बनारस के जंसा क्षेत्र के खेवली गाँव में कल दिन भर बड़ी चहल पहल रही. बड़ी संख्या में साहित्यकार, कवि, लेखक और सामजिक कार्यकर्त्ता जुटे थे. मौका रहा इस गाँव में ही जन्म लिए समकालीन कविता के स्तम्भ जन कवि स्व. सुदामा पाण्डेय उर्फ धूमिल की जयंती का. स्व. सुदामा पांडेय अपनी कविताएँ “धूमिल” उपनाम से लिखते थे. मात्र 38 वर्ष की ही कुल अवस्था में उन्होंने अनेक काव्य संग्रहों की रचना की और साहित्य में अमर हो गए. धूमिल जी का जन्म खेवली में हुआ था. खेवली में सुबह से ही आस पास के गाँव के बच्चे उनके निवास पर एकत्र होने लग गये थे.
श्रम दान द्वारा गाँव में साफ़ सफाई की गयी. धूमिल जयंती समारोह का आयोजन धूमिल शोध संस्थान, विवेकानंद काशी जन कल्याण समिति, साझा संस्कृति मंच, आशा ट्रस्ट, लोक समिति, धूमिल जन संपर्क समिति और स्थानीय निवासियों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था. इसके बाद एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. गोष्ठी के पूर्व धूमिल जी के चित्र पर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती त्रिमूर्ति देवी सहित अन्य लोगों ने माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.
गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि आज 4 दशक बाद धूमिल की रचनाएँ सामयिक और व्यवहारिक लगती हैं. प्रजातंत्र में आम आदमी की व्यथा और दुर्दशा को धूमिल ने ह्रदय से महसूस किया और उनकी लेखनी में उसका सजीव चित्रण भी दिखता है. उन्होंने अपनी रचनाओं में लोकतंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और व्यवस्था की खामियों पर बड़ी बेबाकी से प्रहार किया. वे चाहते थे कि कविताओं का इस्तेमाल जनता की भाषा में होना चाहिए. धूमिल आम आदमी की समस्याओं का जिक्र अपनी कविताओं में प्रभावशाली ढंग से करते थे.
वक्ताओं में प्रमुख रूप से प्रो श्रद्धानंद जी, प्रो शिव कुमार मिश्र, प्रो एम. पी. सिंह, देवी शरण सिंह , प्रो गोरख नाथ पाण्डेय, प्रो. एस एस कुशवाहा आनंद शंकर पाण्डेय आदि थे. संचालन नंदलाल मास्टर ने किया. कार्यक्रम के आयोजन में प्रमुख रूप से मनीष कुमार, राम कुमार, कन्हैया पाण्डेय, अशोक पाण्डेय, प्रदीप सिंह, दीन दयाल सिंह, राजबली वर्मा, नंदलाल मास्टर, सुरेश राठोर, प्रदीप सिंह आदि का विशेष योगदान था.
प्रेस रिलीज
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