जनकवि गोरख पांडेय की याद : पढ़ें कुछ कविताएं

जनकवि, मार्क्सवादी दार्शनिक और चिंतक गोरख पांडेय को उनकी 30वीं पुण्यतिथि पर सादर नमन, लाल सलाम। मौजूदा दौर में उनकी कमी बहुत कचोटती है मगर उनके शब्द हौसला बढ़ाते हैं, यह दुनिया बदलेगी, जरूर बदलेगी।

कवि के सम्मान में…

हिंदी वाले सब मिल-जुलकर अपने लिए एक ऐसा समाज रचते हैं, जहाँ जीवन की मुख्यधारा में कवि, लेखक, रंगकर्मी, रचनाकारों का हस्तक्षेप न्यूनतम या निषिद्ध हो। यहाँ भाव, अनूभूति, रस वगैरह की भी कोई जगह नहीं होती; सरोकार तो बहुत दूर की बात है। वह अपने जीवन के लिए रस प्रमुखतः बाज़ार से खींचता है, …

भगवान स्वरूप कटियार के कविता संग्रह “अपने-अपने उपनिवेश” का लोकार्पण

करुणा, प्रेम को वापस लाते हैं भगवान स्वरूप कटियार, नरेश सक्सेना की अध्यक्षता में मायामृग और मदन कश्यप का काव्यपाठ

लखनऊ। प्रेम नफरत के विरुद्ध युद्ध है। भगवान स्वरूप कटियार अंधे प्रेम के नहीं आंख वाले प्रेम के कवि हैं। उनकी कविताओं के संदर्भ कविता के अन्दर नहीं बाहर है। उनकी कविताओं में जो प्रेम है वह निश्छल प्रेम है। यह मनुष्यता के प्रति प्रेम है। यहां जटिल मनोभावों की सरल अभिव्यक्ति है। जटिलताओं को सरल शब्दों में कहा गया है। जब कटियार जी कहते हैं कि दोस्ती से बड़ी विचारधारा नहीं होती तो वे उस विचारधारा को ही प्रतिष्ठित करते हैं जो बेहतर इंसानी दुनिया को बनाने की है। सबके अपने-अपने उपनिवेश हैं। हम जहां निवेश करते हैं, वहीं उपनिवेश बना लेते हैं। कटियार जी जैसा कवि बार-बार सचेत करता है। हमें देखना होगा कि हमारे भीतर तो कोई उपनिवेश नहीं खड़ा हो रहा है। अगर खड़ा हो रहा है तो उसे ढहाना होगा।

चर्चित युवा कवि डॉ. अजीत का पहला संग्रह ‘तुम उदास करते हो कवि’ छप कर आया, जरूर पढ़ें

डॉ. अजीत तोमर

किसी भी लिखने वाले के लिए सबसे मुश्किल होता है अपनी किसी चीज़ के बारे में लिखना क्योंकि एक समय के बाद लिखी हुई चीज़ अपनी नहीं रह जाती है. वह पाठकों के जीवन और स्मृतियों का हिस्सा बन जाती है. जिस दुनिया से मैं आता हूँ वहां कला, कल्पना और कविता की गुंजाईश हमेशा से थोड़ी कम रही है. मगर अस्तित्व का अपना एक विचित्र नियोजन होता है और जब आप खुद उस पर भरोसा करने लगते हैं तो वो आपको अक्सर चमत्कृत करता है. औपचारिक रूप से अपने जीवन के एक ऐसे ही चमत्कार को आज आपके साथ सांझा कर रहा हूँ.

