Umesh Dwivedi : क्या जॉइंट कमिश्नर इनकम टैक्स की नौकरी बेहतर होती या मुख्यमंत्री की कुर्सी, पावर? केजरी बाबू अब हमें बार बार मत सुनाइए कि आप इनकम टैक्स की नौकरी छोड़ कर आये हैं …आपने कोई अहसान नहीं किया है ..हां यदि आप नौकरी छोड़ कर “मदर टेरेसा” जैसा कोई काम करते तो तब आपके उस कदम को सराहा जाता! आपने उससे बड़ा पद पाया है, ये आपकी महत्वकांक्षा थी, ना कि त्याग ! हर व्यक्ति अपने जीवन में ऊंचाई पर जाने के लिए जोखिम लेता है, वो आपने भी लिया तो कोई बड़ी बात नहीं की. ईसलिये अहसान की ये गठरी आप अपने मुख्यमंत्री आवास के अटाला घर में रख दें. कल आप राष्ट्रपति भवन में थे. क्या ज्वाइंट कमिश्नर रहते हुए आप जा पाते? नहीं, बिलकुल नहीं ….आपने नौकरी छोड़ कर उससे ज्यादा पाया है ..ईसलिये कृपया अपने ये घड़ियाली आंसू बंद कीजिये.
Rakesh Srivastava : ..कौन ईमानदार और कौन बेईमान .. योगेंद्र यादव और केजरीवाल को लेकर बहस गर्म है .. साधारण जनता अपने सवाल ‘कौन ईमानदार कौन बेईमान’ जैसे प्रचलित मुहावरे में पूछती है .. जनता को एड्रेस करने में केजरीवाल बढ़त ले गए .. केजरीवाल एंड टीम ने धकिया कर माहौल को कब्जे में ले लिया और अपना वर्जन सामने रख प्रचारित कर दिया .. जबकि योगेंद्र और प्रशांत जब ई.सी. से हटाए गए थे तो लोगों और कार्यकर्ताओं की पूरी सहानुभूति इन दोनों के साथ थी .. केजरीवाल एंड टीम ने बातचीत करने का बहाना कर टाईम बाई कर लिया और इस बीच योगेंद्र प्रशांत को क्रमश: बदनाम करते करते अंतत: पीएसी में इन्हें धकिया कर बाहर निकाल दिया और ईमानदार होने का तगमा खुद ओढ़ लिया .. आरोप लगाए, पर आरोप के जवाब का मौका नहीं दिया ..
.. केजरीवाल से कुछ सवाल बनते हैं ..
.. आप कहते हो कि आपको इन दोनों ने एक डेढ़ वर्षों से परेशान कर रखा था .. आपके लोग कहते हैं आप फूट- फूटकर रो पड़े थे .. आपके तनाव की वजहें क्या रही होंगी इस बारे में क्या आपने कभी सेकेंड थॉट दिया .. अपने तनावों के लिए आपने योगेंद्र प्रशांत पर एकतरफा दोष मढ़ा और खुद तिनका भर जवाबदेही न ली .. कहीं आपके तनावों की वजह यह तो नहीं कि मूल्यों की राजनीति को दूर तलक ले जाने के योगेंद्र- प्रशांत के जायज आग्रह से आप असुविधा में पड़ रहे थे और आपके इर्द- गिर्द जमा होते दूसरे लोग आपको दूसरी दिशा में खींच रहे थे .. कहीं आपका तनाव आपके व्यक्तित्व और आपकी सोच की सीमा तो न थी ..
.. आपने कहा कि स्वराज के सिद्धांतों की बात के पीछे योगेंद्र- प्रशांत की महत्वाकांक्षा थी .. आपने कह दिया, आप माई- बाप हो, सरकार हो, विधायकों के हित आपसे जुड़ते हैं इसलिए विधायकों ने ताली पीट लिया .. लेकिन आपकी बात से निकलने वाले स्वाभाविक प्रतिप्रश्न का जवाब कौन देगा .. महत्वाकांक्षी होने का सिद्धांत आप पर भी तो लागू हो सकता है, आपको क्यों न महत्वाकांक्षी माना जाए ..
.. आप यह चुनौती देते हो कि पहले स्वराज और आंतरिक लोकतंत्र हरियाणा में लागू करके दिखाते .. तो क्या हरियाणा या किसी राज्य में कोई नेता पार्टी के मान्य सिद्धांतों से इतर कुछ करने को स्वतंत्र था, ऐसा तो नहीं होता है .. आप कहते हो कि स्वराज बहुत मुश्किल बात है तो स्वराज के नाम पर वोट क्यों मांगा था .. स्वराज और आंतरिक लोकतंत्र मुश्किल बातें हैं, तो यह पहले समझ में क्यों नहीं आया .. लोगों ने केवल दिल्ली के लिए किए गए वायदे पर आपको वोट नहीं दिया .. पार्टी के रूप में जो नैतिक आभा बनी थी इसलिए आपके वायदों को भरोसे लायक समझा इसलिए वोट दिया .. चाहे जितनी मुश्किल रही हो नैतिकता के उस आग्रह उस चुनौती को आप कैसे छोड़ सकते हो ..
