कांग्रेस घोषणापत्र का शीर्षक है: ‘हम निभाएंगे’. मतलब कि ये शीर्षक ही मोदी के जुमलों पर बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक है!
राहुल गांधी का सीधा बयान: वही बोलेंगे जो कर पाएं- जैसे 22 लाख नौकरियाँ तो केंद्र सरकार में ही खाली हैं! पंचायतों में 10 लाख! अप्रैल 2020 तक!
साथ में युवाओं को 3 साल तक नए व्यापार पर कोई टैक्स नहीं- मोदी के मेक इन इंडिया के जुमले के बावजूद एंजेल टैक्स की वसूली बंद!
उससे भी बड़ा- करोड़पतियों का कर्ज न चुकाना फौजदारी नहीं दीवानी अपराध तो किसानों का क्यों! अब ये दीवानी अपराध होगा! ये मोदी के किसानों से चुरा के बीमा कंपनियों को देने पर सीधी सर्जिकल स्ट्राइक है!
शिक्षा पर बजट 6 प्रतिशत खर्चा!
न्याय योजना पर उतने ही का वादा किया है जितना अर्थशास्त्रियों से बातचीत कर संभव पाया है. ये भारत की अर्थव्यवस्था जिससे धन निकाल लिया मोदी ने- उसमें वापस पैसा डालेगा!
इसके बाद गोदी मीडिया के सवाल पर राहुल गांधी के जवाब ने तो हिला दिया- भाजपा कह रही है कि न्याय (72 हज़ार) डूएबल है?
राहुल गांधी: भाजपा से डूएबल नहीं है. उन्होंने कहा था कि मनरेगा भी डूएबल नहीं है. किसानों की कर्ज़ा माफ़ी भी डूएबल नहीं है! उनसे डूएबल नहीं है!
लिख लें- चुनाव परिणाम आज यहीं से तय हो गया है! नैरेटिव सेट है अब! अंबानी के चेले जाएंगे! किसान-युवा जीत के आएंगे!
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मोदी की सारी योजनाएं: चाहे फसल बीमा हो या आयुष स्वास्थ्य बीमा- सब में बिचौलिया बीमा कम्पनी- खासतौर पर अंबानी
कांग्रेस: मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, ज़मीन अधिग्रहण, आरटीआई, अब न्याय, स्टार्ट अप और स्वास्थ्य योजना: सार्वभौमिक, कोई बिचौलिया कंपनी नहीं।
बाकी 1000 का प्रीमियम भर के 1 रुपये का मुआवजा लेना हो तो मर्ज़ी आपकी!
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भाजपा पहले भी सत्ता में आती रही थी- प्रदेशों से लेकर देश तक. वाजपेयी 1977 में ही केंद्रीय मंत्री बन चुके थे. 1996 में सीधे पीएम भले ही पहले सिर्फ 13 दिन के लिए. फिर 1998 से 2004 तक लगातार।लोग पहले भी राजनैतिक असहमतियाँ रखते थे- परिवार में ही पति पत्नी और बाप बेटे तक अलग अलग पार्टियों के साथ मिलते थे.
हमारे पूरब में तो यह नज़ारा बहुत आम है क्योंकि बहुत बार खानदानी कांग्रेसियों के बेटे बेटियों की शादी खानदानी जनसंघियों के घर हो जाती थी. रिश्ते देखते हुए आखिरकार लोग माली और सामाजिक हैसियत देखते थे, राजनैतिक समर्थन नहीं।
दोस्तों में तो ये असहमतियाँ बहुत सामान्य बात थीं- बचपन से अब तक के ज़्यादातर दोस्त संघी ही नहीं, घनघोर संघी रहे हैं! पूरी की पूरी पढ़ाई संघी शिशु मंदिरों में हुई ठहरी। सबसे करीबी- ज़रूरत पड़े तो जान दे देने को तैयार दोस्त भी तमाम संघी ही हैं.
