हल्द्वानी। वरिष्ठ पत्रकार / साहित्यकार व आधारशिला के संपादक दिवाकर भट्ट का सोमवार रात एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह 58 वर्ष के थे। दिवाकर अपने पीछे पत्नी, बेटी और बेटे को छोड़ गए हैं।
बागेश्वर जिले के कांङा तहसील के मूल निवासी दिवाकर भट्ट बैंक में पीओ की नौकरी छोड़कर साहित्य और पत्रकारिता में आ गए थे। वह लंबे समय तक दैनिक समाचार पत्र अमर उजाला में बरेली, अल्मोड़ा और हल्द्वानी में तैनात रहे। उन्होंने आधारशिला नाम से पुस्तक का प्रकाशन भी शुरू किया। श्री भट्ट 18 अप्रैल को कोरोना की चपेट में आ गए थे। उनका एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। वह कोरोना निगेटिव तो हो गए थे, मगर उन्हें और बीमारियों ने जकङ लिया। सोमवार रात नौ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। दिवाकर भट्ट हल्द्वानी के पीलीकोटी स्थित आफिससॅ एन्क्लेव में सपरिवार रहते थे। वह साहित्य व पत्रकारिता क्षेत्र के कई सम्मान पा चुके थे। हिंदी भाषा को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के लिए उन्होंने कई प्रयास किए।
तुम्हें याद करते करते….
निर्मल कांत शुक्ला-
दिवाकर भाई अभी आपके जाने का समय तो नहीं था। दुःखद सूचना मिलते ही विश्वास नहीं हुआ कि अब आप इस दुनिया में नहीं है। अतीत की उन यादों में खो गया जो उत्तराखंड में तैनाती के दौरान अमर उजाला के खटीमा ब्यूरो कार्यालय प्रभारी रहने पर आपसे मेरी आए दिन फोन पर बात होती थी। कई बार हल्द्वानी कार्यालय मीटिंग में भी आपसे मुलाकात और बात होती थी। खबरों में आपका मार्गदर्शन मिलता था। आपने सदैव खटीमा ब्यूरो से जाने वाली खबरों को और तराशकर सर्वोच्च प्राथमिकता देकर लगवाया। स्मृतियों में आप सदैव जीवित रहेंगे। परमपिता परमेश्वर आपको अपने श्री चरणों में स्थान दे और परिवार को इस अपार दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। ॐ शांति शांति शांति।
प्रकाश नौटियाल-
बहुत ही दुखद। अब किसी के बारे में कुछ कहने के लिए बचा ही नहीं। सोचते हैं, अब तो ऐसी खबर सुनने को न मिले पर…? बीमारी से पहले उनसे प्रातःकालीन नमस्कार के मैसेज के जरिये बातचीत होती रहती थी। उनका पहला शब्द दाज़ू… बहुत याद आएगा। प्रभु उन्हें अपने चरणों में स्थान दें।
गिरीश रंजन तिवारी-
अपने नाम के अनुरूप ही विश्व के फलक पर हिंदी के सूर्य थे दिवाकर। प्रतिष्ठित बैंक की नौकरी, पत्रकारिता छोड़ हिंदी सेवा को बनाया मिशन। दुनियाभर में लहराया हिंदी का परचम। दिवाकर भट्ट का यों असमय चला जाना बुरी तरह से झकझोर गया। दिल टूट गया है ये खालीपन कभी भी नहीं भर सकता। दिवाकर तुम बेहद याद आओगे, हमेशा। इस कोरोना काल में लगातार तीन बेहद करीबी, घनिष्ठ मित्र और लंबे समय तक पत्रकारिता के तीन साथियों का यों चला जाना बहुत ही पीड़ादायक है। पहले दीप जोशी, फिर प्रशांत दीक्षित और अब दिवाकर….। दिवाकर भट्ट से जुड़े अनगिनत संस्मरण हैं। दशकों तक अमर उजाला में साथ में पत्रकारिका से लेकर साथ में तमाम देशों की यात्राओं से जुड़े हुए। दिवाकर को मैंने जाना और समझ तो हर वक्त हिंदी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित करने की उनकी जिद और मुहिम को लेकर। दिल में बसा है उनके खुलकर ठहाके लगा कर हंसने का खास अंदाज। हिंदी भाषा को