प्रिय पत्रकार साथियों,
साथियों मेरी जानकारी में सम्बन्धों का तात्पर्य संवेदना से है। अमर उजाला बस्ती के ब्यूरो चीफ धीरज पाण्डेय के साथ जो भी हुआ, वह अप्रत्याशित ही सही परन्तु बेहद खेद जनक एवं दुखदायी है। बड़े ही अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि जिस संस्था से वे सात वर्षों तक जुड़े रहे दुघर्टना के बाद उस परिवार का कोई भी जिम्मेदार सदस्य उन्हे अस्पताल में देखने तक नहीं गया। बीस दिनों तक जिन्दगी और मौत से लड़ने के बाद 25 जून 2015 को अन्तिम सांसे लीं।
अन्तिम संस्कार में शामिल धीरज पाण्डेय के मार्गदर्शक सेवा निवृत शिक्षक घनश्याम पाण्डेय जी के अनुरोध पर सम्पादक प्रभात सिंह ने हर सम्भव मदद का कोरा आश्वासन दिया। जो कुछ धीरज पाण्डेय के साथ हुआ, वह किसी और के साथ न हो। मित्रों जिले के व्यूरो चीफ के लिए संस्था या संगठन का बर्ताव यदि यह रहा तो ग्रामीण पत्रकारों की क्या विसात है। कभी पत्रकारिता समाज का आईना थी। जिसके बदौलत जंगे आजादी की लड़ाई लड़ी गयी। आज सामाजिक गिरावट के चलते जिले से लेकर ग्रामीण पत्रकारों की जान व प्रतिष्ठा हमेशा खतरे में है। जिस संस्था में ऐसे संवेदनहीन लोग हो वहां से कुछ भी अपेक्षा करना बेमानी है।
जिला प्रभारी के साथ हुई ऐसी घटना के लिए अखबार के पन्नों में स्थान नहीं है तो ग्रामीण पत्रकारों के लिए क्या उम्मीद की जा सकती। इसे महज हादसा कहें या साजिश। यदि साजिश ही हो तो इसका सच उजागर कैसे होगा? क्या यह माना जाय कि गरीब मजलूमों की आवाज को देश दुनिया में उठाने वाले अपनी आवाज को उठाने के काबिल नहीं रहे? सरकारें तो रूपयों के बदौलत मुह बन्द करा रही हैं परन्तु मामले से पर्दा उठे दोषी को सजा मिले इसके लिए जॉच से घबरा रही हैं।
क्या अखबार के पन्नों पर अपनों के लिए कोई स्थान नहीं है? मित्रों पहली लाइन में ही मैंने जिक्र किया है संवेदना की। यहां तो संवेदना है ही नहीं तो सम्बन्ध काहेका। एक मित्र के असामयिक चले जाने का दुख जितना है, उससे कम दुख अपने कष्टों को चुप चाप सहने में है। क्यों कि कहा गया है कि अत्याचार करने वाले से बड़ा अपराधी अत्याचार सहने वाला होता है। पत्रकार चन्द रूपयों के लिए पत्रकारिता नहीं करता बल्कि निर्भीकता का परिचय देते हुए अपने सम्मान के लिए पत्रकारिता करता है। आज धीरज पाण्डेय के साथ जो घटना हुई, ईश्वर न करे कल किसी और के साथ हो। मेरे समझ से धीरज पाण्डेय को सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी, जब उनके कातिलों को हम सजा दिला सकें। और उनकी अनुपस्थिति में उनके परिवार की परवरिश के लिए लड़ाई लड़ सकें।
इसी के साथ आपके टिप्पणी की अपेक्षा रखते हुए विराम दे रहा हूं।
पूरन प्रसाद गुप्त से संपर्क : [email protected]
Rakesh Tiwari
June 30, 2015 at 9:58 am
Puran ji, hum aap k saath h. …Unke pariwar ko nayay milanee chahiye