसी बेरोजगार से कम भी नहीं. अगस्त्य अरुणाचल का कहना है, ”पत्नी ने नौकरी शुरू कर दी है, भाई से मदद ले लेता हूं, मां को बताया नहीं है लेकिन कुछ-कुछ करके काम चल रहा है. वहीं एक और पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी का है, ”बहुत सारे लोगों ने हमारे सामने अपनी पत्नी और बच्चों को गांव भेज दिया. सैलरी नहीं आई तो उनका वक्त कटना मुश्किल था.
अगस्त्य अरुणाचल और हर्षवर्धन त्रिपाठी को दो राहे पर लाकर खड़ा करने वाला पी7 चैनल न्यूज चैनल नवंबर 2014 में बंद हो चुका है. इसका संचालन करने वाली कंपनी पर्ल्स ग्रुप के संस्थापक निर्मल सिंह भंगू को धोखाधड़ी के आरोप में सीबीआई ने हाल ही में गिरफ्तार किया है. भंगू ने लाखों निवेशकों को शिकार बनाया तो पी 7 न्यूज चैनल के जरिए सैंकड़ों पत्रकार सड़कों पर आ गए. जैसे-जैसे पर्ल्स ग्रुप पर जांच एजेंसियों का शिकंजा कसता गया तो सबसे पहले पी 7 न्यूज चैनल को ही बंद करने की बात सामने आई.
पर्ल्स ग्रुप के P7 न्यूज के पत्रकारों की लड़ाई
अगस्त्य अरुणाचल का कहना है कि जब उन्होंने पी-7 न्यूज चैनल में नौकरी शुरू की तब इस चीज पर जरा भी गौर नहीं फरमाया कि ये चैनल चिट फंड कंपनी का है लेकिन चैनल में वरिष्ठ लोगों की कार्यशैली देखकर अहसास होने लगा कि इस चैनल का मिशन पत्रकारिता नहीं है बल्कि पत्रकारिता के जरिए कंपनी का प्रचार-प्रसार करना इसका मकसद है.
पी7 न्यूज चैनल के आउटपुट विभाग में 4 साल तक काम कर चुके हर्षवर्धन त्रिपाठी का कहना है बुरा दौर तब शुरू हुआ जब सैलरी 15 दिन लेट आने लगी और फिर बढ़ते-बढ़ते ये दौर दो-दो महीने पर पहुंच गया. हर्षवर्धन के मुताबिक चैनल बंद होने की घोषणा के बाद उन्होंने तीन महीने की सैलरी पाने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया. डायरेक्टर के सामने धरना प्रदर्शन किया तो साथ ही नोएडा के जिला कलेक्टर को भी साथ लिया. श्रम विभाग के आयुक्त के सामने अर्जी डालकर उन्होंने न्यूज चैनल के संघर्ष कर रहे कर्मचारियों की लड़ाई को आगे बढ़ाया तब जाकर उन्हें अपना हक मिला.
पीएसीएल का कहना है कि निवेशकों को घबराने की जरूरत नहीं है. कंपनी में जिन लोगों ने पैसा लगाया है उन्हें उनका पैसा वापस मिलेगा. कंपनी के वकील का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2015 में कमिटी बनायी थी और उसके पास कंपनी के सारे दस्तावेज़ मौजूद हैं.
रोजवैली, सारधा ग्रुप के चैनल के पत्रकारों की लड़ाई
पश्चिम बंगाल के रोज वैली कंपनी के चैनल न्यूज टाइम्स में काम करने वाले कर्मचारियों को अब भी वेतन नहीं मिल रहा. वहां बतौर एनटरटेनमेंट प्रोड्यूसर काम कर चुके सुभदीप राय ने बताया कि उन्होंने 5 साल न्यूज टाइम्स में काम किया लेकिन कंपनी ने उनका पीएफ अकाउंट में डालना साल 2014 से ही बंद कर दिया और जब पत्रकारों ने देरी से सैलरी मिलने, ईपीएफ खाते में न डाले जाने जैसी शिकायतों के खिलाफ आवाज उठाई तो वहां मौजूद बाउंसरों के जरिए उनकी आवाज दबाने की कोशिश की गई. रोजवैली से इस पूरे मामले पर उनका पक्ष मांगा गया लेकिन कंपनी ने कुछ भी कहने से मना कर दिया.
