अपराध करा रहे दैनिक जागरण के कई अधिकारी, कर्मचारियों के विरोध पर लौट गए पुलिस वाले

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दैनिक जागरण प्रबंधन एक ऐसी आग को हवा दे रहा है, जिससे आमतौर पर इतिहास बदल जाया करते हैं। हम आपको बता चुके हैं कि सोमवार को सर्बर बैठने के बाद हड़ताल की आशंका से दैनिक जागरण की नोएडा यूनिट के परिसर में पुलिस बुला ली गई थी। इसका कर्मचारियों ने कड़ा विरोध किया और पुलिस वालों को लौट जाना पड़ा।पिछले दिनों की घटनाओं पर गौर करें, तो यह बात साफ हो जाएगी कि दैनिक जागरण प्रबंधन अखबार की ताकत का प्रदर्शन कर एक ओर अपराधियों को संरक्षण दे रहा है तो दूसरी ओर देश की पुलिस को अपनी बपौती समझने लगा है। पुलिस वाले भी दैनिक जागरण की आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा ही दे रहे हैं।

अपराध नंबर एक-बाल श्रम कानून का उल्‍लंघन

दैनिक जागरण की नोएडा यूनिट परिसर में शाम को बाल श्रम का खुला खेल नजर आने लगता है। कच्‍ची उम्र के बच्‍चे मशीन चलते ही अखबार का बंडल बांधने की आपाधापी में लग जाते हैं। इस ओर कभी भी उपश्रमायुक्‍त का ध्‍यान नहीं गया, जबकि उनके आफिस में कई बार शिकायत भी की जा चुकी है और उनके कार्यालय के इंस्‍पेक्‍टरों ने कई बार दैनिक जागरण परिसर में छापा भी मारा है।

अपराध नंबर दो-अपराधियों को संरक्षण

अखबार का बंडल बांधने की टीम में कुछ ऐसे लोगों को भी शामिल कर लिया गया है, जो लूटपाट व राहजनी आदि वारदात को अंजाम देते हैं। वे जागरण परिसर में शरण लिए रहते हैं और कम पैसे में दैनिक जागरण का काम भी निपटा देते हैं। बड़े समाचार पत्र समूह की आभा से चकाचौंध होकर पुलिस इन अपराधियों पर हाथ नहीं डाल पाती और ये अपराधी समाज के लिए मुसीबत बने रहते हैं।

अपराध नंबर तीन-कर्मचारी पर हमला कराया और जांच में नहीं किया सहयोग

फरवरी में दैनिक जागरण प्रबंधन ने अपने ही मुख्‍य उपसंपादक श्रीकांत सिंह पर अपने गार्डों से हमला करा दिया था और उनसे 36 हजार रुपये छिनवा लिया था। उन्‍होंने पुलिस पीसीआर बुलाई, लेकिन न तो पुलिस को कोई जांच करने दी गई और न ही प्रबंधन ने जांच में कोई सहयोग किया। अपनी शिकायत लेकर वह पुलिस के पास गए, तो एफआईआर दर्ज करने में असमर्थता जता दी गई। अंत में वह अपनी शिकायत लेकर वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक डॉक्‍टर प्रीतेंद्र सिंह के पास गए तब जाकर जांच का आदेश जारी किया गया। इस मामले में मुख्‍य महाप्रबंधक नीतेंद्र श्रीवास्‍तव, कार्मिक प्रबंधक रमेश कुमार कुमावत और दिल्‍ली-एनसीआर के संपादक विष्‍णु प्रकाश त्रिपाठी को पार्टी बनाया गया है। नीतेंद्र और विष्‍णु त्रिपाठी पुलिस की कई नोटिस मिलने पर भी बयान दर्ज नहीं करा रहे हैं। अखबार की धमक के आगे पुलिस असहाय नजर आ रही है, जबकि शिकायत पर जांच का आदेश 24 फरवरी 2015 को ही जारी कर दिया गया था।

अपराध नंबर चार-ड्रग की तस्‍करी करा रहा है जीएम

दैनिक जागरण के जम्‍मू कार्यालय से सूचना मिली है कि वहां पर सिटी आफिस में कार्यरत एक कर्मचारी को ड्रग की तस्‍करी के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। तस्‍कर की बहन भी सिटी आफिस में काम करती हैं, जिससे जीएम के अवैध संबंध हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि जीएम ने शादी नहीं की है और उस तस्‍कर की बहन को अपने वाहन से पिक करने जीएम स्‍वयं जाता है। उसने उस अपनी चहेती की सैलरी भी साढ़े तीन हजार रुपये बढ़ाई है। इतनी धनराशि में उसने तीन कर्मचारियों को निपटा दिया है। बताया जाता है कि उसका अवैध साला इससे पहले भी पुलिस के शिकंजे में आया था, लेकिन संपादक के पद काे भी सुशोभित कर रहा जीएम हमेशा उसे अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल कर बचाता रहा। इस बार ड्रग तस्‍करी में आतंकियों के शामिल होने की आशंका से पुलिस सख्‍त हो गई और ड्रग तस्‍कर पुलिस के हत्‍थे चढ़ गया। हालांकि नोएडा में तैनात विष्‍णु प्रकाश त्रिपाठी ने इस मामले को गंभीरता से लिया है, क्‍योंकि जीएम से उनकी कभी नहीं पटी।

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Comments on “अपराध करा रहे दैनिक जागरण के कई अधिकारी, कर्मचारियों के विरोध पर लौट गए पुलिस वाले

  • hey sanjay says:

    हे संजय!!!

