पहली कहानी का शीर्षक है- ‘फ्यूज बल्ब’
हाउसिंग सोसायटी में एक बड़े अफसर रहने के लिए आए जो अभी सेवानिवृत्त हुए थे। ये बड़े वाले रिटायर्ड अफसर हैरान परेशान से, रोज शाम को सोसायटी के पार्क में टहलते हुए, अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे। एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिये बैठे और फिर लगातार बैठने लगे।
उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था। मैं इतना बड़ा अफ़सर था कि पूछो मत, यहाँ तो मैं मजबूरी में आ गया हूँ, इत्यादि इत्यादि। वह बुजुर्ग शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे।
एक दिन जब सेवानिवृत्त अफसर की आँखों में कुछ प्रश्न कुछ जिज्ञासा दिखी, तो बुजुर्ग ने ज्ञान दे ही डाला-
उन्होंने समझाया:- रिटायरमेंन्ट के बाद हम सब एक फ्यूज़ बल्ब जैसे हैं, कौन कितने वाट का था, उससे कितनी रोशनी होती थी, जगमगाहट होती थी, फ्यूज़ होने के बाद मायने नहीं रखता।
फिर वो बोले कि मैं सोसाइटी में पिछले 5 वर्ष से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वे जो वर्माजी हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सिंह साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो मेहरा जी इसरो में चीफ थे। ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है। मुझे भी नहीं। पर मैं जानता हूं।
सारे फ्यूज़ बल्ब करीब-करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो, 40, 60 या 100 वाट. या फिर हेलोजन या फ्लड-लाइट का हो. कोई रोशनी नहीं. कोई उपयोगिता नहीं.
यह बात आप जिस दिन समझ लेंगे, आप शांतिपूर्ण तरीके से समाज में रह सकेंगे.
उगते सूर्य को जल चढ़ा कर पूजा करते हैं. डूबते सूरज की नहीं. यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाएगी, उतनी जल्दी जिन्दगी आसान हो जाएगी.
दूसरी कहानी का शीर्षक है- ‘देर न हो जाए’
यदि जीवन के 60 वर्ष पार कर लिए है तो अब लौटने की तैयारी प्रारंभ करें….इससे पहले कि देर हो जाये… इससे पहले कि सब किया धरा निरर्थक हो जाये…..
लौटना क्यों है
लौटना कहाँ है
लौटना कैसे है
इसे जानने, समझने एवं लौटने का निर्णय लेने के लिए आइये एक स्टोरी साझा करता हूँ :
लौटना कभी आसान नहीं होता…
एक आदमी राजा के पास गया कि वो बहुत गरीब था, उसके पास कुछ भी नहीं, उसे मदद चाहिए…
राजा दयालु था.. उसने पूछा- “क्या मदद चाहिए..?”
आदमी ने कहा- “थोड़ा-सा भूखंड..”
राजा ने कहा- “कल सुबह सूर्योदय के समय तुम यहां आना..ज़मीन पर तुम दौड़ना जितनी दूर तक दौड़ पाओगे वो पूरा भूखंड तुम्हारा। परंतु ध्यान रहे,जहां से तुम दौड़ना शुरू करोगे, सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा, अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा…!”
आदमी खुश हो गया…
सुबह हुई..
सूर्योदय के साथ आदमी दौड़ने लगा…
आदमी दौड़ता रहा.. दौड़ता रहा..
सूरज सिर पर चढ़ आया था..पर आदमी का दौड़ना नहीं रुका था..
वो हांफ रहा था,पर रुका नहीं था…
थोड़ा और..
एक बार की मेहनत है..फिर पूरी ज़िंदगी आराम…
शाम होने लगी थी…
आदमी को याद आया, लौटना भी है,
नहीं तो फिर कुछ नहीं मिलेगा…
उसने देखा, वो काफी दूर चला आया था..
अब उसे लौटना था..
पर कैसे लौटता..?
सूरज पश्चिम की ओर मुड़ चुका था..
आदमी ने पूरा दम लगाया —
वो लौट सकता था…
पर समय तेजी से बीत रहा था..थोड़ी ताकत और लगानी होगी…वो पूरी गति से दौड़ने लगा…
पर अब दौड़ा नहीं जा रहा था..
वो थक कर गिर गया…
उसके प्राण वहीं निकल गए…!
राजा यह सब देख रहा था…
अपने सहयोगियों के साथ वो वहां गया,
जहां आदमी ज़मीन पर गिरा था…
राजा ने उसे गौर से देखा..
फिर सिर्फ़ इतना कहा…
“इसे सिर्फ दो गज़ ज़मीं की दरकार थी…
नाहक ही ये इतना दौड़ रहा था…! “
आदमी को लौटना था… पर लौट नहीं पाया…
वो लौट गया वहां, जहां से कोई लौट कर नहीं आता…
अब ज़रा उस आदमी की जगह अपने आपको रख कर कल्पना करें, कही हम भी तो वही भारी भूल नही कर रहे जो उसने की
हमें अपनी चाहतों की सीमा का पता नहीं होता…
हमारी ज़रूरतें तो सीमित होती हैं, पर चाहतें अनंत..
अपनी चाहतों के मोह में हम लौटने की तैयारी ही नहीं करते…जब करते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है…
फिर हमारे पास कुछ भी नहीं बचता…
अतः आज कुछ प्रश्न एवं उनके उत्तर अनिवार्य रूप से लिखें-
मैं जीवन की दौड़ में सम्मिलित हुआ था, आज तक कहाँ पहुँचा?
आखिर मुझे जाना कहाँ है और कब तक पहुँचना है?
इसी तरह दौड़ता रहा तो कहाँ ओर कब तक पहुँच पाऊंगा?
हम सभी दौड़ रहे हैं…बिना ये समझे कि सूरज समय पर लौट जाता है…
अभिमन्यु भी लौटना नहीं जानता था…
हम सब अभिमन्यु ही हैं..हम भी लौटना नहीं जानते…
सच ये है कि “जो लौटना जानते हैं, वही जीना भी जानते हैं…पर लौटना इतना भी आसान नहीं होता…”
मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि हम सब लौट पाएं..!
लौटने का विवेक, सामर्थ्य एवं निर्णय हम सबको मिले…. ट
सोर्स- व्हाट्सअप विश्वविद्यालय