हमलावर लोग कायर होते हैं, इसलिए हारना अंततः उन्हें ही होता है…

Anoop Gupta : पत्रकार यशवंत सिंह पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के बाहर हमला किया गया और पुलिस की चुप्पी तो समझ आती है, प्रेस क्लब की चुप्पी के मायने क्या हैं। अगर यशवंत का विरोध करना ही है तो लिख कर कीजिये, बोल कर कीजिए, हमला करके क्या साबित किया जा रहा है। मेरा दोस्त है यशवंत, कई बार मेरे मत एक नहीं होते, ये जरूरी भी नहीं है लेकिन हम आज भी दोस्त हैं। चुनी हुई चुप्पियों और चुने हुए विरोध से बाहर निकलने की जरूरत है।

अनुदानित दरों पर भूखण्ड हथियाने के बावजूद सरकारी मकानों का सुख भोग रहे पत्रकारों की लिस्ट देखें

नैतिकता के चोले में रंगे सियार (पार्ट-तीन) : सैकड़ों पत्रकार ऐसे हैं जिन्हें तत्कालीन मुलायम सरकार ने रियायती दरों पर भूखण्ड और मकान उपलब्ध करवाए थे इसके बावजूद वे सरकारी आवासों का मोह नहीं त्याग पा रहे। इनमें से कई पत्रकार ऐसे हैं जिनके निजी आवास भी लखनऊ में हैं फिर भी सरकारी आवासों का लुत्फ उठा रहे हैं जबकि नियम यह है कि सरकारी आवास उन्हीं को दिए जा सकते हैं जिनका निजी आवास लखनऊ में न हो। कुछ पत्रकारों ने रियायती दरों पर मिले मकानों को किराए पर देकर सरकारी आवास की सुविधा ले रखी है तो कुछ सरकारी आवासों को ही किराए पर देकर दोहरा लाभ उठा रहे हैं।

कम्पनी में कमाल खान, रुचि कुमार और शरत चन्द्र प्रधान का कितना शेयर है?

नैतिकता के चोले में रंगे सियार (पार्ट-दो) : हुआ यूं कि तत्कालीन मुलायम सरकार के कार्यकाल में राजधानी लखनऊ के अति विशिष्ट इलाके गोमती नगर में पत्रकारों के लिए रियायती दरों पर भूखण्डों की व्यवस्था की गयी थी। भूखण्ड पंजीकरण आवंटन पुस्तिका के 3.7 कालम में स्पष्ट लिखा हुआ है कि भूखण्ड उन्हीं पत्रकारों को दिया जायेगा जो वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 के अधीन आते हैं। गौरतलब है कि इलेक्ट्राॅनिक चैनलों को इस एक्ट में शामिल नहीं किया गया है। तत्कालीन अखिलेश सरकार के कार्यकाल में इस एक्ट में संशोधन किए जाने के लिए आवाज उठायी गयी थी, लेकिन मौजूदा समय तक इस एक्ट में कोई संशोधन नहीं किया गया है। लिहाजा खबरिया चैनल में काम करने वाले पत्रकारों को पत्रकार माना ही नहीं गया है।

कमाल खान रियायती दरों पर दो-दो प्लाट का लाभ लेने के बाद भी बटलर पैलेस के सरकारी आवास पर कब्जा जमाए हुए हैं!

नैतिकता के चोले में रंगे सियार (पार्ट-एक) : नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार स्वयं कितने अनैतिक हैं इसका खुलासा ‘दृष्टान्त’ की पड़ताल में नजर आया। मीडिया के क्षेत्र से जुड़े मठाधीश अपने जूनियर पत्रकारों को तो इमानदारी से पत्रकारिता करने की सीख देते हैं, लेकिन वे स्वयं कितने बेईमान हैं, इसकी बानगी कुछ चुनिन्दा पत्रकारों के पन्ने खुलते ही नजर आ जाती है। खबरिया चैनल से लेकर अखबारों और मैगजीन से जुड़े पत्रकारों ने सरकार की चरण वन्दना कर जमकर अनैतिक लाभ उठाया। जानकर हैरत होगी कि कोई करोड़ों की लागत से आलीशान कार्यालय और बेशकीमती कारों का मालिक है तो किसी के पास अथाह जमीन-जायदाद। कोई फार्म हाउस का मालिक बना बैठा है तो किसी के पास कई-कई मकान हैं।

अखिलेश यादव जी, कहां हैं हत्यारे?

