Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

upsacc की तरह ifwj के भी दो टुकड़े हो गये!

पत्रकारों के बटवारे का दर्द

-नवेद शिकोह-

पत्रकारों के बंटवारे के ‘जिन्नाओ’, कितने टुकड़े करोगे हमारे! फिल्म ‘जिस्म’ ने अच्छा बिजनेस दिया तो ‘जिस्म-टू’ बन गयी। इसी तरह नागिन-वन के बाद नागिन-टू, आशिकी के बाद आशिकी टू बनी। व्यवसायिक फिल्मों की व्यवसायिक सोच ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ये ट्रेन्ड शुरु किया था। भारत की आजादी के फौरन बाद भी कुछ ऐसा ही हुआ। नफा-नुकसान की व्यवसायिक सोच के साथ भारत की आजादी की लड़ाई मे मोहम्मद अली जिन्ना का शामिल होना कितना महंगा पड़ा था। जिन्ना की व्यवसायिक सोच की गन्दी सियासत ने भारत का बटवारा करके हमारे देश के टुकड़े कर दिये।

<p><span style="font-size: 24pt;">पत्रकारों के बटवारे का दर्द</span></p> <p><span style="font-size: 8pt;">-नवेद शिकोह-</span></p> <p>पत्रकारों के बंटवारे के 'जिन्नाओ', कितने टुकड़े करोगे हमारे! फिल्म 'जिस्म' ने अच्छा बिजनेस दिया तो 'जिस्म-टू' बन गयी। इसी तरह नागिन-वन के बाद नागिन-टू, आशिकी के बाद आशिकी टू बनी। व्यवसायिक फिल्मों की व्यवसायिक सोच ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ये ट्रेन्ड शुरु किया था। भारत की आजादी के फौरन बाद भी कुछ ऐसा ही हुआ। नफा-नुकसान की व्यवसायिक सोच के साथ भारत की आजादी की लड़ाई मे मोहम्मद अली जिन्ना का शामिल होना कितना महंगा पड़ा था। जिन्ना की व्यवसायिक सोच की गन्दी सियासत ने भारत का बटवारा करके हमारे देश के टुकड़े कर दिये।</p>

पत्रकारों के बटवारे का दर्द

-नवेद शिकोह-

Advertisement. Scroll to continue reading.

पत्रकारों के बंटवारे के ‘जिन्नाओ’, कितने टुकड़े करोगे हमारे! फिल्म ‘जिस्म’ ने अच्छा बिजनेस दिया तो ‘जिस्म-टू’ बन गयी। इसी तरह नागिन-वन के बाद नागिन-टू, आशिकी के बाद आशिकी टू बनी। व्यवसायिक फिल्मों की व्यवसायिक सोच ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में ये ट्रेन्ड शुरु किया था। भारत की आजादी के फौरन बाद भी कुछ ऐसा ही हुआ। नफा-नुकसान की व्यवसायिक सोच के साथ भारत की आजादी की लड़ाई मे मोहम्मद अली जिन्ना का शामिल होना कितना महंगा पड़ा था। जिन्ना की व्यवसायिक सोच की गन्दी सियासत ने भारत का बटवारा करके हमारे देश के टुकड़े कर दिये।

पत्रकार साथियों,  आप लोग जिन्ना को नायक मानते हो या खलनायक! जब ऐसे व्यक्ति को हम सब खलनायक मानते है तो फिर स्वार्थ से भरी व्यवसायिक सोच वाले उन पत्रकारों का साथ क्यों देते हो जो संवाददाता समिति-1,  संवाददाता समिति-2,  ifwj-1, Ifwj-2 जैसे तमाशे करके पत्रकारों का बटवारा कर रहे है। यकीन मानिये इनके खुद के हाथ इतने कमजोर हैं कि ये आप जैसे भोले-भालो के कंधो के बिना बंटवारे के दंगे मे बंदूके चला ही नहीं सकते हैं। आप कब तक और कितने हिस्सों में बटोगे? आप ‘इनके आदमी’ और ‘उनके समर्थक’ के रूप में अपने खुद के अस्तित्व की हत्या क्यों कर रहे है? आपमें से ज्यादातर लोग मेरी बातो से सहमत होगे। और वो किसी भी गुटबाजी से सहमत भी नही है। वो खुद भी किसी गुट में नहीं हैं। लेकिन आप लोग गुटबाजी और पत्रकारों के बटवारे के विरोध मे सामने क्यो नही आते?

Advertisement. Scroll to continue reading.

विरोध का मतलब तलवारे चलाना नहीं। किसी का अपमान करना भी नहीं। न्यायालय जाना भी नहीं। जिन्दाबाद- मुर्दाबाद के नारे लगाना, धरना-प्रदर्शन या अनशन पर बैठ जाना ही नहीं। सियासत करना या किसी का नेतृत्व स्वीकार करना भी नहीं। आप कलमकार है। पत्रकारों का बटवारा करने और उन्हें बाटने की गन्दी सियासत करने वालों के खिलाफ प्रतीकात्मक विरोध रूपी दो शब्द भी आप अपने कलम से नही लिख सकते! आप कब तक किसी बाजीराव, मनोज तिवारी, हिमांशु मिश्र, हिसाब सिद्दीकी या रुपेश बहादुर सिंह (लखनऊ के पत्रकारों के बदले हुए नाम) के आदमी बने रहेगे। क्यों ना हम-आप इनके-उनके आदमी बनने के बजाय मर्द बनकर पत्रकारों के बटवारे के खिलाफ आवाज उठाये और गंदी सियासत का खातमा करें।

आज वाट्सअप पर दिल्ली के एक कार्यक्रम की तस्वीरे देखकर दिली अफसोस हुआ। पता चला कि Upsacc की तरह ifwj जैसी  इतनी पुरानी पत्रकारों की ट्रेड यूनियन के भी दो टुकड़े हो गये। Ifwj के बटवारे पर गम-ओ-गुस्से के साथ मुनव्वर राना साहब के एक शेर का एक मिसरा और बात खत्म :- ”…सियासत एकता की जड़ में मठ्ठा डाल देती है”

Advertisement. Scroll to continue reading.

नवेद शिकोह

लखनऊ मे पत्रकारों के बटवारे की गन्दी सियासत से त्रस्त एक मामूली पत्रकार

Advertisement. Scroll to continue reading.

[email protected]

09369670660

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. sanjib

    February 28, 2016 at 5:43 pm

    Naved ji, aapse main poori tarah sahmat hoon. Saalon se Gandi Rajneeti kernewaley Patrakar-Netaon ne itni Gandgi faila rakkhi hai, jiska koi virodh aaj tak nahi kiya aur na hi kar saka. Majboori kya rahi, ye to wey log hi jaaney, par aapney jo Beeda Uthaya hai, ekdam sahi kiya hai. Udhar Parmanand Pandey ji bhi aise Dalalon se patrakaron ko chhutkara dilana chah rahey hain aur Idhar aap hain… Lagey rahiye… Satya-mev-jayate…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement