पटना उच्च न्यायालय की विशेष पीठ ने पटना उच्च न्यायलय में हिंदी में रिट आवेदन याचिका स्वीकार करने के निर्देश दिए हैं. इसके साथ अंग्रेजी का अनुवाद भी देना पड़ेगा. यह आदेश भारतीय भाषाओं के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ है. यह याचिका इंद्रदेव सिंह, हरपाल सिंह राणा एवं भारतीय भाषा अभियान की तरफ से लगाई गई थी. विशेष बेंच ने विस्तृत चर्चा के बाद 155 पृष्ठ का आदेश पारित किया है जो सम्पूर्ण पक्षों को सुनकर किया गया है और अत्यंत तार्किक एवं सटीक है.
पटना उच्च न्यायालय का निर्णय मील का पत्थर साबित होगा. बिहार के राज्यपाल ने 1972 में एक अधिसूचना जारी की थी जिसके मुताबिक पटना उच्च न्यायालय में काम हिंदी में हो सकेगा परंतु रिट याचिका और इनकम टैक्स की अपील हिंदी में नहीं लगेगी. 2015 में एक रिट पिटीशन इंद्रदेव सिंह द्वारा डाली गई लेकिन उसको रिजेक्ट कर दिया गया. इसे भाषा के ग्राउंड पर रिजेक्ट किया गया कि रिट पिटीशन हिंदी में नहीं हो सकती.
इसके पहले भी एक-दो जजमेंट आए थे जिसमें एक डिवीजन बेंच ने कहा था कि हिंदी में रिट पिटीशन हो सकती है तो दूसरे डिवीजन बेंच ने कहा कि हिंदी में रिट पिटीशन नहीं हो सकती. तो इस तरह से दो अलग-अलग डिविजन बेंच के जजमेंट को देखते हुए चीफ जस्टिस ने विशेष बेंच बनाई. यह तीन जजों की विशेष बेंच बनी और इस पर 6 मार्च को विशेष सुनवाई हुई.
इसमें दिल्ली के एक अधिवक्ता ने जाकर पूरी बहस की और विभिन्न कानूनी पहलुओं को बेंच को विशेष रूप से समझाया. बेंच ने 155 पेज का आर्डर पास किया है जिसमें यह कहा गया है कि अनुच्छेद 348 के अंतर्गत जो अधिसूचना 1972 में बिहार के राज्यपाल ने दी थी, उसमें रिट याचिका भी आती है और रिट याचिका हिंदी में दाखिल की जा सकती है.
इस फैसले के साथ एक कंडीशन लगाया है कि अंग्रेजी का भी ट्रांसलेशन उसके साथ लगेगा. यह एक बहुत बड़ा कदम है क्योंकि हाई कोर्ट में आप हिंदी में कोई रिट याचिका नहीं लगा सकते थे और अधिसूचना के बाद भी रिट याचिका लगाने पर कार्रवाई नहीं होती थी. हाईकोर्ट की मूलतः सारी वकालत रिट याचिका की ही होती है. बहुत सारी रिट याचिका फाइल होती हैं परंतु अब इस फैसले के बाद उच्च न्यायालय में हिंदी में रिट याचिका डाली जा सकेगी.
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