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कार्यकाल लगभग समाप्ति के दौर में है। अगली सरकार के लिए जद्दोजहद अंतिम चरण मे है। अखिलेश यादव पूरे पांच वर्ष तक सूबे की सत्ता पर निष्कंटक राज करते रहे लेकिन इस दौरान उन्होंने एक बार भी डॉ. योगेन्द्र सिंह सचान हत्याकाण्ड को लेकर किए गए वायदों को याद करने की कोशिश नहीं की। बताना जरूरी है कि अखिलेश यादव ने (डॉ. सचान हत्याकाण्ड के दो दिन बाद 24 जून 2011) पत्रकारों के समक्ष डॉ. सचान की मौत को हत्या मानते हुए सीबीआई जांच की मांग की थी। डॉ. सचान के परिवार से भी वायदा किया था कि, उन्हें न्याय दिलाने के लिए किसी भी हद तक जाना पड़े, वे और उनकी समाजवादी पार्टी पीछे नहीं हटेगी। लगभग छह साल बाद की तस्वीर यह बताने के लिए काफी है कि अखिलेश यादव ने अपना वायदा पूरा नहीं किया। डॉ. सचान का परिवार पूरे पांच वर्ष तक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से न्याय की आस लगाए बैठा रहा। शायद डॉ. सचान की आत्मा भी मुख्यमंत्री  से यही पूछ रही होगी कि, कहां हैं हत्यारे!!

‘दृष्टांत’ मैग्जीन में प्रकाशित हुई मुलायम खानदान की अकूत संपत्ति पर कवर स्टोरी

लखनऊ से अनूप गुप्ता के संपादकत्व में निकलने वाली चर्चित मैग्जीन दृष्टांत में जो कवर स्टोरी है, वह पठनीय तो है ही, आंख खोल देने वाली भी है. जिस अखिलेश यादव के ढेर सारे लोग प्रशंसक हैं और उनमें जाने कौन कौन से गुण देखते हैं, उसी के शासनकाल में जो लूटराज अबाध निर्बाध गति से चला है, वह हैरतअंगेज है. अब जबकि चुनाव में चार दिन शेष रह गए हैं तो सब के सब पवित्र और पुण्यात्मा बन सत्ता व संगठन के लिए मार कर रहे हैं ताकि जनता मूल मुद्दों से भटक कर इनमें उनमें नायकत्व तलाशे. नीचे पूरी कवर स्टोरी है ताकि आप सबकी समझदानी में लगा झाला खत्म हो सके.

-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया

मैं यादव सिंह से ना तो कभी मिला और ना ही देखा : नवनीत सहगल

भड़ास4मीडिया के पास लखनऊ से प्रकाशित होने वाली पत्रिका दृष्टांत के संपादक अनूप गुप्ता का एक मेल आया है जिसमें दावा किया गया है कि सीबीआई के समक्ष यादव सिंह की गवाही से यूपी के सीनियर ब्यूरोक्रेट नवनीत सहगल के भ्रष्टाचार पर से पूरी तरह से पर्दा उठ जाएगा. श्री गुप्ता का कहना है कि इस काम में राष्ट्रीय हिन्दी समाचार पत्रिका दृष्‍टांत की तरफ से शीघ्र ही समस्त दस्तावेजों के साथ नवनीत सहगल के खिलाफ एक चौंकाने वाला खुलासा किया जाएगा.

‘दृष्टांत’ मैग्जीन के संपादक अनूप गुप्ता के खिलाफ लखनऊ में नया मुकदमा

लखनऊ से प्रकाशित क्रांतिकारी मैग्जीन ‘दृष्टांत’ के संपादक अनूप गुप्ता के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज करा दिया गया है. यह एफआईआर मैग्जीन के पंजीकरण हेतु फर्जी दस्तावेजों के लगाने से संबंधित है. वहीं अनूप गुप्ता का कहनाा है कि भ्रष्ट नौकरशाहों से लेकर भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट मंत्रियों की पोल लगातार खोलने के कारण …

