-विवेक शुक्ल-
हिन्दी कॉरपोरेट दुनिया में दस्तक दे रही है। ये बोर्ड की बैठकों में सुनाई दे रही है। भारती एयरटेल के अध्यक्ष सुनील भारती मित्तल, हीरो समूह के प्रमुख पवन मुंजाल, अपोलो टायर्स के चेयरमेन ओंकार सिंह कंवर, सज्जन जिंदल ( जेएसड्ब्लयू) आदि हिन्दी में ही अपने पेशेवरों से बातचीत करते रहे हैं। ये बोर्ड की बैठकों में भी हिन्दी में बोलते हैं।
जिन कंपनियों का प्रबंधन मारवाड़ियों के हाथों में है, वहां पर हिन्दी पूरी ठसके के साथ है। इनमें गोयनका, जिंदल, बिड़ला, रुईया, बजाज वगैरह शामिल हैं। मारवाडी तो हिन्दी को लेकर काफी प्रतिबद्ध रहे हैं।
धीरूभाई अंबानी तो हिन्दी और गुजराती में ही बात करना पसंद करते थे। उनके दोनों पुत्र मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी भी हिन्दी-गुजराती में ही अपनी बोर्ड की बैठकों में बोलते हैं।
ओंकार सिंह कंवर को आप उद्योग और वाणिज्य संगठन फिक्की के दफ्तर में या अपनी कंपनी की बोर्ड की बैठकों में अंग्रेजी के साथ हिन्दी मजे से बोलते हुए सुनेंगे। अगर उन्हें कहीं कोई भाषण देना होता है, तो वे आमतौर पर लिखा हुआ भाषण ही पढ़ते हैं। भाषण में जटिल अंग्रेजी शब्द हिन्दी में लिखे होते हैं। बोर्ड रूम में गुजराती, सिंधी और अन्य भारतीय भाषाएं भी सुनाई देती हैं।
तमिलभाषी एचसीएल टेक्नोलोजीस के खरबपति चेयरमेन शिव नाडार कहते हैं हिन्दी पढ़ने वाले छात्रों को अपने करियर को चमकाने में लाभ ही मिलता है। वे कुछ समय पहले अपने सेंट जोसेफ स्कूल के एक समारोह में बोल रहे थे। वे भारत के सबसे सफल कारोबारियों में से एक माने जाते हैं और लाखों पेशेवर उनकी कंपनी में काम करते हैं।
ब्रिटानिया बिस्कुट कंपनी की कुछ समय पहले तक मैनेजिंग डायरेक्टर रहींविनीता बाली ने एक साक्षात्कार में कहा था कॉरपोरेट इंडिया को हिन्दी की ताकत मालूम है। उसे मालूम है कि कितना बड़ा है हिन्दी का बाजार। इसी तथ्य की रोशनी में हिन्दी पट्टी के लिए विज्ञापन का बजट सर्वाधिक होता है।
फिक्की में कुछ साल पहले तक अंग्रेजी छाई रहती थी। हिन्दी के लिए कोई जगह नहीं है। ये ही स्थिति एसोचैम और सीआईआई की भी थी। पर गुजरे बीसेक वर्षे से ये बात नहीं रही। अंग्रेजी के वर्चस्व को हिन्दी तोड़ नहीं रही है, पर वह अपने लिए नई जमीन अवश्य तैयार कर रही है।
कभी-कभी लगता ये है कि कॉरपोरेट जगत की भाषा को यूं ही अंग्रेजी बताने की कोशिश हुई। वस्तु स्थिति ये है कि अनिल अग्रवाल ( वेदांता) राहुल बजाज ( बजाज समूह), आनंद महिन्द्रा ( महिन्द्रा समूह), दीपक पारेख ( एच़डीएफसी बैंक), जैसे देश के कॉरपोरेट की दुनिया के सम्मानित नाम मजे से हिन्दी में बोलना पसंद करते हैं।
इसके साथ ही, तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पेशेवर बड़े पैमाने पर हिन्दी का ज्ञान हासिल कर रहे हैं ताकि अपनी कंपनी के उत्पादों का फीडबैक आम हिन्दुस्तानी से उसकी जुबान में बात करके ले सके। चूंकि एमएनसी के पेशेवर हिन्दी सीखने लगे हैं, तो इऩ्हें हिन्दी का गुजारे-लायक ज्ञान देने वाले इंस्टीच्यूट भी खुल गए हैं।
दिल्ली और गुरुग्राम में काम करने वाले सैकड़ों जापानी,चीनी और कोऱियाई कंपनियों के पेशेवर दिल्ली में रहते हुए हिन्दी का काम चलाऊ ज्ञान सीख लेते हैं। दरअसल इन पेशेवरों का संबंधआईटी, टेलीकॉम, मैन्युफैक्चरिंग, आटो वगैरह क्षेत्रों की कंपनियों से है। ये दो तरह से हिन्दी का कामकाजी ज्ञान ले रहे है। किसी हिन्दी के मास्टरजी से या फिर उन संस्थानों में जाकर जहां पर विदेशियों या राजनयिकों को हिन्दी पढ़ाई जा रही है। रूसी और स्पेन के छात्र काम-चलाऊ हिन्दी लिखने-बोलने में आगे रहते हैं।
मल्टीनेशनल कंपनियों के पेशेवर दो-तीन स्तर की हिन्दी का ज्ञान लेते हैं। कुछ बहुत ही बुनियादी किस्म की हिन्दी सीखते हैं। जैसे किसी दूकान में जाकर तोल-मोल कैसे से किया जाए, किसी अनजान इंसान से रास्ता कैसे पूछा जाए आदि। इन्हें छोटे-मोटे जरूरी शब्दों की भी जानकारी दे दी जाती है। दूसरे,वे जो भारत में तीन-चार साल की पोस्टिंग पर आते हैं। ये गुजारे लायक से एक कदम आगे की हिन्दी सीखने लिए आते हैं। इनके लिए छह महीने की क्लासेज चलती हैं।
दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार विवेक शुक्ल की एफबी वॉल से।