अमित कटारिया, कलक्टर, बस्तर (फोटो सौजन्य : फेसबुक)
छत्तीसगढ़ में तैनात आईएएस और आईपीएस विवादों में रहते हैं. दमन करने से लेकर धमकाने तक के लिए. बस्तर जिले के कलक्टर अमित कटारिया काला चश्मा पहनकर पीएम नरेंद्र मोदी से मिलने के मामले में कुख्यात रहे तो अब यही आईएएस एक पत्रकार बुरी तरह और गंदी भाषा में धमकाने के लिए चर्चा में है. दरअसल जेएनयू से कई प्रोफेसर बस्तर के एक गांव में गरीबों से मिलने और सामाजिक अध्ययन करने गए थे. उन्होंने बातचीत में ग्रामीणों को नक्सलियों और राज्य की पुलिस दोनों से दूर रहकर खुद का जीवन बेहतर करने की सलाह दी थी. मौके की ताक में बैठे रहने वाली रमन सरकार के कारिंदों ने गांव वालों को चढ़ाया, भड़काया और उनसे इन प्रोफेसरों के खिलाफ शिकायत ले ली कि ये लोग ग्रामीणों को भड़का रहे थे.
इस शिकायत को डीएम अमित कटारिया ने अपने फेसबुक वॉल पर डाल दिया और मीडिया को इस तरह ब्रीफ किया गया मानों प्रोफेसर लोगों ने गांव वालों को नक्सलियों के साथ मिलजुल कर लड़ने का गुर दिया हो. ऐसा ही कुछ हर जगह छपा और ऐसा ही राज्य मशीनरी ने प्रचारित किया. इसी मसले को लेकर पत्रकार कमल शुक्ला ने डीएम अमित कटारिया को फोन किया और गंदी मानसिकता के तहत प्रोफेसरों को बदनाम किए जाने की शिकायत की. इतना सुनकर आईएएस अमित कटारिया आपा खो बैठा और लगा पत्रकार को धमकाने. पूरी बातचीत सुनिए और सोचिए कि जिन्हें जनता का सेवक कहा जाता है, वो खुद को किसी सद्दाम हुसैन से कम नहीं समझते.
लोकतंत्र में आईएएस – आईपीएस नामक प्रजाति किस कदर रक्षक से भक्षक कैटगरी में शिफ्ट हो रही है, इसकी मिसाल यह टेप है. कायदे से तो कलक्टर को विनम्रता पूर्वक पत्रकार द्वारा कहे गए शब्द पर आपत्ति प्रकट कर फोन काट देना चाहिए था. आखिर पद की गरिमा भी होती है. लेकिन आईएएस अमित कटारिया ने सड़क छाप मवालियों वाली भाषा का इस्तेमाल कर अपना ओरीजनल चेहरा दिखा दिया. आप इस आईएएस से कैसे जनप्रिय और निष्पक्ष अधिकारी होने की उम्मीद कर सकते हैं जो थोड़ा सा आरोप लगने पर इस कदर बिलबिला जाता कि अपने पद गरिमा दायित्व सब कुछ को भूल कर धमकाने लग जाता है.
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https://www.youtube.com/watch?v=VxJH8p7Tmr0
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