पढ़िए ‘दृष्टांत’ मैग्जीन की कवर स्टोरी : काशी का कलंक

लखनऊ से निकलने वाली चर्चित मैग्जीन ‘दृष्टांत’ की कवर स्टोरी इस बार भी यूपी के बदनाम आईएएस नवनीत सहगल पर केंद्रित है. यह नौकरशाह मायावती का भी प्रिय रहा है और इन दिनों अखिलेश यादव का भी प्रिय अफसर है. ‘दृष्टांत’ मैग्जीन के संपादक अनूप गुप्ता ने अबकी कवर स्टोरी में बनारस के विश्वनाथ मंदिर को लेकर बताया है कि किस तरह सौ करोड़ हिंदुओं की आस्था के इस प्रतीक का सौदा नवनीत सहगल ने मुंबई की एक कंपनी के साथ कर लिया था. पूरी कवर स्टोरी नीचे प्रकाशित है>>

लुटेरा अभियंता : आरोपी होने के बावजूद अरुण मिश्र बना सरकार का चहेता

तकरीबन तीन वर्ष पूर्व 2012 में जब युवा मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव ने पद की शपथ ली तो उम्मीद जगी थी कि आधुनिक सोच और जोश के आगे भ्रष्टाचार फीका पड़ जायेगा। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने दावा भी यही किया था कि सूबे की जनता को भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन मिलेगा। छत्तीस महीने गुजर जाने के बाद जब पिछले दिनों अखिलेश सरकार ने कागजी उपलब्धियों को गिनाना शुरू किया तो सत्ता विरोधी दलों ने सरकार की खामियों का पिटारा खोल दिया। यह बात स्वयं मुख्यमंत्री भी अच्छी तरह से जानते हैं कि तीन वर्ष की उपलब्धियों का बखान करने के लायक उनके पास कुछ नहीं था। इसके बावजूद सरकारी चमचों ने लाखों के विज्ञापनों के सहारे सरकार की उपलब्धि की बढ-चढ़कर चर्चा की। 

340 करोड़ की योजना में घोटाला : दम तोड़ता तंत्र

जे.एन.एन.यू.आर.एम योजना के तहत कानपुर शहर के इनर ओल्ड एरिया में पेयजल व्यवस्था दुरूस्त करने की गरज से तत्कालीन मायावती सरकार के कार्यकाल में 340 करोड़ की योजना को मंजूरी दी गयी थी। इसे सम्बन्धित अधिकारियों की लापरवाही कहें अथवा रिश्वतखोरी के लिए उपयुक्त ठेकेदार का चयन, काम देर से शुरू होने के कारण इस योजना की धनराशि भी बढ़कर 363 करोड़ हो गयी। विडम्बना यह कि इसके बावजूद उक्त योजना का कार्य वर्तमान समय तक पूरा नहीं हो सका। 

सपा का भस्मासुर (तीन) : क्या कहती है जांच समिति की रिपोर्ट!

पूर्व में फर्म की कार्यवाही की जानकारी होते हुए पुनः विलम्ब के लिए जुर्माना निर्धारित न किया जाना दुरभिसंधि को इंगित करता है। यह जुर्माना 9 फरवरी 2012 को, अनुबंध समाप्त होने के पश्‍चात आरोपित किया गया। यहॉं पर यह भी इंगित किया जाता है कि मैसर्स टी0पी0एल0 को पाईपों की जॉंच हेतु रखा गया था। परन्तु यह विचारणीय है कि 52 दिनों ( 20-9-11 से 12-11-11 तक ) के भीतर लगभग 8-9 किमी0 पाईप ( लगभग 160 मी0 प्रतिदिन) की इतनी बड़ी टेस्टिंग न तो फर्म स्तर पर ही संभव थी एवं न ही मैसर्स टीपीएल स्तर पर। 

फर्जी सर्कुलेशन से यूपी में अरबों की लूट

भ्रष्टाचार की खबरों को नमक-मिर्च लगाकर परोसने वाला कथित ‘चतुर्थ स्तम्भ’ स्वयं कितना भ्रष्ट है, इसका अंदाजा उसकी फर्जी प्रसार संख्या केा देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। यूपी की जनसंख्या (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 20 करोड़) से कहीं अधिक दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार संख्या है। यह चौंकाने वाला आंकड़ा सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशालय की कम्प्यूटर शाखा में दर्ज है। एक हजार से भी ज्यादा अखबार सरकारी विज्ञापन की लालसा में सूचीबद्ध हैं जबकि बाजारों और घरों में गिने-चुने अखबार ही नजर आते हैं। 

मिशन से दलाली के धंधे में बदला अखबारों का प्रकाशन!

