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सुख-दुख

युद्ध अपराधी और हत्यारा तानाशाह है पुतिन!

विश्व दीपक-

पुतिन का नाम अब मैं युद्ध अपराधियों और हत्यारे तानाशाहों की श्रेणी में डालूंगा. मेरे कहने या ना कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन इतिहास इस सनकी को माफ़ नहीं करेगा.

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आखिरकार वही हुआ जिसकी आशंका थी.

रूस के संसाधाओं को लूट कर, oligarch पैदा करने वाला, पुतिन दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ ले गया. इस तस्वीर से समझ सकते हैं कि रूस ने यूक्रेन को कैसे घेरा है.

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दुनिया का कोई भी तानाशाह बातचीत, डिप्लोमेसी जैसा शब्द नहीं समझता. पुतिन से बात करने फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉन गए, जर्मनी के चांसलर लगातार उनके संपर्क में थे. लेकिन उसे तो हमला करना था. इसीलिए किया. बाकी बहानेबाजी है.

पुतिन या पुतिन जैसे की समाप्ति ही एकमात्र रास्ता बचा है दुनिया के सामने.

यह यूक्रेन की राजधानी कीव से भागते हुए लोगों का हुजूम है. सुरक्षित स्थानों की तलाश में लाखों लोग पश्चिम की ओर भाग रहे हैं. पोलैंड की तरफ.

कितनी बड़ी मानवीय त्रासदी पैदा कर दी है रूस के आधुनिक जार ने. कितना बड़ा विस्थापन होगा.

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जब बातचीत के रास्ते खुले थे तो हमला क्यूं??

सोचिए कितने लोग बेघर होंगे, कितने मारे जाएंगे, कितने अनाथ होंगे. एक शहर बसने में सदियां लग जाती हैं. उजाड़ने में कुछ मिनट. आज यूक्रेन का हर बड़ा शहर बॉम्ब और मिसाइलों के हमले तले मिटने की कगार पर पहुंच चुका है.

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शुरू से कह रहा हूं की नाटो का विस्तार बहाना था. पुतिन ने पहले अपने विरोधियों की हत्या करवाई, अब निर्दोष लोगों की हत्या कर रहा.

शायद इसका अंत आ चुका है.

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रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने जिस तरीके से यूक्रेन पर दावा ठोक कर चढ़ाई की है, उस हिसाब से भारत को अफगानिस्तान और बांग्लादेश से लेकर म्यान्म्यार पर भी अपना दावा ठोक देना चाहिए.

मौका मिले तो श्रीलंका की तरफ भी युद्धपोत, टैंक और सेना भेज देना चाहिए. नेपाल और भूटान का अलग से क्या जिक्र करना. वो तो “अखंड भारत” का ही हिस्सा हैं — सदियों से. जैसे पुतिन के मुताबिक यूक्रेन, रूस का हिस्सा रहा है.

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आज जो पुतिन रूस में कर रहा है, वही कल चीन ताइवान में करेगा. बल्कि करता रहता है. परसों भारत, बांग्लादेश में यही कर सकता है. फिर रूस के अंध भक्त ऐसे ही जश्न मनाएंगे क्या?

असल में रूस ने एक प्रसीडेंस सेट कर दिया है कि अगर आपके पास ताकत है तो आप छोटे देशों पर कब्ज़ा कर सकते हैं. बहाना कुछ भी हो सकता है — नाटो से लेकर, मूल निवासी और भाषा तक.

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केजीबी के इस पूर्व जासूस ने दुनिया को युद्ध के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है. क्या दिक्कत थी अगर सीमाएं ऐसी ही बनी रहती तो? नाटो में यूक्रेन का शामिल होना बहाना है. रूस से अलग हुए लाटाविया और एक देश का नाम भूल रहा हूं (लिथुआनिया), कब से नाटो से सदस्य है. कम से कम 25 साल तो हो हैं ही.

क्या खतरा हुआ उससे रूस को अब तक?

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अरब के कठमुल्ला शाहों, सुल्तानों और उत्तर कोरिया के किम जुंगवा के बाद पुतिन दुनिया का दूसरा आदमी है जिसने भू-राजनीति को इस तरह गंदा किया है.

1999 से यह आदमी किसी न किसी प्रकार से रूस की सत्ता पर काबिज़ है. जैसे मोदी यहां अंबानी और अडानी पैदा कर रहा है वैसे पुतिन भी अपने हज़ारों अंबानी- अडानी (oligarch) पैदा कर चुका है पिछले तीन दशक में. वहां की मीडिया का हाल यहां से कई गुना खराब है.