वैचारिक मतभेद और निजी दोस्ती का फ़र्क़ समझ आता था तब. अब की तरह नफ़रत नहीं होती थी. भाषाई मर्यादा बनी रहती थी- लोग याद रखते थे कि वक़्त ज़रूरत एक दूसरे के काम हमें ही आना है- शादी ब्याह में टेंट लगवाने एक दूसरे ही पहुँचेंगे- न मोदी को आना है न राहुल को.
हद यह कि अब नफ़रत तक पहुँच जा रहे लोग अंधे नहीं हैं- कि मज़बूर हैं, देख नहीं पा रहे. हमारे हर्रैया के ही आज के भाजपा विधायक, पिताजी को बहुत मानते थे- अजय सिंह भैया ठीक पहले के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी थे. उसी चुनाव में बसपा प्रत्याशी रही और निजी संबंधी ममता पांडेय जी अब भाजपा में हैं.
अगल बगल देखिये- ऐसे सैकड़ों लोग मिलेंगे। भाजपा के 2014 में जीते 281 सांसदों में 100 के ऊपर चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस से भाजपा में आये थे. पिताजी के निजी मित्र, हर शादी ब्याह में घर आने वाले जगदंबिका पाल चाचा सहित।
नफ़रत पर उतर आए रहे लोगों को क्या ये दिखता नहीं? शायद नहीं। संभ्रांत परिवारों की महिलाओं को भी फटति फटतः फटंती जैसी असभ्य भाषा बोलते हुए ज़रा सा भी समझ नहीं आता कि अपने बेटे बेटियों के लिए वे कैसा समाज गढ़ रहे हैं?
राहुल गांधी की आलोचना ठीक है- पर उन्हें और उनकी माँ को अभद्र गालियाँ देते हुए उन्हें नहीं लगता कि उनकी पोस्ट्स उनके परिवार के लड़के भी पढ़ रहे हैं- वे क्या सीखेंगे।
पर इन सब बातों से बहुत ऊपर जो मेरी निजी दिक्कत है वह यह कि अब इसका असर अपने ऊपर भी पड़ने लगा है- मानसिक स्तर पर दिक्कत होने लगी है. कल तक अपने रहे इन गालीबाजों की गालियाँ देखता हूँ तो निजी स्तर पर दिक्क्त होने लगती है- मानसिक तनाव होने लगता है.
कल एक पर फट ही पड़ा- जीवन भर दीदी कहने मानने और सम्मान करने के बावजूद- मैडम फ़िरोज़ गांधी की तस्वीर लगा कर पूछ रही थीं कि एक प्रधानमंत्री का दामाद, एक का पति, एक का पिता और एक एक सुपर पीएम का ससुर- उसे सोनिया और राहुल याद क्यों नहीं करते। हमने पूछा कि चलिए वे बहुत गलत हैं- पर मोदी मंत्री मेनका गांधी के ससुर और भाजपा सांसद वरुण गांधी के दादा भी तो हैं- उन्हें किसने रोका है!
मैडम के पास जवाब नहीं था- समर्थकों के पास गालियां थीं- हम भड़के तो हमने लौटा दीं. फिर अफ़सोस हुआ- उन्ही के स्तर पर उतर आने का नहीं- वह अब लाज़िमी है.
इसका कि ये एक आदमी कितने निजी रिश्ते खायेगा- कितने संबंध तोड़ेगा-दशकों के सम्बन्ध! खून पानी देकर निभाए गए सम्बन्ध।
खैर- मेरी मित्रता सूची में मौजूद मोदी भक्तों से आग्रह है कि कम से कम 23 मई तक के लिए खुद ही हट जाएँ। अमित्र कर दें- फेसबुक पर न सही रिश्ते बच जाएंगे।
आप नहीं हटे और आपकी पोस्ट्स पर सोनिया राहुल से लेकर किसी को दी गई गालियॉँ निजी स्तर पर लूँगा और पलट के बरसाऊंगा। ध्यान रहे- आलोचना से कोई दिक्कत नहीं है. बात गालियों की है. आपने दी तो आप खाएंगे। रिश्ते चूल्हे भाड़ में गए.
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारवादी अविनाश पांडेय उर्फ समर अनार्या की एफबी वॉल से.