Manisha Pandey : मैं पिछले दिनों एक स्टोरी पर काम कर रही थी – रीराइटिंग माइथोलॉजी। उस सिलसिले में काफी कुछ माइथोलॉजी से गुजरना हुआ और एक नई बात उजागर हुई। हालांकि डर है कि ये कहने से एक खास प्रगतिशील जमात का टैग न मिल जाए। तो मैडम लौट गईं आप भी हिंदूवादी जड़ों की ओर टाइप। ओह। बट हू केयर्स। जब मैं जबानदराज और बैड कैरेक्टर वुमन होने के टैग से बेपरवाह हूं तो इस टैग की किसे पड़ी है। तो ये रहा किस्सा। दो चित्र हैं देवियों के। पार्वती और लक्ष्मी। एक में पार्वती शिव की छाती पर सवार हैं। बेचारे जमीन पर पड़े हैं और पार्वती विकराल रूप धारण किए उनके सीने पर चढ़ी हुई हैं। दूसरे में लक्ष्मी क्षीरसागर में लेटे हुए विष्णु के पांव दबा रही हैं।
तो इन तस्वीरों की नारीवादी व्याख्या कुछ इस तरह होगी। पहली में पार्वती नारी शक्ति का प्रतीक हैं और दूसरे में लक्ष्मी दास स्त्री का। मुझे भी यही लगता रहा है। पैर दबाती लक्ष्मी का तो मैंने हमेशा ही मजाक उड़ाया है। पैर कौन दबाता है। बेवकूफ औरत। लेकिन देवदत्त पटनायक ने कुछ और ही कहा। वो दरअसल दो स्त्रियां हैं ही नहीं। एक ही हैं। विकराल स्त्री भी और प्रेम में डूबी पैर दबाती स्त्री भी। तुम मुझे अपमानित करोगे, मैं तुम्हारा संहार करूंगी। तुम मुझे प्यार करोगे, मैं तुम पर जान लुटा दूंगी। सच में। इस पैर दबाती स्त्री के प्रति मैं इतने रिएक्शन से क्यों भरी हूं?
क्या मैं नहीं जानती कि बहुत बार मैं खुद क्या करती रही हूं। क्या दोनों ही बातें सच नहीं हैं? क्या प्रेम और गुस्सा दोनों सच नहीं है? क्या वो मैं ही नहीं हूं, जो अपमानित होने पर पलटवार करती है और प्रेम में होने पर अपना सबकुछ लुटा देना चाहती है। जो थप्पड़ भी मारती है और डूबकर, टूटकर चूमती भी है। जिसकी देह किसी स्पर्श से सूखकर पत्थर हो जाती है तो किसी स्पर्श से सात रंगों वाली नदी। जो रसोई के प्रति गुस्से से भरी है कि खाना वही क्यों बनाए, लेकिन जो सुबह 4 बजे उठकर किसी का मनपसंद खाना बनाकर रख जाने के लिए मरी जाती है। जो दुनिया का सबसे सुंदर संगीत भी रचना चाहती है और बच्चे को प्यार करना भी। जो नवजात को सीने से सटाए कैनवास पर तस्वीर बना रही है। जो तलाक की अर्जी दे रही है और जो रात-रात भरी जगी बैठी है किसी के सिरहाने। जो बहुत ताकतवर है और बहुत कमजोर भी। जो अंधेरा भी है और रौशनी भी। जो पीड़ा की लकीर भी है और सुख का चित्र भी। वो सबकुछ है। वो एक ही है। दोनों एक ही स्त्री की छवियां हैं। संसार उसे उसकी समग्रता में, जटिलता में स्वीकार नहीं करता। इसलिए वो एक दिखाती है और एक छिपाती है। इसलिए दुनिया के लिए दो स्त्रियां हैं। दो तरह की स्त्रियां हैं। लेकिन मेरे लिए वो दोनों एक ही हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और चर्चित ब्लागर मनीषा पांडेय के फेसबुक वॉल से.