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सुख-दुख

हम पत्रकार अपने पेशे में आ रही गिरावट के सामूहिक अपराधी हैं, इस मौन का दंड भुगतना होगा!

हिंदी पत्रकारिता दिवस और हम : हिंदी पत्रकारिता दिवस निकले कुछ दिन ही हुए. कुछ दिन पहले नारद मुनि जी की जयंती भी प्रथम संवाददाता के रूप में मनाई गई. विश्व प्रेस दिवस भी आता ही है. इतिहास मे न जाते हुए अपन पत्रकारिता और इस पेशे से जुड़ने की नियती दोनों को ऐसे दिवसों पर नमन कर लेते हैं. ..लेकिन कुछ संयोग ऐसे जुड़े कि मात्र नमन कर लेने भर से काम नहीं चला. सबसे पहले पढ़ा कि पश्चिम के किसी देश की चटपटी पत्रिका (प्रारंभ से ही ऐसी पत्रिकाओं- समाचार पत्रों को चटपटा मानता रहा हूं और इस पत्रिका ने तो शीघ्र ही सत्यापित भी कर दिया) ने भारत के प्रधानमंत्री पर दिया अपना विषैला वक्तव्य यू-टर्न में बदल दिया है. स्वयं को पश्चिम ही नहीं , विश्व की ताकतवर मैगजीन समझने वाले समूह ने जिन शब्दों की बाजीगरी से भारत के मतदाताओं द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री की निंदा कर वस्तुतः भारतीय लोकतंत्र में हस्तक्षेप का बड़ा अपराध किया , उसी ने अपने ही लिखे शब्दों के समक्ष साष्टांग दंडवत होकर समर्पण कर दिया ; यह भारत के लोकतंत्र और शब्द की शक्ति का ही उदाहरण है !

दूसरा संयोग यह कि, आज ही पढ़ा पत्रकारिता में हमारे अग्रज मेरे पसंदीदा (रहे) स्तंभकार वैदिक जी ने भी अपने 5 वर्षीय स्टैंड से यू-टर्न ले लिया है. यह भी अचरज भरा था और इस उक्ति पर विश्वास प्रबल हुआ कि शब्द ब्रह्म होते हैं और कभी ना कभी ब्रह्मांड से लौट कर पुनः – पुनः हमारे सम्मुख उपस्थित होते हैं. तीसरा संयोग भी आज ही उपस्थित होना था..वह यह कि भारत के सबसे बड़े विपक्षी दल ने 1 माह तक टीवी चैनलों की डिबेट के बहिष्कार का निर्णय लिया है. संभव है यह आत्ममंथन का दौर हो. चीजों के सुधरने-परिस्थितियों के संभलने-ऊहापोह के छंटने-निराशा के हटने तक नई बातों से दूर रहना हो या टीवी चैनलों के सो’कॉल्ड एकतरफा नजरिए के प्रति सत्याग्रह हो, जो भी हो; भारतीय पत्रकारिता में यह बहिष्कार हाल के वर्षों में अनूठा ही है.

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तब, जब ऐसे दुःसंयोग एक ही दिन उपस्थित हो जाएं तो मुझ जैसे सामान्य पत्रकार को लिखना पड़ता है. लिखना ही चाहिए. हमारा कर्म है लिखना और धर्म है सही लिखना. अब कितना सही लिख पाते हैं यह ईश्वर रूपी पाठक जानें, अपनी ओर से कोई दावा नहीं. तो, लिखना यह चाहता हूं कि नैतिकता के सर्वव्यापी पतन के इस दौर में भारतीय हिंदी (अंग्रेजी को छोड़कर अन्य सभी भारतीय भाषाओं की भी ) पत्रकारिता पतन से चाहे अछूती न रह गई हो, चहुंमुखी गिरावट हमने देखी-सही-भुगती हो, मिशन के मानदंडों को आंखों के समक्ष ही दरकते देखा हो, तो भी; तो भी हिंदी और भारतीय भाषाओं (पुनः कहूंगा अंग्रेजी को छोड़कर) ने लोकतंत्र की शक्ति को और पुष्ट किया है, आम आदमी की वाणी को लक्ष्य तक पहुंचाया है, न्याय तथा विधि के भय को कोर्ट तथा पुलिस से पहले हर तरह के अपराधियों के मन में गहरे तक पैबस्त किया है.. और यह भी कि आज भी भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता ही आम आदमी की आवाज बनी हुई है और उसे बुलंद कर रही है, इत्यादि-इत्यादि !

