जी, मैंने झूम के लाल सलाम के नारे लगाए हैं. न न, सिर्फ जेएनयू में नहीं, हम जी उन चंद लोगों में से हैं जो जेएनयू पहुँचने के बहुत पहले कामरेड हो गए थे. उन्होंने जिन्होंने महबूब शहर इलाहाबाद में लाल सलाम का नारा भर आवाज बुलंद किया है. पर जी तब हम बहुत कम लोग होते थे. तमाम तो हमारे सामने ही कामरेडी कह के मजाक उड़ाते थे हमारा. हम भी समझते थे कि बेचारे वो नहीं समझ रहे हैं जो हम समझ पा रहे हैं- रहने दो तब तक जब तक इनके सपनों की राष्ट्रवादी सरकार अडानी का बैंक कर्जा माफ़ करने के लिए इन मध्यवर्गीय भक्तों की भविष्य निधि पर टैक्स नहीं लगा देते.
फिर जी हम जेएनयू आ गए. अब हम ज्यादा हो गए थे- उनसे जिन्हें हमें न पता था कि कुछ सालों में भक्त कहा जाने वाला है. वही वे जिन्हें श्रीलाल शुक्ल राग दरबारी में चुगद कह गए हैं. हमें तो जी चुगद लोगों का भक्त हो जाना भी विकास ही लगता है (हर हर घर घर अरहर- श्रद्धानुसार जोड़ लें). पर फिर- न तो हम जेएनयू वालों के पीछे पैसा लगाने वाला अडानी था न हमारे खून में व्यापार- भारत माता की जय बोल के भारत माता को बेच देने वाला व्यापार. सो हमने एक किला तो गढ़ रखा था जी पर आगे न बढ़ पा रहे थे. उस आगे जहाँ जाति थी, जमात थी, धर्म था, समाज था. क्या है कि हम मुँह से बोलें रोटी तो लाउडस्पीकर पर रामनवमी जोत दें, हम फिर से रोटी बोलें तो उनके हज में बिछड़े भाई रोजे. तो जनाब, हमारी बात अवाम तक पहुँचे कैसे? मीडिया उनका, चैनल उनके. दिहाड़ी उनके, तिहाड़ी उनके.
बाकी जी, हमको जेएनयू से उनकी नफ़रत पता थी. अब न प्रवीण तोगड़िया जैसे हिंसक इसे मदरसा बताकर बंद करने की वकालत आज से कर रहे थे न सुब्रमणियन स्वामी जैसे अपनी बिटिया को ख़ुशी ख़ुशी दूसरे धर्म में ब्याह लव जिहाद के खिलाफ जिहाद करने वाले पाखंडी. पर फिर वही- मीडिया उनका, चैनल उनके. दिहाड़ी उनके, तिहाड़ी उनके, हमारे पास बस अपने सर और अपनी हिम्मत.
पर फिर जी एक गड़बड़ हो गयी. वे 31% को बेवकूफ बना सत्ता में आ गए. अब सत्ता में ताकत होती है, ताकत में नशा, और नशे में भीतर का सच, हिंसक, नफरत भरा सच बाहर ला देने की कैफियत. सो उन्होंने शुरू किया- डाभोलकर से पंसारे तक, दादरी से कलबुर्गी तक. अब आन्दोलन का हिस्सा सही अकेले रहने वालों को मारना आसान होता है, सो मारा भी उन्होंने. नशा और बढ़ा, हिम्मत भी. फिर वे हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी पर चढ़ गए- वहाँ साजिशों से साथी रोहित वेमुला को शहीद कर दिया. उसके बाद वही होना था जो हुआ. हैदराबाद से शुरू कर पूरा देश उठ खड़ा हुआ. अब इनमें हमेशा की तरह जेएनयू पहली कतार में था कहने की जरुरत नहीं.
