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करण थापर के साथ नरेन्द्र मोदी का ऐतिहासिक इंटरव्यू और उसके बाद

करण थापर की किताब का कवर

एएनआई की संपादक स्मिता प्रकाश के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कथित इंटरव्यू और उसके लगभग सभी अखबारों में छपने के बाद करण थापर द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इंटरव्यू की चर्चा भी होनी ही चाहिए। हालांकि, यह चर्चा पहले कई बार हुई है और आगे भी होगी। इस मौके पर मैं करण थापर की किताब, “डेविल्स एडवोकेट – दि अनटोल्ड स्टोरी” से इस बारे में करण थापर की बात पेश कर रहा हूं। इस किताब में यह 17वां या अंतिम अध्याय है और पृष्ठ संख्या 190 से शुरू होकर 204 पर खत्म हुआ है। इस अध्याय का नाम है, “व्हाई मोदी वाक्ड आउट एंड बीजेपी शन्स मी” [मोदी क्यों उठकर चले गए और भाजपा (वाले) मुझसे क्यों बचते हैं]। 15 पन्ने की पोस्ट बहुत लंबी हो जाएगी इसलिए मैंने इसके खास अंश ही अनुवाद किए हैं और कुछेक वाक्य को ही छोटा किया है। फिर भी पोस्ट बहुत लंबी है। इसे दो किस्त में किया जा सकता था पर मैंने एक बार में अनुवाद कर दिया तो आप पढ़ भी सकते हैं। चाहें तो ब्रेक लेकर दो बार में पढ़िए।

अध्याय की शुरुआत होती है, “यह कोई राज की बात नहीं है कि नरेन्द्र मोदी सरकार की राय मेरे बारे में बहुत अच्छी नहीं है। इसमें कोई शक नहीं है कि कुछ मंत्री हैं जिनसे मैं मित्रवत हूं – अरुण जेटली इसके मुख्य उदाहरण हैं – पर ज्यादातर जिनके साथ मेरे बड़े अच्छे संबंध थे श्री मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक साल के अंदर मुझसे बचने के बहाने ढूंढ़ने लगे हैं। रवि शंकर प्रसाद, प्रकाश जावेडकर और एम वेंकैया नायडू जैसे जो लोग विपक्ष के नेता के रूप में और पहले साल के दौरान या 2014 में और कुछ बाद तक मुझे खुशी-खुशी इंटरव्यू देते थे, ने अचानक अपने दरवाजे बंद कर दिए। निर्मला सीतारमन जैसी कुछ ने तो आग्रह स्वीकार करने और रिकॉर्डिंग की तारीख तय करने के बाद अंतिम समय में बिना कोई स्पष्टीकरण दिए, मुकर जाने का काम भी किया है।

मुझे पसंद नहीं किया जाता है यह बात पहली बार तब साफ हुई जब भाजपा प्रवक्ता मेरे टीवी कार्यक्रमों में आने का निमंत्रण स्वीकार करने से मना करने लगे। शुरू में मैंने समझा कि वे व्यस्त होंगे। हालांकि, जब यह दोहराया जाने लगा तो मैंने संबित पात्रा से पूछा कि कोई समस्या है क्या? दबी जुबान में और ऐसे ढंग से जिससे लगा कि वे शर्मिन्दगी महसूस कर रहे थे, उन्होंने पूछा कि मैं उनके जवाब को सार्वजनिक तो नहीं कर दूंगा। मेरे आवश्यक आश्वासन देने पर उन्होंने कहा कि भाजपा के सभी प्रवक्ताओं से कहा गया था कि वे मेरे शो में न आएं। इसके बाद मंत्रियों का नंबर आया। जो लोग हमेशा चाहते थे कि उनका इंटरव्यू किया जाए और जो चुनौतीपूर्ण चर्चा का आनंद लेते थे, वे ऐसे टेलीफोन नंबर में बदल गए जो फोन करने पर जवाब नहीं देते थे। उनके सचिवों के पास एक ही जवाब होता था, “सर माफी मांग रहे हैं। वे व्यस्त हैं”।

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प्रकाश जावेडकर एकमात्र व्यक्ति रहे जिसे मैं अपने शो में आने के लिए तैयार कर पाया। अपनी पार्टी के प्रवक्ताओं और मंत्रिमंडल के सहयोगियों के ना कहने या जवाब नहीं देने की आदत बना लेने के बाद भी वे ऐसा करते रहे। आखिरकार, एक दिन उन्होंने दोबारा विचार किया। जब उन्होंने फोन किया और कहा, “मेरी पार्टी आपसे क्यूं नाराज है?” क्या हुआ करण? मुझसे कहा गया है कि मैं आपको इंटरव्यू नहीं दूं”। इससे मैं समझ गया। यह पहला मौका था जब मुझे औपचारिक तौर पर बताया गया कि भाजपा को मुझसे दिक्कत है। जावेडकर ने मुझसे इसे गोपनीय रखने की कसम भी नहीं ली। उल्टे वे इस निर्देश से चकित लगे कि मेरा बायकाट किया जाना है। उन्होंने स्थिति से निपटने की सलाह देने के लिए फोन किया था। उन्होंने कहा था, आप अध्यक्ष जी से मिलें और इसको सॉर्ट आउट करें।

