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सियासत

टीवी पत्रकार अभिषेक उपाध्याय कहिन- आखिर कांग्रेस ने अपना चेहरा दिखा ही दिया!

Abhishek Upadhyay : आखिर कांग्रेस ने अपना चेहरा दिखा ही दिया। वोटबैंक के सफेद पाउडर के पीछे से झांकता अवसरवाद की कालिख से रंगा पुता काला चेहरा। यूपी में सपा-बसपा के गठबंधन से घबराई कांग्रेस ने तीन तलाक जैसी बर्बर प्रथा को खत्म करने वाला कानून ही खत्म करने का ऐलान कर दिया। यही कांग्रेस का इतिहास है। समय की डायरी में दर्ज यही उसकी पहचान है। दरअसल तुष्टीकरण कांग्रेस का वो सबसे निचला स्तर है जिसमें एक पूरी कौम को वोट बैंक का टूथपेस्ट बना दिया जाता है।

मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए नेहरू गांधी परिवार के वारिस चुनावों की दावत में जाने से पहले अपने दांतों में इसी टूथपेस्ट का नमक निचोड़ लेते हैं और इंसानी संवेदना को पेट भरने वाली पत्तलों में परोस देते हैं। राहुल गांधी को लग रहा होगा कि तीन तलाक की भयावह प्रथा के साथ खड़े होकर वे एकमुश्त मुसलमान वोटों की खेती कर लेंगे। सो जिस बीमारी को दुनिया के 22 मुसलमान मुल्कों ने खारिज कर दिया, उसी के साथ खड़े हो गए। परंपरा की जिस दकियानूसी गेंद को पाकिस्तान, सीरिया, इराक और मिश्र जैसे मुल्कों ने ठोकर मार दी, उसको ही उछाल उछालकर चुनावी वर्ल्ड कप की प्रैक्टिस करने चल दिए। यही मुगालता कभी उनके बाबू जी को भी हो गया था।

राजीव गांधी ने भी यही मान लिया था कि एकतरफा तलाक की शिकार 62 साल की बेचारी शाहबानो की जीविका का हक मारकर देश भर के मुसलमान मर्दों को अपने वोट बैंक का चारा बना लेंगे। सो संसद में कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उलट दिया। अब चूंकि इंसानी हक और हुकूक की कब्र पर खड़े होकर तुष्टीकरण कर रहे थे सो अंजाम सोचकर डर भी लगा। फिर क्या था, इसी डर ने हिंदुओं के तुष्टीकरण के दरवाजे पर दस्तक दे दी। राजीव गांधी ने अब हिंदुओं का तुष्टीकरण शुरू कर दिया। पहले राम लला का ताला खुलवाया। फिर शिलान्यास करवा दिया। मगर शाहबानो के साथ हुई नाइंसाफी की ये लाठी राजनीति के तमाम दाव पेचों पर भारी पड़ी। हिंदू उनके साथ आए नही। मुसलमान साथ रहे नही। और अयोध्या में जाकर राम राज्य के नारे के साथ चुनाव प्रचार की शुरुआत करने वाले राजीव गांधी 1989 का चुनाव बुरी तरह हार गए।

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राहुल गांधी भी अब उसी जमीन पर कदम आगे बढ़ा चुके हैं। उनके पास अमेठी में विकास का कोई रोडमैप नही है। यूपीए के पूरे दस सालों में वे अमेठी में विकास का तिनका नही उगा सके। मगर तीन तलाक खत्म करने का पूरा ब्लू प्रिंट तैयार करके बैठे हैं। देश भर में तीन तलाक की मार से कांपती औरतें उनके लिए कोई मायने नही रखतीं। उनकी चीख, उनकी गुहार, उनकी याचना, गुजारिश, तड़प, उनकी आवाज, सब की सब वोट बैंक के तराजू पर कागज के गोले जैसा वजन रखती है। अगर प्रधानमंत्री बनने की कीमत इंसानी तकलीफों का ऐसा खुरदुरा कारोबार है तो खुदा बचाए ऐसे प्रधानमंत्री से!

वरिष्ठ टीवी पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की एफबी वॉल से.

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https://www.facebook.com/bhadasmedia/videos/2026152174119723/
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