सुभदीप राय अब भी बेरोजगार हैं तो सारधा समूह के चैनल 10 में 5 साल तक काम कर चुके एक और पत्रकार मनोजित मलिक की कहानी भी कमोबेश यही है. अप्रैल 2013 में सारधा ग्रुप के मालिक सुदीप्तो सेन की गिरफ्तारी के बाद चैनल 10 के पत्रकारों को अचानक बर्खास्त किया जाने लगा. वेतन में कटौती शुरू हो गई और मजबूरी में जो लोग आज भी वहां हैं उनकी हालत भी बेरोजगार वालों जैसी ही है.
लब्बोलुआब ये कि पर्ल्स ग्रुप, सारधा ग्रुप, रोजवैली जैसी चिट फंड कंपनियों से जुड़े टीवी चैनलों के पत्रकार कहीं के नहीं रहे. यही नहीं चिटफंड कंपनी समृद्ध जीवन परिवार के चैनल लाइव इंडिया के मालिक महेश मोतेवार को धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है. P7 न्यूज या लाइव इंडिया हो, चैनल 10 हो, न्यूज टाइम्स हो या फिर चिट फंड कंपनी से जुड़ा कोई और टीवी चैनल, हकीकत ये है कि इनके मालिकों का पत्रकारिता से दूर-दूर तक का कोई नाता नहीं.
कई पत्रकारों को बेरोजगार करने वाले भंगू की कहानी
P7 न्यूज कंपनी के मालिक निर्मल सिंह भंगू की जिंदगी का सफर साइकिल पर दूध बेचने से शुरू हुआ था. पंजाब के जिला चमकौर साहबिब में भंगू साइकिल पर दूध इकट्ठा कर शहर में घर-घर जाकर बेचने का काम करता था. इसी दौरान वो एक चिट फंड कंपनी के लिए एजेंट का काम करने लगा. धीरे-धीरे इस काम में भंगू इतना माहिर हो गया कि उसने गुरवंत एग्रोटेक के नाम से अपनी कंपनी शुरू कर दी. ये कंपनी मैग्नेटिक पिलोज बेचने के नाम पर लोगों से पैसा जमा कराती थी. इसके बाद कंपनी का नाम बदलकर 1998 में पीएसीएल इंडिया यानि पर्ल एग्रोटेक कार्पोरेशन लिमिटेड रख दिया गया.
इस तरह दो दशक के भीतर भंगू हिंदुस्तान के सबसे बड़े लैंड बैंक का मालिक बन गया. इस ग्रुप की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके ब्रेंड एंबेसेडर अक्षय कुमार से लेकर ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज ब्रैट ली तक रह चुके हैं. पीएसीएल का मुख्य दफ्तर दिल्ली में है. देशभर में इसके एजेंटों का जाल फैला हुआ है. कंपनी के करीब 8 लाख एजेंट पूरे देश में हैं जो चेन मार्केटिंग के तहत काम करते हैं. इसके अलावा आईपीएल में पंजाब की टीम किंग्स इलेवन के साथ भी पर्ल ग्रुप जुड़ा रहा है.
कंपनी ने रियल एस्टेट, टिंबर इंडस्ट्री, हेल्थ, बीमा, होटल जैसे क्षेत्रों में हाथ आजमाने के बाद 2011 में P7 न्यूज चैनल शुरू किया. चैनल के जरिए पर्ल्स ग्रुप कंपनी का प्रचार-प्रसार करना ही उसका मकसद था. राष्ट्रीय चैनल के अलावा भंगू ने क्षेत्रीय चैनल पर्ल्स मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ भी शुरू किया और खूब पूंजी निवेश कराया. लेकिन आज 5 करोड़ निवेशकों से 45 हजार करोड़ रु ऐंठने के आरोप में भंगू को जेल भेजा जा चुका है. इस बीच सीबीआई की जांच में पचा चला है कि निवेशकों के पैसों से कंपनी ने दिल्ली के कनॉट प्लेस में 66 दफ्तरों को खरीदा. पंजाब के संगरुर में पर्ल्स कंपनी के कई निवेशकों को अपनी रकम डूबने का डर सता रहा है.
लाइव इंडिया के मालिक महेश मोतेवार की कहानी
लाइव इंडिया और महाराष्ट्र में मी मराठी न्यूज चैनल के मालिक महेश मोतेवार का शुरूआती सफर भी संघर्ष भरा रहा. महेश मोतेवार ने 2005 में खोली अपनी समृद्ध जीवन परिवार कंपनी को और ताकतवर बनाने के लिए चैनल खोला, अच्छे पत्रकारों को ऊंची सैलरी पर नौकरी दी. मोतेवार की कंपनी ग्रामीणों को बताती थी कि वह पुणे में बकरी और गाय पालन का कारोबार करती है. इसके बड़े-बड़े फार्म हैं, जहां पशुओं का पालन-पोषण होता है. कंपनी ने ग्रामीणों को बताया कि उनके पास जितने भी पैसे हैं, वे उनकी कंपनी में निवेश कर दें. बकरी व गाय पालन में मिलने वाले तीन गुना लाभ उन तक सीधे पहुंचेगा. इस तरह ग्रामीण उनके चंगुल में फंस गए.
महाराष्ट्र के नांदेड जिले के लोहारा तहसील के जेवली गांव में करीब डेढ़ सौ लोगों ने समृद्ध जीवन परिवार में निवेश किया है. श्याम सुंदर पाटिल नाम के किसान ने 21 लाख तो श्रीमंत घोडकें नाम के इस किसान ने 36 हजार रुपये समृद्ध जीवन परिवार में जमा किये हैं. अब मालिक महेश मोतेवार की गिरफ्तारी के बाद अब सभी को अपनी राशि वापस न मिलने का डर सता रहा है. लाइव इंडिया चैनल से इस पूरे मामले पर एबीपी न्यूज ने संपर्क साधा लेकिन उनका अब तक कोई जवाब नहीं आया है. जो भी हो इन चिट फंड कंपनियों के सबसे ब़ड़े शिकार बने निवेशक और खुद पत्रकार जिन्होंने इन कंपनियों से जुड़े टीवी चैनलों में काम किया या फिर कर रहे हैं. पी 7 न्यूज में काम कर चुके पत्रकार हर्षवर्धन और अगस्त्य अरुणाचल का कहना है कि चैनल खोलने के लिए बाकायदा केंद्र सरकार कायदा कानून बनाए और ऐसे लोगों को ही न्यूज चैनल का लाइसेंस दे जो पत्रकार रह चुके हैं या फिर पत्रकारिता करना चाहते हों.
साभार- एबीपी न्यूज
Comments on “चिटफंड के ‘चैनलों’ से सावधान! मीडियाकर्मियों की जिंदगी नरक बना देते हैं ये”
भड़ास पर छपी खबर और उनके पात्र की कहानी सुनकर हंसी आती है…ये वही लोग हैं हर्षवर्धन और अगस्त जो तनख्वाह तो लाख में लेते थे
और पी7 के अधिकारियों की चरण वंदना में लगे रहते थे..वो आज व्यथा सुना रहे हैं…इनलोगों ने खुद कितने पत्रकारों को सड़क पर ला खड़ा किया..ये क्यों नहीं लोगों को बता रहे…और पी7. की हकीकत जब सामने
आ ही गई थी तो…इनलोगों ने नौकरी क्यों नहीं तलाशी…यशवंत जी भडास की खबर मीडियाकर्मियों के लिए भरोसे की गारंटी है…इन टुच्चों के बारे में खबर छापकर इस प्लेटफॉर्म को गंदा न करें…