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जंतर मंतर पर किसान आत्महत्या से अधिग्रहण अध्यादेश तक

आज दिल्ली में जंतर मंतर पर केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान दौसा (राजस्थान) का किसान गजेंद्र सिंह पेड़ पर फांसी से झूल गया। अपने पीछे छोड़े एक सुसाइड नोट में वह लिख गया कि ‘दोस्तों, मैं किसान का बेटा हूं। मेरे पिताजी ने मुझे घर से निकाल दिया क्योंकि मेरी फसल बर्बाद हो गई। मेरे पास तीन बच्चे हैं….जय जवान, जय किसान, जय राजस्थान।’ घटना के समय मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, आप के नेता संजय सिंह, कुमार विश्‍वास मौके पर मौजूद थे। राममनोहर लोहिया अस्पताल के मुताबिक उसको मृत अवस्था में अस्पताल ले जाया गया था। 

जंतर मंतर पर आत्महत्या से पूर्व गजेंद्र सिंह

आज दिल्ली में जंतर मंतर पर केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान दौसा (राजस्थान) का किसान गजेंद्र सिंह पेड़ पर फांसी से झूल गया। अपने पीछे छोड़े एक सुसाइड नोट में वह लिख गया कि ‘दोस्तों, मैं किसान का बेटा हूं। मेरे पिताजी ने मुझे घर से निकाल दिया क्योंकि मेरी फसल बर्बाद हो गई। मेरे पास तीन बच्चे हैं….जय जवान, जय किसान, जय राजस्थान।’ घटना के समय मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, आप के नेता संजय सिंह, कुमार विश्‍वास मौके पर मौजूद थे। राममनोहर लोहिया अस्पताल के मुताबिक उसको मृत अवस्था में अस्पताल ले जाया गया था। 

जंतर मंतर पर आत्महत्या से पूर्व गजेंद्र सिंह

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मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि आप के कार्यकर्ता दिल्ली पुलिस से किसान को बचाने के लिए अपील करते रहे लेकिन दिल्ली पुलिस के जवानों ने इस दिशा में कुछ नहीं किया। उसे पेड़ पर चढ़ने दिया। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि किसान और मजदूर घबराएं नहीं, हम उनके साथ खड़े हैं। देश की राजधानी में सरेआम एक रैली के दौरान गजेंद्र सिंह की मौत अपने पीछे कई बड़े सवाल छोड़ गई है। यह सवाल केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस, भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस, इन सबको कठघरे में खड़ा करता है। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश से शुरू होकर यह सवाल हमारी पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था तक जाता है। यह सवाल उस पूरे सिस्टम से है, जो एक तरफ मौसम की मार से निढाल किसानों की लाशें गिन रहा है, दूसरी तरफ किसी भी कीमत पर वह भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पारित कराने पर आमादा है, जो किसान से उसकी जमीन भी छीन सके। 

गजेंद्र सिंह सुसाइड नोट

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जंतर मंतर की मौत उस गहरे षड्यंत्र के दुष्परिणाम के रूप में देखी जानी चाहिए, जो देश आजाद होने के बाद से लगातार इस देश के करोड़ो-करोड़ किसान-मजदूरों के साथ खेत-खलिहानों से कल-कारखानों तक हो रहा है। उस षड्यंत्र में सबसे बड़ी साझीदार कांग्रेस है, जिसने आज देश को इस मोकाम तक पहुंचा दिया है। उस षड्यंत्र में दूसरी सबसे बड़ी भागीदार मजदूर-किसान विरोधी भाजपा है, जिसकी इस समय केंद्र में सरकार है। इन दोनो की आर्थिक नीतियां एक हैं। देश का आम बजट हो या एफडीआई जैसे मुद्दे, दोनो एक सिक्के के दो पहलू हैं। इन दोनो की प्राथमिकताएं कारपोरेट पूंजी की हिफाजत है। 

उस षड्यंत्र के लिए उन्हें भी गैरजिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए जो पिछले साठ साल से इस देश में किसानों-मजदूरों की सियासत के नाम पर खूब मुस्टंड और हरे-भरे हो रहे हैं। इस षड्यंत्र से उस मीडिया को भी असंपृक्त नहीं माना जा सकता, जो स्वयं को भारतीय लोकतंत्र का चौथा सबसे बड़ा खैरख्वाह मानता है लेकिन खबरें छापते-छापते, अब पूरी बेशर्मी से सिर्फ खबरें बेचने लगा है। 

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कथित हरितक्रांतिवादी देश में ये सब-के-सब इसलिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि इन सभी को बहुत अच्छी तरह से मालूम है कि भारत में विदर्भ, तेलंगाना से बुंदेलखंड तक क्यों हजारों किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। उस प्रदेश में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, जिसके शासन की बागडोर धरतीपुत्र के पुत्र के हाथ में है। ये कैसा मजाक है कि 2014 में किसानों की आत्महत्या का ब्यौरा नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो जून महीने तक देगा। 31 मार्च 2013 तक के आंकड़े बताते हैं कि 1995 से अब तक 2,96 438 किसानों ने आत्महत्या की है हालांकि जानकार इस सरकारी आकंड़े को काफी कम बताते हैं। क़रीब पांच साल पहले कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने पंजाब में कुछ केस स्टडी के आधार पर किसान आत्महत्याओं की वजह जानने की कोशिश की थी। इसमें सबसे बड़ी वजह किसानों पर बढ़ता कर्ज़ और उनकी छोटी होती जोत बताई गई। इसके साथ ही मंडियों में बैठे साहूकारों द्वारा वसूली जाने वाली ब्याज की ऊंची दरें बताई गई थीं लेकिन वह रिपोर्ट भी सरकारी दफ़्तरों में दबकर रह गई। असल में खेती की बढ़ती लागत और कृषि उत्पादों की गिरती क़ीमत किसानों की निराशा की सबसे बड़ी वजह है, जिससे सरकारें बेखबर रहना चाहती हैं।

