पत्रकार की मौत : क्या संस्थान की कवरेज से भर जाएगा परिवार का पेट! शिमला के एक वरिष्ठ पत्रकार की मौत पर उसके मीडिया संस्थान ने खबरें और संपादकीय लिख कर श्रद्धांजलि दी। पूरा प्रदेश गमगीन हुआ। लेकिन क्या इससे उसके परिवार का भविष्य संवर जाएगा। ऐसे वक्त में एक कर्मचारी को संस्थान से आर्थिक मदद के तौर पर जो मिलना चाहिए क्या वह मिलेगा।
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि प्रदेश का अपना और नंबर एक मीडिया समूह होने का दंभ भरने वाले इस अखबार ने अपने कर्मचारियों के भविष्य की चिंता न करते हुए न तो कर्मचारी बीमा करवा रखा है और न ही स्वास्थ्य बीमा । ऐसे वक्त में इस पत्रकार के परिवार के भविष्य की आर्थिक मदद कैसे होगी। सरकार के आगे हाथ पसारे जाएं तो भी इतनी राशि नहीं मिल पाएगी जितनी एक कंपनी ग्रुप इंश्योरेंस के माध्यम से अपने कर्मचारियों को दिला सकती है। शर्मनाक बात यह है कि प्रदेश के पत्रकार सरकार के आगे हाथ पसारे तो दिख जाएंगे, मगर अखबार मालिकों से अपना वैधानिक हक मांगने की इनकी हिम्मत नहीं है।
अब एक अन्य मामले की चर्चा करते हैं। धर्मशाला में एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार के पत्रकार के साथ ही ऐसा ही हादसा हुआ था। उसके परिवार की चिंता में कई तथाकथित हमदर्दों ने होहल्ला किया कि उसके परिवार का क्या होगा। बैठकें हुईं और हाथ पसारे हुए परिवार की मदद के लिए सरकार और दूसरे लोगों से मदद जुटाने की कोशिश की गई, जो रकम जुटाई गई उससे शायद ही परिवार का राशन भी आ पता।
फिर आई संस्थान की बारी, तो संस्थान ने जो मदद की उससे उसका परिवार आर्थिक संकट की चिंता से मुक्त हुआ। परिवार को संस्थान द्वारा करवाए गए बीमा और ग्रेच्युटी इत्यादि के माध्यम से करीब तीस से चालीस लाख रुपये तक की राशि प्रदान की गई। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या शिमला के पत्रकार के परिवार को धर्मशाला की तरह संस्थान से इतनी आर्थिक मदद मिल पाएगी तो उसका जवाब ना में ही मिलता है। ऐसे में परिवार क्या पहले पन्ने से लेकर भितर के पन्नों में छापी गईं श्रद्धांजलि की खबरों को ताउम्र संभाले गुजारा करेगा!
वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र अग्रवाल की फेसबुक वॉल से.