जिंदगी बनाम कमीशन : गोरखपुर की घटना पर एक कविता

गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में आक्सीजन की कमी से 60 बच्चों की मौत से शोकग्रस्त मन कल (12 अगस्त) सो न सका उन मासूम बच्चों की आवाज मेरे कानों गूंजती रही, एक कविता शहीद बच्चों को श्रद्धाजंलि…

‘उन्मत्त’ मस्त कवि हैं, पागल तो जमाना है

रेलवे की मजदूर बस्ती में कोई एक शाम थी। कॉमरेड लॉरेंस के आग्रह पर हम नुक्कड़ नाटक खेलने गए थे। सफ़दर हाशमी के ‘मशीन’ को हमने ‘रेल का खेल’ नाम से बदल दिया था। इम्प्रोवाइजेशन से नाटक बेहद रोचक बन पड़ा था और चूँकि नाटक सीधे उन्हीं को सम्बोधित था, जो समस्याएं झेल रहे थे, इसलिए उन्हें कहीं गहरे तक छू रहा था। नाटक के बाद देर तक तालियाँ बजती रहीं और चीकट गन्दे प्यालों में आधी-आधी कड़क-मीठी चाय पीकर हम लोग वापसी के लिए गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगे। छोटा स्टेशन होने के कारण वोटिंग हाल नहीं था, इसलिए रेलवे गार्ड के बड़े-बड़े बक्सों को इकठ्ठा कर हम लोगों ने आसन जमा लिया। तभी कॉमरेड लॉरेंस एक कविनुमा शख़्स के साथ नमूदार हुए जो आगे चलकर सचमुच ही कवि निकला। कवि का नाम वासुकि प्रसाद ‘उन्मत’ था।

मजीठिया क्रांतिकारी मनोज शर्मा की कविता- …होठों को सी कर जीने से तो मरना ही अच्छा है!

मनोज शर्मा हिंदुस्तान बरेली के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये मजीठिया क्लेम पाने के लिए हिन्दुस्तान प्रबंधन से जंग लड़ रहे हैं. इन्होंने आज के वर्तमान परिस्थियों में अखबारों में कार्यरत साथियों की हालत को देखते हुए एक कविता लिखी है. कविता पढ़ें और पसंद आए तो मनोज शर्मा को उनके मोबाइल नंबर 9456870221 पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएं….

कवियों की रामलीला

आज सुबह शशांक को रावण बना देख मुझे एक शरारत सूझी सोचा अगर कवियों को रामलीला करनी पड़े तो स्टार कास्ट कुछ यूँ संभव लगती है। रावण शशांक बन ही गये। सुरेश अवस्थी कवि बनने के पहले बांणासुर बनते ही थे। अपने नीरज जी विश्वामित्र ठीक, राम के लिए उम्र ज्यादा हो गयी है फिर भी अरुण जैमिनी से अच्छा चेहरा मुझे कोई लगता नहीं। कुमार को लक्ष्मण। सुना सुना चुटकुले, चौपाइयां और ज्ञान परशुराम की भौं निकाल देगा। परशुराम वैसे पंवार जी से बेहतर कोई नहीं पर ज़रा शरीर ढीला हो गया है फिर भी फुल ड्रेस में उन्हें ही कास्ट करूँगा, कहूँगा ज़रा खाने से ज्यादा पीने पर ज़ोर दें।

सुना है आज कल वह बड़ा पत्रकार हो गया…

एक रचना अपनी जमात के लिए

खबरों पर विज्ञापन जो इतना सवार हो गया।
उगाही का ही अड्डा हर अखबार हो गया ।।

संपादकों की शोखियां तो नाम की ही रह गईं।
मैनेजरों के कंधों पर सब दारोमदार हो गया।।

पिता के मर जाने पर मनुष्य के अंदर का पिता डर जाता है…

पिता पर डॉ. अजित तोमर की चार कविताएं

1.

पिता की मृत्यु पर
जब खुल कर नही रोया मैं
और एकांत में दहाड़ कर कहा मौत से
अभी देर से आना था तुम्हें
उस वक्त मिला
पिता की आत्मा को मोक्ष।

***

खेवली में मनाई गयी जाने-माने कवि सुदामा पांडेय उर्फ धूमिल की जयंती, पढ़िए उनकी जीवनगाथा और कुछ लोकप्रिय कविताएं

बनारस के जंसा क्षेत्र के खेवली गाँव में कल दिन भर बड़ी चहल पहल रही. बड़ी संख्या में साहित्यकार, कवि, लेखक और सामजिक कार्यकर्त्ता जुटे थे. मौका रहा इस गाँव में ही जन्म लिए समकालीन कविता के स्तम्भ जन कवि स्व. सुदामा पाण्डेय उर्फ धूमिल की जयंती का. स्व. सुदामा पांडेय अपनी कविताएँ “धूमिल” उपनाम से लिखते थे. मात्र 38 वर्ष की ही कुल अवस्था में उन्होंने अनेक काव्य संग्रहों की रचना की और साहित्य में अमर हो गए. धूमिल जी का जन्म खेवली में हुआ था. खेवली में सुबह से ही आस पास के गाँव के बच्चे उनके निवास पर एकत्र होने लग गये थे.