विश्व भर में एक विशिष्ट पहचान दिलाने और राष्ट्रसंघ की स्वीकृत भाषा का दर्जा दिलवाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देने वाले दिवाकर भट्ट के असामयिक निधन से इस क्षेत्र में जो शून्य पैदा हुआ है उसकी भरपाई शायद ही कभी हो सके। हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने विश्व के तमाम देशों में बड़े बड़े सम्मेलन आयोजित कराए। मॉरीशस के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तो उनके इतने मुरीद थे कि भट्ट की संस्था आधारशिला के साथ मॉरीशस में प्रतिवर्ष दो सम्मेलन आयोजित कराने का एमओयू ही था। मॉरीशस के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हिंदी लेखक रामदेव धुरंधर सहित अंतरराष्ट्रीय हिंदी सचिवालय के तमाम पदाधिकारी और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित दिग्गज भारतीय कवि स्व. वीरेन डंगवाल, पतंजलि के स्वामी बालकिशन भट्ट के खास प्रशंसकों में शामिल थे। भारत के शिक्षा मंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भट्ट के मिशन से बेहद प्रभावित और उनके सहयोगी रहे। कोश्यारी ने तो थाईलैंड में भट्ट द्वारा आयोजित सम्मेलन में प्रतिभाग भी किया। विश्व के तमाम देशों में भारतीय दूतावास भट्ट के कार्यक्रम दूतावास में आयोजित करवाते थे जिनमें भारतीय राजदूत सहित उन देशों के जाने माने साहित्यकार और हिंदी सेवी शामिल रहते थे। बहुत कम उम्र से ही बीते दो दशक से वे इतने गंभीर और महत्वपूर्ण मिशन में लगे थे और विश्व के हर प्रमुख देश में हिंदी के लिए कार्यरत बड़ी बड़ी संस्थाओं के पदाधिकारियों सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर के दिग्गज साहित्यकारों से उनके बहुत घनिष्ठ संबंध थे। इन के साथ मिलकर उन्होंने हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने को अपने जीवन का मकसद बनाया। इसके लिए उन्होंने प्रतिष्ठित बैंक की अपनी नियमित सेवा से त्यागपत्र दे दिया और हिंदी पत्रकारिका शुरू की। पत्रकारिका में भी बहुत अच्छा नाम और पद अर्जित करने के बाद इसे भी छोड़ कर पूरी तरह हिंदी की सेवा और इसे प्रतिष्ठा दिलाने की मुहिम में जुट गए। उनकी पत्रिका आधारशिला की विश्व के अनेक देशों के साहित्यकारों के बीच भारी प्रतिष्ठा है और तमाम देशों के जाने माने साहित्यकार इसके लिए नियमित रूप से लेखन करते हैं। वर्तमान में वे हल्द्वानी में हिंदी भवन बनाने के प्रयास में लगे थे। भट्ट ने अपने मिशन के सिलसिले में मॉरीशस के अलावा हंगरी, नीदरलैंड, थाईलैंड, सिंगापुर, श्रीलंका, इंग्लैंड सहित तमाम देशों में अनेक बार सम्मेलन आयोजित कराए।
तेजेन्द्र शर्मा –
मित्रो – आधारशिला पत्रिका के संपादक दिवाकर भट्ट नहीं रहे। हिन्दी साहित्यिक जगत के लिए एक और बुरी ख़बर। एक सक्रिय संपादक और हिन्दी पत्रकारिता के श्रेष्ठ नाम दिवाकर भट्ट नहीं रहे। वे विश्व भर में हिन्दी की पताका लिए निकल पड़ते थे। यह चित्र मैंने 13 जून 2018 को भारतीय उच्चायोग लंदन में खींचा था जब दिवाकर अपना ग्रुप लेकर लंदन आए थे। इस ट्रिप में उनके साथ महाराष्ट्र के वर्तमान राज्यपाल श्री भगत सिंह कोशियारी भी थे। कथा यूके एवं पुरवाई परिवार दिवाकर भट्ट के परिवार को संवेदनाएं प्रेषित करता है और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है।