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सियासत

अखबार मालिकों का साथ देने के कारण बिहार में हारी भाजपा

नई दिल्ली। तमाम संसाधन झोंकने के बाद भी बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर तेज है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करने की मांग कर रहे दैनिक जागरण व अन्य अखबारों के कर्मचारियों का साथ न देने और अखबार मालिकों के पक्ष में खुलकर खड़े होने के कारण भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।

<p>नई दिल्ली। तमाम संसाधन झोंकने के बाद भी बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर तेज है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करने की मांग कर रहे दैनिक जागरण व अन्य अखबारों के कर्मचारियों का साथ न देने और अखबार मालिकों के पक्ष में खुलकर खड़े होने के कारण भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।</p>

नई दिल्ली। तमाम संसाधन झोंकने के बाद भी बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर तेज है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करने की मांग कर रहे दैनिक जागरण व अन्य अखबारों के कर्मचारियों का साथ न देने और अखबार मालिकों के पक्ष में खुलकर खड़े होने के कारण भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।

बिहार की राजनीति के जानकारों का कहना है कि अखबार के कर्मचारियों ने जिस तरह सोशल मीडिया और जमीन पर उतरकर मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करने को लेकर आंदोलन चलाया था, उससे राजनीतिक दलों पर इस बात को लेकर दबाव था कि वे कर्मचारियों के पक्ष में खड़े होते। आंदोलित कर्मचारियों का कहना है कि भाजपा ने दैनिक जागरण के मालिकों के पक्ष में खड़े होकर विधानसभा चुनाव में खुद को सबसे बड़ा नुकसान पहुँचाया। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकासपरक छवि को गहरा धक्का पहुंचा है।

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गौरतलब है कि दैनिक जागरण ने मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करने की मांग पर 350 से अधिक कर्मचारियों को संस्थान से बाहर कर दिया है। अन्य समाचार पत्रों में भी कर्मचारियों का कत्लेआम जारी है और अपना हक़ मांगने पर उन्हें जमकर डराया धमकाया जा रहा है। ऐसे समय में राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे अखबार मालिकों के पक्ष में न खड़े हों और कर्मचारी विरोधी छवि न बनाएं।

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