: पत्रकार संगठन भी दोषी : अखबारों के फर्जीवाड़े के लिए पत्रकार संगठन भी दोषी हैं। नाम और दाम कमाने के फेर दुकानदारों से लेकर ठेकेदार तक इन्हीं पत्रकार संगठनों के सहारे अखबारों का संचालन कर रहे हैं। इनके प्रकाशक खुलेआम नियम-कानूनों का उल्लंघन कर विज्ञापन के सहारे भारी मुनाफा कमा रहे हैं। यही नहीं ऐसी संस्थाएं नौसिखिए कथित पत्रकारों और नए प्रकाशकों के लिए संजीवनी भी बनी हुई हैं। ये संस्थाएं अखबार, मैगजीन का रजिस्टे्शन से लेकर डीएवीपी और यूपीआईडी भी करवाने का ठेका लेती हैं। आश्चर्य इस बात का है कि सही सर्कुलेशन दिखाने वालों को महीनों सूचना विभाग के चक्कर लगाने पड़ते हैं जबकि इन संस्थाओं के कथित दलाल आसानी से सारे काम करवा देते हैं। 

दृष्‍टांत ने खोली फर्जी सर्कुलेशन से सरकारी खजाना लूटने वालों की पोल

लखनऊ की आबादी से भी कई गुना अखबारों की प्रसार संख्या है। जबकि इस आबादी के आधार पर पांच सदस्यों वाले परिवार से डिवाइड कर परिवारों की संख्या की बात की जाए तो लखनऊ में 25 लाख से ज्यादा परिवार नहीं हो सकते। यह भी सत्य है कि औसतन एक घर में एक ही अखबार पढ़ा जाता है। कुछ घरों में चार से पांच-पांच अखबार भी आते हैं तो दूसरी ओर गरीब परिवार के लोग चाय की दुकानों पर जाकर ही समाचार-पत्र पढ़ लेते हैं। एक जानकारी के अनुसार 10 प्रतिशत लोग दूसरों से मांगकर अखबार पढ़ते हैं। यदि इस तरह से देखा जाए तो लखनऊ के लिए 8 से 10 लाख का सर्कुलेशन भी काफी ज्यादा होगा। 

अरबपति संपादक संजय गुप्‍ता के पास नहीं हैं किराए के 77 हजार रुपए!

: दर्जनों पत्रकारों पर सरकारी आवास का बकाया : लखनऊ। सरकार और आम जनता के बीच सेतु सरीखा दायित्व निभाने वाला मीडिया आज खलनायक की भूमिका में है। यदि कुछ गिने-चुने पत्रकारों को अपवाद स्वरूप मानकर छोड़ दिया जाए तो ये हालत पूरे देश की मीडिया से जुडे़ पत्रकारों की है। खासतौर से यूपी की राजधानी लखनऊ के तथाकथित पत्रकारों की भूमिका सर्वाधिक संदेह के दायरे में है। जो ‘सिंगल कॉलम’ खबर लिखने का तरीका नहीं जानते वह यूपी सरकार के अधीन सूचना विभाग की सूची में श्रेष्ठ पत्रकारों की श्रेणी में आते हैं।

कानून मेरे ठेंगे पर : सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद भी हेमंत तिवारी से नहीं की गई वसूली

सत्ता और जनता के बीच सेतु का काम करने वाली मीडिया राज्य सरकारों के समक्ष नायक और निर्णायक की भूमिका में रही है, लेकिन पिछले दो दशकों के दौरान मीडिया से जुड़े ज्यादातर पत्रकारों के बीच उपजी लालसा ने उसकी गरिमा को खासी चोट पहुंचायी है। सरकारी लाभ लेने से लेकर अवैध उगाही में लिप्त कथित धंधेबाज पत्रकारों ने मीडिया के दायित्वों और उसके मिशन को अर्श से फर्श पर ला पटका है।