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मुकेश भारद्वाज होंगे जनसत्ता के अगले कार्यकारी संपादक

जनसत्ता के अगले कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज होंगे। वह ओम थानवी का स्थान लेंगे। थानवी जी लगभग तीन माह बाद सेवानिवृत्त हो रहे हैं। मुकेश के मनोनयन की सूचना का ई-मेल आ चुका है। मेल जनसत्ता एवं इंडियन एक्सप्रेस के बोर्ड अध्यक्ष विवेक गोयनका ने प्रेषित किया है। मुकेश भारद्वाज अभी जनसत्ता के चंडीगढ़ क्षेत्र के संपादक हैं। 

जनसत्ता के अगले कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज होंगे। वह ओम थानवी का स्थान लेंगे। थानवी जी लगभग तीन माह बाद सेवानिवृत्त हो रहे हैं। मुकेश के मनोनयन की सूचना का ई-मेल आ चुका है। मेल जनसत्ता एवं इंडियन एक्सप्रेस के बोर्ड अध्यक्ष विवेक गोयनका ने प्रेषित किया है। मुकेश भारद्वाज अभी जनसत्ता के चंडीगढ़ क्षेत्र के संपादक हैं। 

हिंदी पत्रकारिता में इतिहास रचने वाले इस अखबार के सबसे बड़े ओहदे की जिम्मेदारी संभालने जा रहे मुकेश के लिए चुनौतियां भी उतनी ही बड़ी एवं विराट हैं। देखना होगा कि वह इसका सामना कैसे और किस प्रकार करते हैं। क्यों कि जनसत्ता इस समय अपने चरम अवसान पर है। चंडीगढ़ में इसकी महज तीन-चार सौ प्रतियां छपती हैं। दिल्ली एवं अन्य स्थानों पर भी तकरीबन यही स्थिति है। 

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मैनेजमेंट, खासकर शेखर गुप्ता के इंडियन एक्सप्रेस का सीईओ रहते जनसत्ता की जो दुर्गति हुई-की गई और उसे प्रकाशित होने से रोकने, उसके सुधी पाठकों को उससे वंचित करने, जनसत्ता के कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने की जितनी भी तिकड़में, साजिशें, कुचक्र रचे-किए गए वह छिपा नहीं है। बावजूद इसके जनसत्ता की बेजोड़ टीम और कार्यकारी संपादक ओम थानवी के नेतृत्व-सोच-चिंतन ने, बेहद सीमित दायरे में ही सही, उसकी लोकप्रियता, उसके समाचार-विचार को प्रभावित नहीं होने दिया।

यही वजह है कि इस वक्त आम उपलब्धि से दूर रहने के बावजूद इस अखबार को पढ़ने, इसमें लिखने की ललक-रुचि बरकरार है। यहां तक कि हिंदी अखबारों में कार्यरत किसी भी पत्रकार साथी से जनसत्ता की चर्चा करिए तो वे बेधड़क कहते हैं- जो भी हो, जनसत्ता में जो छपता है, लिखा जाता है, दूसरे हिंदी अखबारों में दुर्लभ है। काश, जनसत्ता पुराने, अपने शुरुआती काल की तरह छपने, बंटने लगता! क्योंकि इस तरह के अखबार को पढ़ने की ललक आज के दौर में बेहद बढ़ गई है। सबसे रोचक तो यह है कि आज भी अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में अच्छा-सही-सटीक-सुस्पष्ट एवं गंभीर लेखन करने वाले लोग जनसत्ता को येन-केन प्रकारेण पढ़ने की कोशिश जरूर करते हैं।  

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2 Comments

2 Comments

  1. manoj

    May 10, 2015 at 9:25 pm

    bhadas ne jo kaha, 100% sahi hai. Iska ek taza udaharan mere Pita ji hain. 80 saal ki Umra me bhi unhen “Jansatta” ki Lalak aur bhookh is kadar rahti ki Likhna mushkil hai.. Wey jahan bhi, jis bete ke paas gaye, wahan ke Hawker se pahle hi poochh lete- “Jansatta dogey”? Yadi wah koi bahaney banata aur kehta ki “Sahab, Jansatta yahan nahi chhpti, Dilli se aati hai, Baasi news milega, ek din purana akhbaar milega etc. etc. To unka ek hi jawab hota- “Padhney ko Milega na”. Yadi tum regular de sakte ho to ek Jansatta aur ek koi bhi English- ToI ya HT saath me de dena aur nahi to tum chalo, mai doosra hawker dekhta hoon”.
    Aur Unhoney apney antim samay tak ussi hawker se dono akhbaar liya, jo Jansatta unhein deta..
    Wey badey garv se kehtey, “Jansatta se Badh ker na koi akhbaar hua aur na hai… Ghazab hai… Ghazab hai… Ghazab hai”.
    Aur Lagbhag daily humdono baap-bete me phone per baatein bhi ho jaya kerti thee, aadhi batein Jansatta mein aaj kya chhpa, Ghazab falaan columnist ne likha, Ghazab ka Akhbaar hai… Oh Iskey kya kehney…etc. etc.”
    Badey khed ke saath kehna pud raha hai ki Jansatta ka Ek “Ghazab ka Fan” ab iss Duniya me nahi raha… 11th Dec. 2014 ko yah Fan Humlogon ke saath Jansatta ko bhi “Alvidaa” keh gaya….
    Manoj k Rahi
    IE, Lucknow

  2. Shashi

    April 13, 2019 at 4:46 pm

    जनसत्ता के लिए उस फैन की ललक और अपनी. ललक के बीच एक रिश्ता महसुस हुआ.आपकी टिप्पणी पढ़कर अच्छा लगा.हालाकि मैं ये आज 13 अप्रैल 2019 में पढ़ा है.आपकी टिप्पणी लिखने के चार साल बाद.पर फिर भी प्रतिक्रिया देने से खुद को रोक नहीं पाया. टिप्पणी पढ़कर एक अजीब सा आनंद महसुस हुआ. फिलहाल शब्द नहीं मिल रहे.

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