हर बार नया अर्थ देते हैं उद्भ्रांत – जयप्रकाश मानस

विद्वान समीक्षक और लेखक डॉ. सुशील त्रिवेदी ने अपने प्रमुख समीक्षात्मक आलेख में कहा कि उद्भ्रांत हमारे समय के श्वेत-श्याम को पौराणिक मिथकों और प्रतीकों में कहने वाले बहुआयामी कवि हैं और उनकी कविताएँ भी इतनी बहुआयामी कि हर बार नया अर्थ देती हैं । प्रसंग था – रायपुर में संपन्न हिंदी के वरिष्ठ कवि उद्भ्रांत का एकल कविता पाठ, समीक्षा गोष्ठी और सम्मान समारोह ।

काव्यपाठ करते कवि उद्भ्रांत

बांदा में जनकवि केदारनाथ अग्रवाल का घर ढहाने का विरोध, जलेस ने संरक्षण की मांग उठाई

जनवादी लेखक संघ के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह एवं उप-महासचिव संजीव कुमार ने विश्वविख्यात हिंदी जनकवि केदारनाथ अग्रवाल का वह घर ढहाए जाने का प्रबल विरोध किया है, जो कभी देश भर के यशस्वी रचनाकारों का अड्डा रहा है। उन्होंने कहा है कि यह बहुत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है, दिवंगत जनकवि केदारनाथ अग्रवाल के बांदा स्थित घर को व्यावसायिक प्रयोजनों से ज़मींदोज़ करने की तैयारियां चल रही है. केदार बाबू ने जिस घर में जीवन के 70 साल गुज़ारे, जहां हिंदी के सभी प्रमुख साहित्यकारों का लगातार आना-जाना रहा, जिस घर में आज भी उस महान कवि का पुस्तकों-पत्रिकाओं का संचयन – बदतर हाल में ही सही – मौजूद है, उसे संरक्षित करने में उनके परिजनों की कोई दिलचस्पी नहीं है. 

किसान की खुदकुशी पर पाणिनी आनंद की कविता…

Panini Anand : यह नीरो की राजधानी है. एक नहीं, कई नीरो. सबके सब साक्षी हैं, देख रहे हैं, सबके घरों में पुलाव पक रहा है. सत्ता की महक में मौत कहाँ दिखती है. पर मरता हर कोई है. नीरो भी मरा था, ये भूलना नहीं चाहिए.

साठ कवियों के संकलन ‘तुहिन’ और ‘गूंज’ का लोकार्पण

नई दिल्ली : हिंदी भवन में 29 कवियों की प्रतिनिधि कविताओं के संकलन ‘तुहिन’ और 33 संभावनाशील कवियों की प्रतिनिधि कविताओं के संग्रह ‘गूंज’ का लोकार्पण किया गया। लोकार्पण प्रतिभा रक्षा सम्मान समिति करनाल के अध्यक्ष नरेंद्र अरोडा, कथाकार और पाखी के संपादक प्रेम भारद्वाज, काटूर्निस्ट इरफान व वरिष्ठ कवयित्री सुमन केशरी ने किया। 

आम आदमी पार्टी ने लोगों की उम्मीदें तोड़ दीं, सड़क पर उतरे कवि नरेश सक्‍सेना

लखनऊ : वरिष्‍ठ कवि नरेश सक्‍सेना ने कहा कि अन्ना आंदोलन और उसके बाद आप पार्टी के गठन से बहुत से लोगों में जो उम्‍मीदें जगी थीं, वे बहुत जल्‍दी ही टूट गई हैं और अब ये स्‍पष्‍ट होता जा रहा है कि ये भी दूसरी पार्टियों की ही डगर पर चल रहे हैं।

