सुरेश चिपलुनकर-
अरे बाईडन अंकिल… जब दम नहीं था तो कूदे क्यों थे? रूस केवल इतना ही तो चाहता है ना कि यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होना चाहिए? तो इतनी सी बात पर यूक्रेन को रूस की पिटाई खाने के लिए आगे क्यों कर दिया?
बाईडन अंकिल, आपसे अमेरिका तो ठीक से संभल नहीं रहा… महंगाई आसमान छू रही है, लेकिन फिर भी इधर दूसरों को उकसाने से बाज नहीं आ रहे? पुतिन अंकिल का ज्यादा नुकसान नहीं होगा… उधर तुम तो अपने हथियार बेचकर मस्ती छानोगे… लेकिन तुम्हारे पाले हुए कुछ अठ्ठे-पठ्ठे दो हफ्ते में ही जमीन सूंघने लगेंगे…
चीन इस मामले पर गिद्ध की निगाह जमाए बैठा है कि अब उसे बड़ा बिजनेस किधर से मिलेगा… भारत को भी दोनों अंकलों की आपसी लड़ाई में कोई रस नहीं है, होना भी नहीं चाहिए… हम तो वैसे भी दस मार्च के बाद महंगे पेट्रोल और रसोई गैस की आग में जलने वाले हैं…
अब सीधे से मान भी जाओ बाईडन अंकल… कि तुम महाशक्ति नहीं रहे… रूस भी मस्तमौला हाथी है, अगर गलती से वो गिर भी गया, तब भी तुम्हारे कई गधों से ऊंचा ही रहेगा…