Manisha Pandey : राष्ट्रवादी स्कूलिंग ऐसी ही होती है। जबरिया टाइप। हलक में उंगली घुसाकर बोलेंगे- वंदे मारतम बोलो। भारत माता की जय बोलो। कैसे नहीं बोलोगे। हम बुलवाकर रहेंगे टाइप। वंदे मातरम का इतिहास, उसके निहितार्थ समझने के लिए बंकिम चंद्र चटर्जी का उपन्यास आनंद मठ पढ़ लीजिए। पढ़ना-लिखना बहुत काम आता है सर। थोड़ा बुद्धि के दरवाजे खुलते हैं। थोड़ा विवेक, थोड़ी समझ, थोड़ा संतुलन। प्रतिमा मिश्रा की शानदार रिपोर्टिंग।
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दो देवियां : एक विकराल रूप धरे सीने पर चढ़ी और दूसरी प्रेम में डूबी पैर दबाती
Manisha Pandey : मैं पिछले दिनों एक स्टोरी पर काम कर रही थी – रीराइटिंग माइथोलॉजी। उस सिलसिले में काफी कुछ माइथोलॉजी से गुजरना हुआ और एक नई बात उजागर हुई। हालांकि डर है कि ये कहने से एक खास प्रगतिशील जमात का टैग न मिल जाए। तो मैडम लौट गईं आप भी हिंदूवादी जड़ों की ओर टाइप। ओह। बट हू केयर्स। जब मैं जबानदराज और बैड कैरेक्टर वुमन होने के टैग से बेपरवाह हूं तो इस टैग की किसे पड़ी है। तो ये रहा किस्सा। दो चित्र हैं देवियों के। पार्वती और लक्ष्मी। एक में पार्वती शिव की छाती पर सवार हैं। बेचारे जमीन पर पड़े हैं और पार्वती विकराल रूप धारण किए उनके सीने पर चढ़ी हुई हैं। दूसरे में लक्ष्मी क्षीरसागर में लेटे हुए विष्णु के पांव दबा रही हैं।
दिलीप जी का प्रेम ही अनुराधा दीदी की जीवनी शक्ति थी : मनीषा पांडेय
(मनीषा पांडेय) Manisha Pandey : ये अनुराधा दीदी के बारे में नहीं है। दिलीप सर के बारे में है। आज वो मेरे बॉस नहीं हैं। निजी लेन-देन और ताकत का कोई रिश्ता हमारे बीच नहीं। इसलिए अब ये लिख सकती हूं। ये बातें पहले कभी कही नहीं। कभी लिखी नहीं। इसलिए नहीं कि इन बातों …