    नईदुनिया के धृतराष्ट्र को समझाओ.

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    हे संजय!!!

    कैसे तुमने हस्तिनापुर में कौरवों और पांडवों के बीच का युद्ध देख लिया था और साफ-साफ बता
    दिया था अंधे राजा धृतराष्ट्र को। यहां तो राजा भी तुम्हीं हो, हस्तिनापुर भी तुम्हारा, कौरव भी तुम्हीं हो और पांडव भी तुम्हीं हो। फिर कहां चली गई तुम्हारी वह दिव्य दृष्टि कि कुछ भी नहीं देख पा रहे हो।

    नईदुनिया नामक हस्तिनापुर में जो महाभारत हो रहा है, वह तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा? यहां आनंद नाम का स्वयं-भू राजा तुम्हारा बाजा बजा रहा है और तुम आंख बंद किए बैठे हो? यह आनंद नामक धृतराष्ट्र एक-एक करके सभी भीष्म, कर्ण, द्रोण आदि को मौत के घाट उतारे जा रहा है और उसकी जगह कई-कई शकुनियों को पाल रहा है। मध्यप्रदेश की पत्रकारिता के इस सुनहरे इतिहास की रक्षा करो संजय! इस द्रोपदी की लाज बचाओ संजय!

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    हे संजय! तुम जागरण दिल्ली के राजनीतिक पत्रकार प्रशांत मिश्र को जानते ही होंगे। उनकी बेटी की शादी थी। उस शादी में महंगा गिफ्ट लेकर पहुंचा था आनंद पांडे। उस गिफ्ट ने प्रशांत को इतना प्रसन्न् कर दिया कि उसने आनंद को नईदुनिया में “अमर संपादक” बने रहने का वचन दे दिया। लेकिन उस कीमती तोहफे के लिए जो तैयारी की गई, उसने इस पवित्र-पुरातन-पूजनीय नईदुनिया पर वो दाग लगा दिया जो कभी धोया नहीं जा सकेगा. बैतूल में पुलिस महकमे में टीआई स्तर से खुली वसूली हुई, भोपाल स्टेट ब्यूरो के एक मुंहलगे रिपोर्टर ने सचिवालय में खुलेआम भीख मांगी, ये भी तो पता लगवाइए कि कैसे भोपाल के एक सांध्य दैनिक के मालिक ने मोटी रकम के एवज में नवदुनिया में कितनी स्पेस गिरवी रखी और अब उसके इशारे पर नवदुनिया भोपाल समेत सागर, बैतूल, होशंगाबाद में क्या-क्या लिखा/बोला/छापा जा रहा है. मजे की बात यह भी है कि भोपाल के नए नवेले संपादक को भी इसमें शामिल कर लिया है। और वो शातिर भोपाल में बने रहने के लिए हर रोज सब कुछ दांव पर लगा रहा है। दो पैसे की कीमत रखने वाले छोटे-छोटे गली मोहल्‍ले के नेता एक दूसरे को निपटा रहे हैं। संजय, तुम्हारे जैसा दूरदृष्टि रखने वाला महामना इस षडयंत्र को नहीं पकड़ पा रहा है। अब तो जागो संजय! अरे भाई ज्‍यादा कुछ मत करो, केवल बताए गए शहरों के अखबार की दिखवा लो।

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    तुम्हारी आंखों में तुम्हारे आसपास के ही लोगों ने परदा डाल रखा है, इसलिए कुछ दिखाई नहीं
    दे रहा है, वरना यह तो दिखता ही कि नईदुनिया में कदम रखते ही आनंद ने अखबार की ऐसी
    की तैसी करनी शुरू कर दी और अपने लोगों को आनंद बांटने लगा। काम करने वाले जो पुराने
    लोग थे, उन्हें नाकारा साबित कर नाकारा लोगों की फौज भरने लगा। संपादकीय सहयोगियों
    की ऐसी बेइज्जती करने लगा कि उज्जवल शुक्ला और मधुर जोशी जैसे लोग जो टेलीप्रिंटर की
    रीढ़ की हड्डी थे, प्रमुख प्रतिद्वंद्वी अखबार दैनिक भास्कर चले गए। सचिन्द्र श्रीवास्तव और प्रशांत वर्मा ने खुलेआम बगावत क्यों की? सिटी डेस्क में समर्पित होकर काम करने वाला सत्यपाल राजपूत भी दैनिक भास्कर चला गया।

