कंवल भारती
Kanwal Bharti : वर्ष 2000, 3 जून का ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’. बेहमई कांड पर खबर थी–“अपर कास्ट पीपुल वांट टू टेक रिवेंज आन दलिट्स” (उच्च जातियों के लोग दलितों से बदला लेना चाहते हैं). इस खबर में कहा गया था– सवर्ण हिन्दू सिर्फ बदला चाहते हैं, और कुछ नहीं. इस खबर की रिपोर्टिंग हैदर नकवी ने की थी. एक ग्रामीण ने कहा था, ‘फूलन ने 21 को मारा था, अब हम 25 को मरेंगे’. एक ठाकुर महिला ने कहा था– ‘हाँ, बेहमई उबल रहा है. बच्चे बड़े हो गये हैं. वे किसी के बश में नहीं हैं. अगर अब वे बन्दूक से इन्साफ चाहते हैं, तो इसमें गलत क्या है?’
मैं उन दिनों “माझी जनता” का संपादक था. मैंने इस खबर पर अपने सम्पादकीय में एक लम्बी टिप्पणी की थी. वह पूरी टिप्पणी तो नहीं, पर उसका एक अंश यहाँ दे रहा हूँ. मैंने लिखा था–“आज फूलन देवी भले ही सांसद हैं, पर उनके चेहरे पर ठाकुरों के आतंक का खौफ आज भी साफ़ देखा जा सकता है. उसकी मुस्कराहट के पीछे उस दर्द की रेखाएं साफ नजर आती हैं. फूलन देवी की अस्मिता और जवानी को लील लेने वाले उन ठाकुरों की औलादें आज इसलिए उबल रही हैं, क्योंकि उनकी माँओं ने उन्हें यह सिखा कर बड़ा किया है कि उनके पिताओं की हत्याएं एक नीच जाति की स्त्री फूलन ने की हैं, जिसकी कोई इज्जत नहीं होती है. बेहमई की इन ठाकुर महिलाओं ने अपनी औलादों को यह नहीं बताया कि उनके पिताओं ने कैसे-कैसे जुल्म फूलन पर ढाये थे, किस कदर उसको नंगा करके सरेआम बेइज्जत किया गया था. वह रो रही थी, इज्जत की भीख मांग रही थी, पर हरामखोर ठाकुरों के दिल नहीं पसीजे थे”.
काश, बेहमई की ठाकुर महिलाओं ने स्त्री के पक्ष में अपनी संतानों को स्त्री की इज्जत करना सिखाया होता!
दलित चिंतक और साहित्यकार कंवल भारती के फेसबुक वॉल से.
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