मुक्तिबोध के बाद गुम हुई ऊर्जा की तलाश है विमल कुमार की कविता

”मुक्तिबोध के बाद की हिन्दी कविता में जो ओज, जो ऊर्जा, जो संभावना दिखाई देती है, वह आठवें दशक के बाद की हिंदी कविता में मुझे दिखाई नहीं देती। परंतु आठवें दशक के बाद जिन कवियों ने हिंदी कविता की चमक को बचाए रखा है उन कवियों में कवि विमल कुमार भी हैं.” यह वक्तव्य वरिष्ठ आलोचक डॉ. खगेन्द्र ठाकुर ‘बिहार प्रगतिशील लेखक संघ’  द्वारा आयोजित दिल्ली से पधारे कवि विमल कुमार की प्रतिरोधी कविताओं के पाठ के समय दिया।

इला कुमार के पांचवें काव्य-संग्रह के लोकार्पण में संचालक महोदय खुद पच्चीस मिनट तक बोले

दिल्ली : वरिष्ठ कवयित्री इला कुमार के पाँचवें काव्य-संग्रह  “आज पूरे शहर पर” का लोकार्पण पिछले दिनों हिन्दी भवन / दिल्ली में किया गया.  कला सम्पदा एवं वैचारिकी की ओर से हिंदी भवन / दिल्ली में आयोजित लोकार्पण कार्यक्रम में एक विचारगोष्ठी की शुरुआत करते हुए विजयशंकर ने इला कुमार की काव्य –पुस्तकों (ठहरा हुआ एहसास, जिद मछली की, किन्हीं रात्रियों में, कार्तिक का पहला गुलाब) एवं उपन्यास तथा अनुवाद (रिल्के और लाओ त्ज़ु) के साथ-साथ उपनिषद कथाओं और हिन्दुत्व से सम्बंधित पुस्तकों का रचनाकार बताते हुए उनके महत्वपूर्ण साहित्यिक अवदान की चर्चा की.

खेवली में मनाई गयी धूमिल जी की जयंती

वाराणसी : जंसा क्षेत्र के खेवली गाँव में कल दिन भर बड़ी चहल पहल रही, बड़ी संख्या में साहित्यकार, कवि, लेखक और सामजिक कार्यकर्त्ता जुटे थे. वजह थी इस गाँव में ही जन्म लिए समकलीन कविता के स्तम्भ जन कवि स्व सुदामा पाण्डेय की जयंती. वे अपनी कविताएँ “धूमिल” उपनाम से लिखते थे.मात्र 38 वर्ष की ही कुल अवस्था में उन्होंने अनेक काव्य संग्रहों की रचना की और साहित्य में अमर हो गए.धूमिल जी का जन्म खेवली में हुआ था. खेवली में सुबह से ही आस पास के गाँव के बच्चे उनके निवास पर एकत्र होने लग गये थे.श्रम दान द्वारा गाँव में साफ़ सफाई की गयी. 10 बजे से एक सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता आयोजित हुयी जिसमे उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले 20 बच्चो को एक सामाजिक संस्था “आशा” ट्रस्ट द्वारा रोचक बाल साहित्य देकर पुरस्कृत किया गया.

बीस राष्ट्रीय कवियों में गौड़ बिल्डर्स के मालिक का भी नाम, पढ़िए हिंदी अकादमी का न्योता

Abhishek Srivastava : स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्‍या पर हिंदी अकादमी द्वारा आयोजित किए जाने वाले ”राष्‍ट्रीय कवि सम्‍मेलन” का न्‍योता यहां चिपकाने का मकसद यह है कि सुधीजन अपना साहित्‍य ज्ञान बढ़ा सकें और जान सकें कि हमारे देश के 20 ”राष्‍ट्रीय” कवियों में एक नाम गौड़ बिल्‍डर्स के मालिक का भी है। इसके अलावा, यह भी जान लें कि यमुनापार के सारे विधायक दुर्दान्‍त कविता प्रेमी हैं।