अबकी इन्होने जेएनयू को निशाना बनाया #ShutDownJNU- बोले तो बंद करो जेएनयू के सपने के साथ. जी न्यूज़ जैसे मुखबिर चैनलों की मदद ली, तिहाड़ियों से फर्जी वीडिओ बनवाए, फर्जी डिग्रियों वाले वकीलों को भाड़े का गुंडा बनाया. फिर जेएनयू पर टूट पड़े, कामरेड कन्हैया को उठा लिया, ऐसे जैसे पुलिस न हो माफिया के अगवा करने वाले गुंडे हों. जी कहर तोड़ा इसमें कोई शक नहीं. कैंपस से कोर्ट तक. पर फिर कहर तो अंग्रेजों ने भी तोड़ा था, भगत सिंह, बिस्मिल अशफाक जैसे दोस्तों को मार दिया.
जेएनयू झेलता रहा, खड़ा रहा और फिर चीजें साफ़ होने लगीं. तब तक जब तक तिहाड़ी सुधीर चौधरी के फर्जी वीडिओ का, बिकाऊ अर्नब गोस्वामी के झूठ का, दलाल दीपक चौरसिया का सच बेनकाब न हो गया. लोगों को समझ आने लगा कि उद्योगपतियों का लाखों करोड़ का बैंक कर्जा माफ़ करने के लिए मध्यवर्ग की भविष्य निधि पर टैक्स कौन लगाता है. यह भी कि कौन अफज़ल गुरु के नाम पर नारे लगाने के आरोप में जेएनयू पर कहर तोड़ देने के बाद अफज़ल को शहीद बताने वाली पीडीपी के साथ सरकार बनाता है. उसके बाद जो हुआ आपके सामने है.
कामरेड कन्हैया के लौटने के साथ हवा में गूँज उठे लाल सलाम के नारे, आजादी के नारे. जिसे 1200 ने चुना था उसका इंतज़ार करते 8000 लोग. (उस 31% वाले की तुलना अपने नुकसान पर करिएगा- उसके 56 इंच में बचे 56 मिलीमीटर से कम ही बचे होंगे 31 में). और फिर वही नारे जिनपर खाकी वर्दी भीतर खाकी निकर वालों ने साथियों को उठा लिया था.
बाकी अबकी नारे जेएनयू भर में नहीं थे. वह राष्ट्रीय मीडिया पर थे- सजीव बोले तो लाइव. अबकी खिलखिलाता के अपने ऊपर हुए हमले की बात बताता जेएनयू भर में नहीं, देश भर में सुना जा रहा था. जी- बहराइच की एक लड़की उसे, जेएनयू को लाल सलाम भेज रही थी, यह साफ करके कि वह किसी कम्युनिस्ट पार्टी का हिस्सा नहीं है. देवरिया की एक लड़की बनारस ‘हिन्दू’ विश्वविद्यालय से उसके लाल सलाम का जवाब दे रही है. उसे जिसे बाराबंकी की एक लड़ाई लाल सलाम कहते हुए यह भी बता रही थी कि दो चार बार और सुना तो इश्क हो जायेगा. जी जनाब, जवाब तो लड़कों के भी बहुत आये- पर जिक्र सिर्फ लड़कियों का इसलिए क्योंकि हम जानते हैं कि आप इस बात से कितना डरते हैं. यह भी कि आपको जेएनयू से इतनी नफरत होने की एक वजह यह भी है कि गयी रात लौटे कामरेड कन्हैया के साथ खड़े साथियों में लड़कियों की तादाद लड़कों से ज्यादा न हो तो कम तो नहीं ही थी. हमें पता तो हमेशा से था कि एक दिन हमारे लाल सलाम का ऐसा ही जवाब आएगा पर उसकी वजह में आप भी शरीक होंगे इसका जरा भी अंदेशा न था साहिबान.
सो शुक्रिया जनाब मोदी, मोहतरमा ईरानी और जनाब बस्सी जी. आप न होते, आपका कहर न होता तो भले मीडिया को भी हम तक पहुँचने की फुरसत कहाँ मिलती- बाकी तिहाड़ियों को हम तक आना भी कब था.
लेखक अविनाश पांडेय समर उर्फ समर अनार्या जाने माने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारवादी और सोशल मीडिया एक्टिविस्ट हैं.
Rahul shukla
March 4, 2016 at 1:14 pm
स्मृती ईरानी नही तय करेंगी की कौन देशद्रोही है और कौन नही क्योकी हम ईरानी के बच्चे नही है!!