तो तब, जब कोई जनरल वीके सिंह नुमा अफसर राजनीति में आने पर चंद अंग्रेजीदां पत्रकारों से त्रस्त होकर, “प्रेस्टीट्यूट” के नए शब्द को इजाद कर समुचित पत्रकारिता के चेहरे पर “एसिड अटैक” करता है तब यह समूचे पत्रकार उसका सामूहिक बहिष्कार क्यों नहीं कर देते? अपनी सामूहिक शक्ति से उसे इस क्षमायाचना के लिए विवश क्यों नहीं करते कि मैंने अपनी वैचारिक गंदगी अंग्रेजी पत्रकारों के एक समूह के लिए छोड़ी थी, आप सभी के लिए नहीं.

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तो तब, जब कोई भी ऐरा-गैरा नत्थू खैरा, जिसे हिंदी लिखना भी ठीक ढंग से नहीं आती हो, सोशल मीडिया पर बिकाऊ मीडिया जैसे ७-८ अभद्र शब्दों से युक्त पोस्ट फॉरवर्ड करता है तो हम हिंदी के पत्रकार हाथों-हाथ उसका विरोध क्यों नहीं करते कि ऐ भाई! जो बिका है उसका नाम लिख और आगे बढ़…सबको मत लपेट. क्यों किसी व्हाट्सएप समूह में बैठे तमाम पत्रकार ऐसे शब्दों के चयन पर आपत्ति उठाने की जगह कौन बुराई मोल ले, यह सोचकर चुप्पी साध लेते हैं ? हमारे पत्रकार क्यों नहीं बताते प्रत्युत्तर में कि बिकाऊ मीडिया-गोदी मीडिया 2013 के आसपास सबसे पहले भाजपा ने प्रयुक्त किया कांग्रेस की भद पीटने के लिए और अब कांग्रेस, वामपंथी, सपाई, बसपाई सभी दल कर रहे हैं भाजपाई सरकार गिराने के लिए. अर्थात समूचा मीडिया बिकाऊ नहीं है, यह शब्द सृजित किया गया है सिर्फ राजनीतिक लक्ष्य के संधान के लिए. आज इन्होंने कहा, कल वह कहेंगे!

लेकिन नहीं! मेरा साथी तब चुप रहेंगे..मौन साध लेंगे.. तब साहस शून्य हो जायेगा और लेखनी मूर्छित.. कौन सा हमारा नाम ले रहा है, यह सोच कर सुविधाजनक पत्रकारिता करने वाले ऐसे सभी पत्रकार अपने पेशे में आ रही गिरावट के सामूहिक अपराधी हैं और आगामी वर्षों में भी इस मौन का दंड आप सभी को भुगतना ही होगा!

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हिंदी पत्रकारिता दिवस की असीम शुभकामनाएं.

योगेश कुल्मी
[email protected]

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1 Comment

1 Comment

  1. Yogesh Kulmi

    June 5, 2019 at 1:05 am

    आदरणीय संपादक मंडल,
    आपने बहुचर्चित प्लेटफॉर्म पर मेरे विचारों को स्थान दिया, ह्रदय से धन्यवाद.

    आगे भी कुछ बन पड़ेगा तो अवश्य प्रेषित करूंगा.

    सादर अभिवादन.

    आपका ही

    योगेश कुल्मी, उज्जैन
    8878828999

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