एक कहावत है कि मछली मर जाती है लेकिन उसकी गंध मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ती। कुछ ऐसा ही हाल उपेंद्र राय का है। उनके जाने के बाद भी उनकी दुर्गंध से सहारा मीडिया के लोग बेहाल हैं। उपेंद्र राय ने अपने समय में राष्ट्रीय सहारा से आंदोलनकारी लोगों को सेफ एग्जिट प्लान के तहत संस्थान से बाहर निकल जाने को कहा। इस प्लान के तहत संस्था को अलविदा कहने वाले कर्मचारियों को कोई न्याय नहीं मिल रहा है। इस कारण इन कर्मचारियों के अंदर भारी बेचैनी है।
गौरतलब है मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन और अन्य परिलाभ देने से बचने के लिए सहारा मीडिया के नए सर्वेसर्वा बने उपेन्द्र राय सेफ या सेल्फ एग्जिट प्लान लेकर आये। इस प्लान को लेने वाले को बकाया वेतन व अन्य बकाया (ईएल, पेपर, मोबाइल, कन्वेंश) एवं फंड और ग्रेच्यूटी आदि एकमुश्त देने का सब्जबाग दिखाया गया। निवेशक की तरह कर्मचारी भी उल्लू बने। बडी संख्या में कर्मचारियों ने “भागते भूत की लंगोटी ही सही” वाली नीति अपनाते हुए इस प्लान को ले तो लिया लेकिन उन्हें मिला क्या? बाबा जी का ठुल्लू।
भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार लगभग 212 कर्मचारियों ने इस उम्मीद में इस प्लान को लिया कि कम से कम उन्हें एकमुश्त पैसा मिल जाएगा। उल्लेखनीय है कि जबसे सहारा प्रमुख सुब्रतो राय जेल में रहे, सहारा मीडिया वालों को कभी भी पूरी सेलरी नहीं मिली। यहां यह भी बता दें कि कोई भी प्लान हमेशा सामान्य से बेहतर होता है, आकर्षक होता है लेकिन इसमें कुछ भी आकर्षक नहीं था। बकाया तो अगर कर्मचारी सामूहिक लड़ाई लड़ते तो उन्हें मिल ही जाता क्योंकि वह तो मिलना ही था।
पता चला है कि अब सेफ एग्जिट प्लान लेने वाले कर्मचारियों से कंपनी इस्तीफा लिखवा रही है। क्या चूतिया बनाया है उपेंद्र राय ने और अब सहारा मीडिया प्रबंधन उसी राह पर कदम आगे बढ़ा रहा है। प्लान लायेगी कंपनी और इस्तीफा देंगे कर्मचारी। यानी चित्त भी मेरी, पट्ट भी मेरी, अंटी मेरे बाप की। अब सवाल उठता है कि क्या कंपनी ने अपने ऐग्जिट प्लान में इसको अपनाने के लिए इस्तीफे की शर्त रखी थी? नहीं। क्या इस प्लान को बनाते समय कर्मचारियों का कोई प्रतिनिधि था? नहीं। कंपनी खुद प्लान लेकर आती है और प्लान लेने वाले कर्मचारियों से इस्तीफा लिखवाती है और कर्मचारी लिख भी दे रहे है। क्यों? इसलिए कि पत्रकारों से बड़ा नपुंसक प्राणी दिया क्या सर्च लाइट लेकर ढूंढ लीजिए, इस धरा पर कोई मिलेगा नहीं।
कह सकते हैं कि निवेशकों के बाद अब कर्मचारियों/ भूतपूर्व कर्मचारियों को बेवकूफ बना दिया उपेंद्र राय और सहारा प्रबंधन ने। सहारा इंडिया चूंकि मूलतः चिटफंड कंपनी है इसलिए सब्जबाग दिखाना इनका पेशा और कामयाब पेशेवर वही है जो पेशागत चीजों को अपनी आदत बना ले। अब कामयाब सब्जबागी ही कामयाब चिटफंडी हो सकता है और ये कामयाब चिटफंडी है। ये हर निवेशक को ही नहीं अपने कर्मचारियों को जनता का जमा धन और उसपर देय अर्जित ब्याज देने का सब्जबाग दिखाते हैं। अपने तथाकथित / क्रांतिकारी एक्जिट प्लान में उपेंद्र राय ने भी सहारा के मीडिया कर्मियों को दिखाया कि एकमुश्त सभी बकाये तय समय के भीतर मिल जाएंगे।
मीडिया प्रमुख बने उपेन्द् राय ने आते ही पुराने कर्मचारियों को निकालने के लिए एक्जिट प्लान रूपी चोर रास्ता अपनाया। प्लान के पहले चरण वाले एक भी कर्मचारी को उसका पूरा बकाया नहीं दिया गया। बाद में जो लोग इस प्लान को अपनाए उन्हें भी कुछ नहीं मिला। सूत्रों का कहना है कि सहारा ने मार्च २०१३ के बाद किसी को पीएफ के मद का पैसा नहीं दिया है। बताते चलें कि सहारा ट्रस्ट के माध्यम से पीएफ का पैसा अभी तक रखती रही है। सरकार की कडाई के बाद उसने यह व्यवस्था समाप्त तो कर दी लेकिन पैसा जमा किया नहीं। देखना है कि सुब्रत राय जेल से बाहर आने के बाद सहारा मीडिया को लेकर क्या नीति अपनाते हैं? फिलहाल उपेंद्र राय तो सहारा से लापता हो चुके हैं और सुना है कि तहलका वाले केडी सिंह को सपना दिखा कर बीमार और पस्त तहलका पर काबिज हो गए हैं. कहीं वहां भी सहारा जैसा सेल्फ एक्जिट प्लान लाकर कर्मचारियों को चूतिया न बना दें! इसलिए ध्यान रखने की जरूरत है दोस्तों. ये आदमी दिखता कुछ है, कहता कुछ है, करता कुछ है और नतीजा कुछ और देता है।
एक पीड़ित सहारा कर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.