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नहीं सम्‍पादक जी, नहीं, ऐसा मत कीजिए

वैसे भी आपकी विश्‍वसनीयता पिछले कई बरसों से बुरी तरह खतरे में हैं, इसके बावजूद अगर आपने अपना रवैया नहीं सुधारा तो अनर्थ ही हो जाएगा। अब देख लीजिए ना, कि आपके संस्‍थान में क्‍या-क्‍या चल रहा है। राजधानी से प्रकाशित अखबारों पर एक नजर डालते ही हर पाठक को साफ पता चल जाता है कि मामला क्‍या है और खेल किस पायदान पर है। 

वैसे भी आपकी विश्‍वसनीयता पिछले कई बरसों से बुरी तरह खतरे में हैं, इसके बावजूद अगर आपने अपना रवैया नहीं सुधारा तो अनर्थ ही हो जाएगा। अब देख लीजिए ना, कि आपके संस्‍थान में क्‍या-क्‍या चल रहा है। राजधानी से प्रकाशित अखबारों पर एक नजर डालते ही हर पाठक को साफ पता चल जाता है कि मामला क्‍या है और खेल किस पायदान पर है। 

हिन्‍दुस्‍तान और अमर उजाला ने बिजली कम्‍पनियों द्वारा की गयी कई-कई सौ रूपयों की धोखाधड़ी की खबर को लीड छापी है। नभाटा ने कुमार विश्‍वास को लीड बनाया है। लेकिन दैनिक जागरण ने मोदी की जान पर खतरे को लीड बना दिया है। 

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क्‍या वाकई नरेंद्र मोदी की जान को खतरा है ? अगर हां, तो इस खबर की अनदेखी करके बाकी अखबारों ने वाकई गम्‍भीर चूक की है। शर्मनाक चूक।

लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो आपको यह स्‍पष्‍ट करना होगा कि इस खबर की विश्‍वसनीयता क्‍या है।

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कुमार सौवीर के एफबी वॉल से

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