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रूस की हथियार लॉबी का पिट्ठू, पुतिन दुनिया को बर्बाद करने पर आमादा है. चीन, पाकिस्तान उसके नए दोस्त हैं. पर्सनलिटी के हिसाब से देखा जाया तो शिनपिंग, पुतिन और मोदी एक तरह निकलेंगे.

शी जिनपिंग भी संविधान संशोधन कर चुका है. पुतिन कई साल पहले ही कर चुका था. अब मोदी भी उसी राह पर है. पुतिन और रूस की अच्छी तुड़ाई होनी चाहिए. यही इस दुनिया के लिए बेहतर होगा.

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एक ज्ञानवान ने खोज निकाला कि यूक्रेन की सेना का नाज़ियों से संबंध है (इसलिए पुतिन की चढ़ाई जायज है). एक ने कहा कि चूंकि मैंने पुतिन की जारशाही वाले रूस के खिलाफ़ एक पोस्ट लिखी दी – इसलिए बिक गया.

कुछ ने निष्कर्ष निकाला कि पश्चिम की पाबंदियां जासूस से जार बने पुतिन का कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगी. अरब के अय्याश और हरामी सुल्तानों का नाम लिख दिया तो एक ने सर्टिफिकेट दिया कि इस्लामोफोबिया की बीमारी है.

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इन सबके बीच मोदी-भक्तों का चरम आनंद में डूबना सबसे दिलचस्प लगा. अमेरिका परस्त होने के चक्कर में ट्रंप जैसे जोकर का समर्थन करने वाले भी अब अमेरिकी साम्राज्वाद की जमीन माप रहे. कदाचित उन्हें लगता है कि मोदी भी, पुतिन की राह पर चलते हुए कश्मीर का हिसाब कर लेगा एक दिन.

चूंकि रेशा-रेशा निकालकर चौराहे पर नहीं लटकाना चाहता इसलिए मोटे तौर पर कहना चाहता हूं कि अगर –

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  1. पुतिन के नेतृत्व में रूस Communist country है तो फिर मोदी की अगुवाई में भारत को गांधीवादी मानना चाहिए. रुस अगर लेलिनवाद की राह पर है (स्टालिन का जिक्र अभी नहीं) तो भारत बुद्ध की राह पर तेज़ी से दौड़ रहा है.
  2. मान लीजिए अगर लेनिन होते तो क्या करते? पुतिन को लात मारकर सत्ता से बाहर करते. यह उनका पहला काम होता.
  3. पुतिन ने रूस को oligarchs का अय्याशगाह बना डाला है. पिछले 23 सालों सेएक आदमी रूस को रौंद रहा है और यहां इतिहास की कंदराओं में रोशनी खोजने वाले परजीवी उसका समर्थन कर रहे हैं.

जान लीजिए चंद मुट्ठी भर oligarchs का रूस के संसाधनों पर, इकॉनमी पर कब्जा है. रूसी जनता की हालत बेशक भारत से कुछ बेहतर है लेकिन वेस्ट के सामने कुछ नहीं. इसीलिए, सोवियत संघ का विखंडन हुआ था (हालांकि कारण और भी थे).

विरोधियों को ज़हर का इंजेक्शन देने से भी गलत कुछ हो सकता है?

पश्चिम के प्रतिबंधों का असर रूस की गरीब जनता झेलती आई है. पुतिन और उसकी कोटियरी नहीं. यही असर ईरान, सीरिया, म्यानमार में भी हुआ. खामनेई, असद और जुंटा का क्या बिगड़ा? कुछ नहीं. भुगत रही है जनता.

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मान लीजिए अगर अमेरिका भारत पर प्रतिबंध लगाता है तो उसका असर अंबानी-अडानी, अमित शाह, राममाधव नहीं झेलेंगे. हम आप भुगतेंगे.

अंत में अगर आप पुतिन की “जारशाही” को सही मान रहे हैं तो फिर मोदी तो भगवान का अवतार मान लीजिए (जैसा कि भगवा ब्रिगेड मानती है). बाकी कठमुल्लाओं का कहना ही क्या.

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शी जिनपिग ने दसियों लाख मुसलमानों का कत्लेआम किया लेकिन इमरान खान को दृष्टिदोष हो गया. उसे दिखाई ही नहीं पड़ रहा. कर्नाटक में चल रहे हिजाब पर फतवा जारी करने वाला कुवैत की आंख पर पट्टी है. “इस्लामिक बदरहुड” की सोच, उइगर और चीन के मामले में कोमा में चली जाती है.

ऐसा कैसे हो सकता है? कैसे चलेगा ? मानवीय मूल्यों का पैमाना तो एक ही होना चाहिए न ? कि यह भी धर्म, जाति, देश और सड़ियल विचारधारा के नाम पर बदल जाए

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