.. आप कहते हो कि आपने योगेंद्र- प्रशांत की सभी बातें मानी फिर- भी इन लोगों ने परेशान किया .. 49 दिन में सरकार छोड़ दी इनके कहने पर .. आप लोकसभा चुनाव लड़े मोदी से भिड़ गए इनके कहने पर .. अगर इनके कहने पर इतना कुछ किया, असफलताओं की वजह ये हैं, तो आपकी सफलताओं की वजह ये कैसे नहीं है .. पार्टी की आज जो बुनावट और सफलता है आप उसमें योगेंद्र प्रशांत के सबसे ज्यादा योगदान से इनकार कैसे कर सकते ..
.. आप कह रहे हो कि हम चुनाव लड़ रहे थे और जीतने की कोशिश ही हमारा धर्म है .. इससे कोई इनकार नहीं कि जीतना महत्वपूर्ण है .. पर आप उस वायदे को कैसे भूल सकते तो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को राजनीतिक दल में बदलते हुए आपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों से किए थे, कि परिवर्तन और आंदोलन के मूल्यों को केंद्र में बनाए रखा जाएगा .. क्या आपको पता नहीं कि पार्टी का जनाधार बढ़ाने और विधायकी का उम्मीदवार चुनने में जीतने की हड़बड़ाहट में खाप मानसिकताएं घुसती चली गईं … जो जनाधार बना, वह प्रतिनिधिक नहीं है, इसे महिलाओं और दलितों की बहुत कम भागीदारी में साफ तौर पर देखा जा सकता है .. जबकि दिल्ली जैसे शहर का समकालीन समाजशास्त्रीय सच यह है कि सामान्य जीवन के नागरिक मुद्दों पर आज महिलाएं अधिक प्रो- एक्टिव हैं .. अगर आपने ‘आम- अादमी’ की आत्मा को बनाए रखा होता तो महिलाएं बहुत होतीं…. केजरीवाल की ईमानदारी उनकी व्यक्तिगत जिद है जिसकी चकाचौंध में जिसके इर्द- गिर्द बेईमान लोगों के इकट्ठा हो जाने का खतरा है .. योगेंद्र यादव की ईमानदारी वह नैतिक राजनीतिक दर्शन है जो संगठन का वैज्ञानिक सिद्धांत बनकर मूल्यों को संस्था यानि पार्टी का व्यापक सच बनाना चाहती है …
Manish Kumar : राजनीति का नटवरलाल एक आत्मकामी तानाशाह है… अरविंद केजरीवाल की गाली गलौच सुनने के बाद कई लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है. उन्हें लग रहा है कि ये केजरीवाल नहीं हो सकता है. विश्वास नहीं होने की वजह मीडिया में बनी केजरीवाल की इमेज है. अब ऐसे लोगों को कौन समझाए कि इमेज तो इमेज ही है. असलियत तो टेप से उजागर हुई है कि असल में ये राजनीति का नटवरलाल है. असली नटवरलाल लोगों का भऱोसा जीत कर धोखा देने में उस्ताद था. असली नटवरलाल की कहानियां सुनकर लोग मजा लेते हैं.. हंसते हैं. कोई ये समझने की कोशिश नहीं करता है कि नटवरलाल ने जिन लोगों को ठगा उनके दिल पर क्या गुजरी होगी? दुर्भाग्य से नटवरलाल के कारनामों को सुनकर उसे लोग एक कॉमिक कैरेक्टर समझने लगे. राजनीति के नटवरलाल का भी यही हश्र होने वाला है.
आम आदमी पार्टी में जो आजकल चल रहा है उससे मुझे हैरानी नहीं है क्योंकि मैंने आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के चाल चरित्र और चेहरे के बारे में जितनी भी बातें की.. पुराने पोस्ट्स में लिखा, वही सच साबित हुआ. मुझे तो केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के नेताओं को धन्यवाद करना चाहिए कि उन्होंने हर आलोचना को इतनी जल्दी ही सच साबित कर दिया. अरविंद केजरीवाल एक आत्मकामी व्यक्ति यानि नार्सिसिस्ट है वो विरोध या अलोचना को बर्दाश्त नहीं कर सकता है. सत्तालोभी और ड्रामेबाजों की आम आदमी पार्टी की हालत मायावाती की बीएसपी से भी खऱाब है. आज इतना कहा जा सकता है कि मायावती अपनी पार्टी केजरीवाल से बेहतर रूप से चलाती हैं. रही बात आजादी की दूसरी लड़ाई की और स्वराज की तो यह देश की जनता के साथ सबसे भद्दा मजाक है जो इन ढोंगियों ने किया. जो लोग इस नटवरलाल के झांसे में आ गए वो आज शर्मिंदा है. लेकिन इसके समर्थक और कार्यकर्ताओं को तो चुल्लु भर पानी में डूब मरना चाहिए.
