Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

जल साक्षरता (पार्ट 4) : यूरोप से भारत आए नलकूप की शवयात्रा!

सुनील चतुर्वेदी-

ह साल 2007-08 की बात होगी। मुझे देवास ज़िले के गाँव हरणावदा से पानी पर केंद्रित एक अनूठे कार्यक्रम का आमंत्रण मिला। मैंने इसके पहले पानी पर ऐसे किसी कार्यक्रम के बारे में न सुना था और न कल्पना की थी। कार्यक्रम था, नलकूप की शवयात्रा।

कार्यक्रम में बाक़ायदा कुछ किसानों ने मुंडन करवाये, ट्यूबवेल का मॉडल बनाकर उसकी अर्थी सजायी और यात्रा निकालकर ट्यूबवेल का अंतिम संस्कार भी किया।

असल में वर्ष 2004-05 आते-आते लोगों को यह समझ आने लगा था कि पानी की समस्या हल करने के लिये जिस ट्यूबवेल को अलादीन का चिराग़ मान लिया था वह अब भस्मासुर साबित हो रहा था। जिस रफ़्तार से ट्यूबवेल खोदे जा रहे थे उतनी ही तेज़ी से पानी रसताल में जा रहा था। लोग मानने लगे थे कि जल संकट का कारण सिर्फ़ और सिर्फ़ ट्यूबवेल है। ट्यूबवेल की अर्थी निकालना भी इसी बात का संकेत था। मतलब ट्यूबवेल ख़त्म कर दिये जायँ तो क्या पानी का संकट ख़त्म हो जायेगा? आपको क्या लगता है …

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस पर विचार करने से पहले ट्यूबवेल की कहानी समझ लें। कहाँ से आया, कब आया यह जानना भी ज़रूरी है।

ट्यूबवेल भारत की ईजाद नहीं थी। यह तकनीक यूरोप से हमारे यहाँ आयी। जिस देश के लोक में ज़रूरत से ज्यादा पानी खर्च करने पर कर्जा बढ़ने जैसी बात कही जाती हो उस देश में अपने लाभ, लोभ और सुविधा के लिये ज़मीन का पानी बेहिसाब उलीचने जैसी तकनीक नहीं हो सकती थी। पानी और हमारी परंपराओं पर भी आगे की श्रृंखला में बात करेंगे। फ़िलहाल बात ट्यूबवेल की, तो सन् 1935 में पहला ट्यूबवेल उत्तरप्रदेश में खोदा गया था। सन् 1960 में देश में ट्यूबवेल की संख्या 3000 थी और 1990 आते-आते यह संख्या 60 लाख पार कर गयी थी।

यह वह आँकड़ा था जो ट्यूबवेल सरकारी दस्तावेज में दर्ज थे। इससे ज्यादा वह संख्या थी जो कहीं दर्ज नहीं थी। नब्बे के दशक के बाद देश में कितने करोड़ ट्यूबवेल खोदे गये इसका अंदाज़ा लगा पाना भी कठिन है। ट्यूबवेल की इस बढ़ती संख्या के कारण जहां कुछ सालों पहले 25-30 फुट पर पानी मिल जाता था वहाँ आज 500, 600, 800 और अब तो कुछ इलाक़ों में 1200 फुट तक गहरे महाबोर खोदे जा रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जरा सोचिये, अगर इसी तरह भू-जल का दोहन किया जाता रहा तो आने वाले 25 साल बाद यानी 2050 में जल स्तर कितना नीचे चला जाएगा? गर उतनी गहरायी पर भी पानी नहीं होगा तो क्या होगा? सोचिये..और जवाब दीजिये।

मालवा के एक गाँव में एक किसान ने इस सवाल के जवाब में थोड़ा सोचने के बाद कहा था “मराँगा “ यानी मर जाएँगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह सवाल और जवाब डराने के लिये नहीं है। ऐसा होगा भी नहीं क्योंकि यह जल संकट के कारण का आधा अधूरा सच भी नहीं है। लेकिन पानी के संकट की गंभीरता को समझने के लिये यह सवाल ज़रूरी है और उस पर विचार भी। किसी भी समस्या को उसके पूर्ण रूप में देख लेने पर ही समस्या का सही समाधान खोजा जा सकता है और आप, हम मिलकर खोजेंगे भी।

क्रमशः

Advertisement. Scroll to continue reading.

पिछला भाग…

जल साक्षरता (पार्ट 3) : परियों की कहानी बन गया है नदियों का पानी!

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group_one

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement