यशवंत-
इन दिनों कई न्यूज चैनल लाने की कवायद चल रही है. कुछ के नाम घोषित हो गए हैं तो कई पाइपलाइन में हैं. ये सारे चैनल चुनावी मोड वाले हैं. चुनाव खत्म और चैनल बंद. इसलिए मीडियाकर्मियों को यहां ज्वाइन करने से पहले खूब समझ-बूझ लेना चाहिए. ऐसे लोग जो स्थापित चैनलों में कार्यरत हैं, उन्हें चुनावी चैनलों में जाने से पहले सौ बार सोचना चाहिए.
ज्ञात हो कि हिंदी पट्टी के कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं. इसके बाद लोकसभा चुनाव है. मतलब अगले एक साल तक चुनाव ही चुनाव है. इस मौके को मीडिया मालिक धंधे का पीक समय मानते हैं. नेता लोग जितना पैसा कमाए होते हैं, वो सब इस चुनावी सीजन में झोंक देते हैं. इसका बड़ा हिस्सा मीडिया कंपनियों को भी मिलता है. हर विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र में तैनात रिपोर्टर टॉप प्रत्याशियों से पैसे पाता है ताकि अच्छा अच्छा कवरेज कर सके.
अब तो मीडिया के मालिक ही डायरेक्ट डील कर लेते हैं और अपने रिपोर्टरों को डील के मुताबिक निर्देश दे देते हैं. कई नए चैनल जो इस मौके पर लांच होते हैं, वे अपने रिपोर्टरों के सहारे पैसे उगाहते हैं. जिले जिले में जमीनी स्तर पर रिपोर्टर नेताओं से डील करते हैं और पैसे चैनल को भेजते हैं.
इसी चुनावी लाभ के लिए चैनल खुलते हैं और फिर चुनाव बीतने के बाद बंद हो जाते हैं. चुनावी दिनों में कई वरिष्ठ बेरोजगार संपादक लोगों को कुछ समय के लिए काम मिल जाता है, चैनल चलाने का. भर्ती करने का. वे पैसे भी बना लेते हैं. सबसे ज्यादा मुसीबत होती है छोटे मीडियाकर्मियों की. वे प्रलोभन में ठीकठाक नौकरी छोड़कर चले आते हैं और फिर चुनावी चैनल के बंद होने के बाद पैदल हो जाते हैं.
वैसे भी इस मोदी युग में अब किसी नए चैनल की गुंजाइश है नहीं. मोदी के खिलाफ दिखाने की किसी की औकात है नहीं और मोदी भक्ति में इतने सारे चैनल लीन हैं कि नए वाले को भक्ति करने के लिए एक्सक्लूसिव कुछ मिलेगा नहीं.
सबसे बड़ी बात ये है कि चैनल में अब जो निवेश करने वाले हैं, उनका विजन बड़ा नहीं होता. वे तुरंत फायदा चाहते हैं. जब उनकी महत्वाकांक्षा पूरी नहीं होती तो वे चैनल में कामधाम में तरह तरह के विघ्न डालना शुरू कर देते हैं. इसके बाद चैनल से लोगों के भागने की शुरुआत होती है और फिर देखते ही देखते अफरातफरी का माहौल अराजकता में कनवर्ट हो जाता है.
तो चुनावी चैनलों से बचिए. नए नए / पुराने पुराने संपादकों की बड़ी बड़ी बातों बड़े बड़े दावों से बचिए. फिर न रोइएगा कि मेरा इतना पैसा दबा लिया, इतना पैसा नहीं दिया, वो नौकरी छोड़कर आया और यहां तो फंस गया… चुनावी बेला में सोच समझ कर उछलकूद करिए. अभी नई ज्वायनिंग की फोटो डालते फेसबुक पोस्ट करते ट्वीट करते बड़ा अच्छा लग रहा है. जब फायर शुरू होगा और एग्जिट गेट खोला जाएगा तो लोग मुंह छुपाते भागेंगे. फिर कोई एक न फोटो डालेगा.
इसलिए भड़ासी चेतावनी बार बार दोहराएं- चुनावी बेला में अगर सावधानी हटी तो समझिए करियर में दुर्घटना घटी.
और हां, अगर भड़ास चुनावी चैनलों को प्रमोट करे तो समझिए मामला मुफ्त में नहीं है. पेड प्रमोशन के लिए चुनावी चैनलों का स्वागत है. चुनावी माहौल में दो पैसे अगर भड़ास भी बना ले तो किसी के पेट में दर्द नहीं होना चाहिए. 🙂
मधुर शील
June 13, 2023 at 4:29 pm
सही और उचित परामर्श
Arunpratap anchor
June 13, 2023 at 6:27 pm
बिल्कुल सर आप हमेशा सही मार्गदर्शन करते हैं ये ख़बर हम जैसे पत्रकारों के लिए फ़ायदेमंद है