यह सच है कि इस व्यवस्था की जनद्रोही क्रूरताओं के चलते इससे पहले हजारों किसान आत्महत्याएं कर चुके हैं लेकिन अपने हालात से विक्षुब्ध एक युवा किसान का देश की राजधानी में इस तरह हुई मौत कोई यूं ही भुला दिया जाने वाला मामूली हादसा नहीं। घटना के समय वहां उस पार्टी के हजारों कार्यकर्ता मौजूद थे, जिसकी दिल्ली में सरकार है। उस मीडिया के दर्जनों रिपोर्टर मौजद थे, जो चौथा खंभा कहा जाता है। घटना उस स्थान पर हुई, जिससे कुछ कदम दूर देश की संसद है, जिसमें देश भर के जनप्रतिनिधियों का जमघट लगता है और जिसमें इस समय भाजपा सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पारित कराने पर पूरी तरह से आमादा है। कैसी बेशर्मी है कि वही पार्टी आज इस मौत पर बयान देती है कि जंतर मंतर पर मानवता की हत्या हुई। भाजपा प्रवक्ता संबित कहते हैं कि रैली क्या किसी आदमी की जान से ज्यादा जरूरी थी? तो क्या यही सवाल केंद्र की भाजपा सरकार से नहीं बनता कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश फिर तो किसान की जान से ज्यादा जरूरी है!

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जयप्रकाश त्रिपाठी 

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0 Comments

  1. sudarshil

    April 22, 2015 at 1:37 pm

    सर जी उक्त किसान को आप वाले लाये थे। उन्हीं की पूरी जिम्मेदारी थी उसे संभालते। इस घटना के पीछे आप वालेां की ही साजिश लगती है। सबसे बडा सवाल तो अरविंद केजरीवाल के रवैये का है। एक किसान उसके सामने ही मर रहा है और वह भाषण बंद नहीं कर रहा।

  2. prashant

    April 22, 2015 at 4:18 pm

    Suna hai wo kisan nahi .. politician tha. Pehle BJP mai raha. Ticket nahi mila to SP mai gaya. SP ki taraf se vidhansabha chunav bhi lada. Harne ke baad congress ka daman pakda. Waha se bhav nahi mile to AAP mai aaya. Sarpanch bhi reh chuka hai.
    Pakdi ka dhandha karne laga tha. Ghar mai kalah chal rahi thi. Usi ka natija tha.
    Ab kaha se kisan lag raha hai ye aapko

  3. ARTewari

    April 23, 2015 at 4:44 am

    बात का बतंगड़—चले थे हरी भजन को ओटन लगे कपास यह मुहावरा दिल्ली के मुख्यमंत्री और उनके तथाकथित्त टीम पर सही साबित होता है। सवाल है भासन जरूरी या एक आम आदमी का जीवन। उत्तर मिलेगा की आम आदमी का जीवन पहले जरूरी है। पर नेताओ को राजनीती से केवल मतलब है सो आम आदमी पार्टी के कर्णधार केजरीवाल ने किया क्योंकि सिआसत के लिए विसय चाहिए सो विप्पक्छ को मिल गया। वैसे बिनाश काले बिपरीत बुद्ध्हि तो हो ही चुकी है। जो अपने को आम आदमी पार्टी को समर्पित कर चूका था अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। केजरीवाल और उनकी टीम तो कुर्सी और सत्ता चाहिए सो मिल गई। ५ साल केजरीवाल। जान तो गयी एक किसान की पर अपने पीछे बहुत कुछ कह गया छोड़ गया इन सत्ता लोलुप नेताओ के लिए। यह नेता अपने स्वार्थ के लिए दंगा और हत्या करा और कर सकते हैं पर इनकी राजनैतिक रोटियां सेकती रहनी चाहिए। इनको जनता के सेवा कुछ लेना देना नहीं। जो स्वराज सुराज और करप्शन फ्री इंडिया की बात कर रहा था अब वह भी कोर्रुप्त हो गया। सभी राजनैतिक दलों आर टी आई के तहत लाने की वकालत करता रहा वह खुद आर टी आई में आने से भागने लगा। उ-टर्न आदमी केजरीवाल। कब कहा क्या बोलेगा और कब उ-टर्न लेगा नहीं कहा जा सकता। जैसी करनी वैसे भरनी। वो नहीं तो उसकी औलादें उसके कर्मो की सजा भुगतेगी यह तय है।उस किसान को मनीष सिसोदिआ ने विशेष रूप से बुलाया था। फिर आत्महत्या क्यों ? इसके पीछे भी राज है। कम से कम १ करोड़ का छतिपूर्ति आम आदमी पार्टी को देना चाहिए अन्यथा केजरीवाल और उनकी टीम पर हत्या का केस चलना चाहिए।

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