अजय कुमार, लखनऊ
एक साहित्य जगत की महान विभूति थी तो दूसरा संगीत की दुनिया का सम्राट। एक कलम का उस्ताद था तो दूसरे की उंगलियों की थाप लोंगो को सम्मोहित कर लेती थी। दोनों ने एक ही दिन दुनिया से विदा ली। बात तबला सम्राट पंडित लच्छू महाराज और साहित्य की हस्ताक्षर बन गईं महाश्वेता देवी की हो रही है। भगवान भोले नाथ की नगरी वाराणसी से ताल्लुक रखने वाले लच्छू महाराज और बंगाल की सरजमी से पूरे साहित्य जगत को आईना दिखाने वाली ‘हजार चौरासी की मां’ जैसी कृतियां की लेखिका महाश्वेता देवी (90) ने भले ही देह त्याग दिया हो लेकिन साहित्य जगत और संगीत प्रेमिेयों के लिये यह हस्तियां शायद ही कभी मरेंगी। अपने चाहने वालों के बीच यह हमेशा अमर रहेंगी।
बात पहले लच्छू महाराज की। तबला को नई बुलंदियों तक ले जाने वाले वाले 71 वर्षीय लच्छू महाराज की अचानक हदय गति रूकने से हुई मौत की खबर जिसने भी सुनी उसके मुंह से बस एक ही शब्द निकला, ’बनारस घराने का तबला शांत हो गया’। जाने-माने तबला वादक पंडित लच्छू महाराज अभिनेता गोविंदा के मामा थे। लच्छू महाराज की मौत की खबर सुनते ही ठुमरी गायिका पद्विभूषण गिरिजा देवी, पद्मभूषण पंडित छन्नू लाल मिश्र, पंडित राजन -साजन मिश्र जैसे तमाम लोग स्तब्ध रह गये।
लच्छू महाराज यों ही महान नहीं बन गये थे। सम्मान हाासिल करने के लिए इस दौर में जहां लोग एड़ी चोटी का जोर लगा देते है। वहीं फक्कड़ मिजाज पंडित लच्छू महाराज ने पद्मश्री सम्मान ठुकार दिया था। सितार के शहंशाह बड़े गुलाम अली, भारत रत्न पंडित रविशंकर समेत देश- दुनिया के नामचीन कलाकारों के साथ संगत करने वाले पंडित लच्छू महाराज ने अपने लिए कभी कुछ नहीं मांगा वह जीवन भर ईमादारी और रियाज के बल पर आगे बढ़ने की वकालत करते रहे।वर्ष 1992 में जब केंद्र में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली सरकार थी तब तबला वादक पंडित लच्छू महाराज को पद्मश्री सम्मान के लिए नामित किया गया था। जब अफसर के घर आने की खबर महाराज को दी गईं तब उन्होंने बैरंग वापस कर दिया, लेकिन दुख की बात है कि उनकी अंतिम यात्रा अथवा श्रद्धांजलि देने को संगीत जगत की बड़ी हस्ती तो क्या नेता – जनप्रतिनिधि और अफसर तक नहीं पहुंचे। स्विट्जरलैंड से पत्नी टीना और बेटी चंद्रा नारायणी वीजा न मिलने के चलते तो भांजे एक्टर गोंविदा मौसम खराब होने से नहीं आ सके। सिंगर दलेर मेहंदी के भाई शमशेर मेहंदी को छोड़ दुनिया भर में फैले उनके हजारों शिष्यों में से एक भी नहीं दिखे।
भाई जय नारायण महाराज से जुड़े एक वाक्ये का वर्णन करते हुए कह रहे थे, ‘एक बार मशहूर नृत्यांगना सितार देवी के साथ उनका तबला वादक नहीं आया था। संगत के लिए लच्छू महाराज मंच पर आए तब सितार देवी ने कहा था ये बच्चा बजाएगा। लेकिन जब लच्छू महाराज ने बजाना शुरू किया तो 20 मिनट का कार्यक्रम 16 घंटे तक नॉन स्टॉप चलता रहा। पैर में खून बहने से सितारा देवी ही रुकीं और लच्छू महाराज को गले लगा लिया था।’
बात हजार चौरासी की मां जैसी कृतियां देने वाली महाश्वेता देवी (90) की कि जाये तो उपेक्षितों और दबे- कुचले तबकों की आवाज उठाने वाली लेखिका महाश्वेता का भी इसी दिन खून में सक्रमण और किडनी के काम करने से बंद कर देने के कारण मौत हो गई। साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ, पद्म विभूषण और मैग्सेसे जेसे पुरस्कारों से सम्मानित ‘हजार चौरासी की मां’ के अलावा ‘अरण्य अधिकार’ आदि शामिल है। महाश्वेता की लघु कहानियों के 20 संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। महाश्वेता की मौत पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा,‘ देश ने एक महान लेखक को खोया है। जबकि बंगाल ने अपनी मां को खो दिया है।’
लेखक अजय कुमार उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं.