बनारस की लवंडई और ग़ाज़ीपुर की अक्‍खड़ई का मिलन!

Abhishek Srivastava : बनारस की लवंडई और ग़ाज़ीपुर की अक्‍खड़ई आपस में मिल जाए तो वही होता है जो आज आम आदमी पार्टी के साथ हुआ है। ग़ाज़ीपुर के निवासी और बीएचयू छात्रसंघ के कभी महामंत्री रह चुके छात्र नेता उमेश कुमार सिंह ने मौके पर जो लंगड़ी मारी है, वह कल होने वाली नेशनल काउंसिल की बैठक से पहले रात भर में ही खेल को बिगाड़ने की कुव्‍वत रखता है। उमेशजी की सोहबत में अरविंद केजरीवाल बनारस से चुनाव तो लड़ आए, लेकिन एक बात नहीं समझ पाए कि मुंह में पान घुला हो तो बनारसी आदमी अमृत को भी लात मार सकता है। अगर ग़ाज़ीपुर का हुआ तो खिसिया कर सामने वाले के मुंह पर थूक भी सकता है।

केजरीवाल या आम आदमी पार्टी से वही लोग निराश हो रहे हैं जो बहुत ज्यादा उम्मीद पाले हुए थे

Sanjaya Kumar Singh : मुझे लग रहा है कि अरविन्द केजरीवाल या आम आदमी पार्टी से वही लोग निराश हो रहे हैं जो बहुत ज्यादा उम्मीद पाले हुए थे। जब अन्ना हजारे के साफ मना करने के बावजूद केजरीवाल ने राजनैतिक पार्टी बनाई – तभी साफ हो गया था कि अरविन्द केजरीवाल में वही कीड़े हैं जो नरेन्द्र मोदी या सोनिया गांधी में। पैकिंग अलग है। अन्ना के आंदोलन की सफलता और अपनी नई बनी छवि को कैश कराने की जल्दबाजी में अरविन्द इस्तीफा देकर बनारस गए और मुंह की खाकर लौटे। इस तरह अरविन्द ने बता दिया कि ना उन्हें राजनीतिक समझ है और ना धूर्तता (तभी कभी कोई स्टिंग कर ले रहा है और कभी कोई और)।

केजरीवाल जी, अपने ये घड़ियाली आंसू बंद कीजिये…

Umesh Dwivedi : क्या जॉइंट कमिश्नर इनकम टैक्स की नौकरी बेहतर होती या मुख्यमंत्री की कुर्सी, पावर? केजरी बाबू अब हमें बार बार मत सुनाइए कि आप इनकम टैक्स की नौकरी छोड़ कर आये हैं …आपने कोई अहसान नहीं किया है ..हां यदि आप नौकरी छोड़ कर “मदर टेरेसा” जैसा कोई काम करते तो तब आपके उस कदम को सराहा जाता! आपने उससे बड़ा पद पाया है, ये आपकी महत्वकांक्षा थी, ना कि त्याग ! हर व्यक्ति अपने जीवन में ऊंचाई पर जाने के लिए जोखिम लेता है, वो आपने भी लिया तो कोई बड़ी बात नहीं की. ईसलिये अहसान की ये गठरी आप अपने मुख्यमंत्री आवास के अटाला घर में रख दें. कल आप राष्ट्रपति भवन में थे. क्या ज्वाइंट कमिश्नर रहते हुए आप जा पाते? नहीं, बिलकुल नहीं ….आपने नौकरी छोड़ कर उससे ज्यादा पाया है ..ईसलिये कृपया अपने ये घड़ियाली आंसू बंद कीजिये.