    जिन लोगों को इसने नाकारा माना वे आज भास्कर में बड़ी भूमिका का निर्वाह करने लगे। उल्टे जिन लोगों की भास्कर में कुत्ते जैसी स्थिति थी, वे नईदुनिया की बड़ी कुर्सी पर बैठ गए
    और अखबार की लुटिया डुबोने लगे।

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    मनोज प्रियदर्शी नामक मूर्खों के राजा को टेलीप्रिंटर डेस्क लीड करने को दे दिया गया। इस बिहारी बाबू की योग्यता कुल इतनी है कि वो आनंद
    का पठ्ठा है, बाकी दस शब्दों का एक वाक्य लिखने में चार जगह लिंग और मात्राओं की गड़बड़ी
    ठोक देता है। मालवा में बिहार का तड़का मारता है। भास्कर 27 हजार रुपए भी नहीं देता
    था, यहां 40 हजार में ताजपोशी हो गई। और कुछ नहीं करवा सको तो इतना तो करो संजय कि दिल्ली बुलाकर इसका टेस्ट ही ले लो, जो जिम्मेदारी इसे दी गई है, वो उस योग्य है भी या नहीं? आंखें खोलो संजय!

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    एक और कृपापात्र हैं आनंद पांडे के श्रीमान प्रमोद त्रिवेदी। शिखाधारी। दिनभर उड़ान भरता
    रहता है। पूरे संपादकीय विभाग में घूम-घूमकर मोबाइल पर बात करते रहना ही एकमात्र
    योग्यता है। इसे आनंद पांडे का बहनोई कहा जाता है। रिश्तेदारी निभाने के लिए इसे यहां
    लाया गया। इसने भास्कर जबलपुर में काम किया है, जिसकी भास्कर ग्रुप में ही कोई औकात
    नहीं है। कई महीनों से खाली बैठा था। 22-23 हजार रुपए पाता था, अब 40 हजार रुपए में
    सीनियर एनई है। चार महीने में चार खबरें दे चुका है। खबरों के हिसाब से कीमत लगाई जाए
    तो एक खबर के 40 हजार। ये क्या हो रहा है संजय!

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    सिटी डेस्क पर नितिन शर्मा नामक प्राणी आए हैं। यह भी भास्कर में सिटी डेस्क में सब
    एडिटर था, यहां डीएनई बन गया है। तनख्वाह भी 27 हजार से 36 हजार हो गई है। किसी से भी पूछवा लीजिए इसकी योग्यता बस इतनी है कि जी-हुजूरी के साथ खुफियागिरी कैसे की जाए। भास्कर में इस हरिराम नाई के जाने से मिठाई बांटी गई थी. अब ये नईदुनिया के मत्‍थे आ गया।

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    अश्विन शुक्ला सहारा समय नामक ऐसे चैनल से बुलाए गए हैं, जहां चार महीने से तनख्वाह नहीं मिल रही थी। यहां प्रदेश कॉर्डिनटेर बनकर मलाई छान रहे हैं। आता न जाता भारत माता हैं। गुजारा भत्ता भी 45 हजार से ऊपर कूट रहे हैं।

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    नए साहब महेंद्र श्रीवास्तव बुलाए गए हैं। आपके उत्तर प्रदेश से ही मालवा की धरती पर उतरे हैं। ये भी किसी टीवी चैनल में थे। कई महीनों से काम नहीं था तो यहां आकर संपादक वाली कुर्सी पर बैठ गए हैं। वेतन में लक्खा हैं। संपादक हैं कि नहीं, ये तो वह कुर्सी भी नहीं जानती जिस पर वे बैठे हैं। इनका इतिहास तो निकलवायिये, क्या से क्या हो गए, पाण्डेय के प्यार में.

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    हे संजय! आनंद पांडे और उनके इन गुर्गों को जितनी तनख्वाह मिलती है, उतने में बाकी पूरे
    संपादकीय विभाग को बंट जाती है। इनके दुर्व्यवहार से लोग छोड़कर भाग रहे हैं। जिस
    नईदुनिया को लोग नौकरी करने के लिए स्वर्ग मानते थे, वहां नर्क से भी बदतर स्थिति है।
    नईदुनिया को बचाओ संजय! जिन-जिन के नाम आपको बताये गए हैं उनके मोबाइल पर फ़ोन लगवाकर पता तो लगवाओ संजय! अब इसके साथ जागरण की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है, कुछ करो संजय! इसके पहले कि टाइटेनिक नाम का यह जहाज डूब जाए, इसके छेद में एमसील लगाओ संजय!

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  • Dharam Chand Yadav says:

    दैनिक जागरण में धृतराष्ट्र की kmi nhi h. himachal m bhi hal kuchh yahi h. ham to bhugat chuke h

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