डॉ. उमेश कुमार सिंह की टेप में एक अजीब सी बात मुझे नजर आई. बातचीत में उमेश सिंह जब तक ये कहते रहे कि “आप मोदी से बड़े नेता बन सकते हैं.. आपमें काबिलियत है.. देश में नेताओं की कमी है और आप उस कमी को पूरा कर सकते हैं..” तब तक केजरीवाल सुनता रहा और यह कहा कि “बहुत अच्छा”. लेकिन जैसे ही डॉ. उमेश ने केजरीवाल को सुझाव दिया कि आपको आगे आना चाहिए और नाराज लोगों को मना लेना चाहिए.. बस.. केजरीवाल भड़क उठा.. जैसे ही उसे लगा कि एक अदना सा आदमी “महान केजरीवाल“ को सुझाव दे रहा है बस.. उसने गाली गलौच शुरू कर दिया. दरअसल, यही आत्मकामी व्यक्ति का असल चरित्र होता है. इस टेप में एक और मजेदार बात है.. वह यह कि जब डॉ. उमेश ने कहा कि मुद्दा आपका या मेरा या किसी व्यक्ति का नहीं है यह देश का मामला है.. तब तपाक से केजरीवाल ने डॉ. उमेश को बीच में रोक कर कहा कि ये क्या तमाशा है.. मैं 67 विधायकों को लेकर अलग पार्टी बना लूंगा और आपलोग आम आदमी पार्टी चलाइये. समझने वाली बात बस इतनी सी है कि केजरीवाल को न तो देश से मतलब है .. न मुद्दे से मतलब है.. न ही दिल्ली से.. उसे सिर्फ अपने आप से मतलब है.
जितनी शर्मनाक केजरीवाल की भाषा है उससे भी शर्मनाक आम आदमी पार्टी के नेताओं की दलील है. आशुतोष कहता है कि यह व्यक्तिगत बातचीत है.. मेरे पिताजी भी ऐसी भाषा बोलते हैं.. मुझे मारते हैं. मतलब यह कि आपस में बातचीत में ऐसा चलता है.. इसमें कोई बुराई नहीं है. आशुतोष और आप के समर्थकों को शर्म आनी चाहिए. मुझे पता नहीं कि किस सभ्य घऱ में पिता अपने पुत्र से इस भाषा का उपयोग करते हैं. आशुतोष ने ये भी कहा कि व्यक्तिगत बातचीत को सार्वजनिक करने से ये साफ हो गया कि कुछ लोग साजिश कर रहे हैं.. चलिए मान लेते हैं. लेकिन फिर आशुतोष को ये भी बताना चाहिए कि जब आशीष खेतान सुपारी पत्रकार था तब उसने व्यक्तिगत बातचीत को स्टिंग बता कर देश में कोहराम क्यों मचाया था.. उस वक्त आशीष खेतान किस साजिश का हिस्सा था? किस खेल का वो प्यादा था?
कल आम आदमी पार्टी की नेशनल कॉसिल की मीटिंग है. वहां भी नटवरलाल यही दांव खेलेगा कि अगर योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, प्रो. आनंद कुमार और अजित झा को पार्टी से बाहर नहीं निकाला गया तो वो आम आदमी पार्टी से अलग हो जाएगा. दुविधा ये है कि फैसला जो भी हो वह आम आदमी पार्टी की ड्रामेबाजी को उजागर करेगा. अगर चारों को बाहर करने का फैसला होता है तो मतलब यह कि इस पार्टी में आंतरिक प्रजातंत्र नहीं है… इस पार्टी में केजरीवाल की तानाशाही है… पार्टी में वही रह सकता है जो केजरीवाल की चमचागीरी कर सकता है.. केजरीवाल पर सवाल उठाने वाले के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं है… पार्टी का वो दावा कि यह सबसे अलग और सबसे प्रजातांत्रिक पार्टी है वह समाप्त हो जाएगा. और अगर नेशनल कॉसिल में केजरीवाल हार जाता है तो कल ही वह दूसरी पार्टी की घोषणा कर देगा. नटवरलालों की खासियत यही होती है कि वह आखिरी मौके पर चकमा देने में उस्ताद होते हैं. कल भी यही होगा. इस बीच, कूड़े और गंदगी से जूझ रहे दिल्ली के लोगों को लग रहा है कि उन्होंने कांग्रेस की गलतियों की वजह से बंदर के हाथ उस्तूरा थमा दिया है.
उमेश, राकेश, मनीष के फेसबुक वॉल से.