मैं अरुण जेटली को जानता हूं इसलिए मैंने सबसे पहले उन्हीं से बात की। मैंने उनसे वित्त मंत्रालय में मिलना तय किया। वहां उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि कोई समस्या नहीं थी। उन्होंने कहा कि मैं इसकी कल्पना कर रहा था। उन्होंने कहा कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। मुझे लगता है कि अरुण सिर्फ भद्रता दिखा रहे थे क्योंकि बायकाट जारी रहा। इसलिए मैंने फिर संपर्क किया। इस बार फोन पर। अब उन्होंने समस्या होने से इनकार करना बंद कर दिया। इसकी बजाय कहा कि यह खत्म हो जाएगा। …. इसके बावजूद अगर कोई शक रह गया था तो इसे आखिरकार भाजपा महासचिव राम माधव ने दूर कर दिया। …. एक इंटरव्यू की रिकॉर्डिंग के बाद उन्होंने कहा, …. वे (मेरे सहकर्मी) नहीं मानते हैं कि मुझे यह इंटरव्यू देना चाहिए था पर मैं नहीं मानता कि हमें लोगों का बायकाट करना चाहिए।

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इसके बाद मैंने अमित शाह से मिलने का निर्णय किया। …… मेरी बातें सुनने के बाद उन्होंने मामले को देखने के बाद 24 घंटे के अंदर फोन करने का आश्वासन दिया। उनका फोन नहीं आया। मेरी चिट्ठियों का जवाब नहीं आया। मैंने फोन पर संदेश छोड़े, संभवतः 50 बार, पर कोई जवाब नहीं मिला। ……. मैंने तय किया कि संभवतः यह सीधे श्री मोदी से बात करने का समय था। मैंने इस बारे में अजीत डोभाल और नृपेंद्र मिश्रा से बात की। …. नृपेन्द्र मिश्रा ने फोन करके बताया कि उनकी मोदी से बात हुई और वे नहीं समझते कि मिलने से कोई फायदा होगा। मिश्रा ने कहा कि संभवतः अमित शाह ने इसीलिए फोन नहीं किया। उन्हें भी ऐसा ही लगा होगा। …….

मुझे मोदी की नाराजगी का कारण नहीं समझ में आया। ….. अगर मेरी शंका सही है तो शुरुआत मेरे कॉलम से हुई होगी। जब मैंने लिखा था, “गो मिस्टर मोदी एंड गो नाऊ” (मिस्टर मोदी जाइए और अभी जाइए)। इसके बाद उनका आलेख है। फिर उन्होंने बताया है कि क्या क्यों लिखा था और फिर लिखते हैं, “आज जब मैंने 17 साल पहले जो लिखा था उसे पढ़ा तो उसके बाद जो कुछ हुआ है उसके आलोक में मैं अब समझ सकता हूं कि क्यों यह बुरा लगा होगा। मैं बेहद सटीक और आलोचनात्मक था। स्पष्ट रूप से मैंने वहीं हमला किया था जहां सबसे ज्यादा तकलीफ होने की संभावना थी। इसके पांच साल बाद 2007 में नरेन्द्र मोदी के साथ मेरा इंटरव्यू हुआ और अगर मुझे ठीक याद है तो मैंने अरुण जेटली से सहायता मांगी थी और निश्चित रूप से उनके हस्तक्षेप से ही गुजरात के मुख्यमंत्री राजी हुए होंगे।

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यह इंटरव्यू अहमदाबाद में अक्तूबर महीने में दोपहर बाद होना था और मैं सुबह की फ्लाइट से वहां पहुंच गया था। ….. मैं कार में बैठा ही था और हमलोग हवाई अड्डा परिसर में ही थे कि मेरा फोन बजा। “करण जी पहुंच गए?” ये नरेन्द्र मोदी थे। मेरा स्वागत करने के लिए फोन किया था। यह इस बात का पहला संकेत था कि मीडिया को हैंडल करने के मामले में वे कितने सतर्क थे। अपना इंटरव्यू तो चार बजे है लेकिन थोड़ा पहले आना, गप-शप करेंगे। इन सब बातों से मुझे यह आश्वासन मिला कि नरेन्द्र मोदी ने या तो 2002 में मेरा लिखा कॉलम नहीं पढ़ा है या भूल गए हैं। उन्होंने गर्मजोशी से मेरा अभिवादन किया और ऐसे बातें कीं जैसे मैं उनका पुराना मित्र होऊं। हमलोगों ने ऐसे किसी भी विषय पर चर्चा नहीं की जिसे इंटरव्यू में कवर किए जाने की संभावना थी। …….

आधे घंटे के बाद हम कैमरे के सामने थे ….. मुझे आश्चर्य इस बात पर हुआ कि उन्होंने अंग्रेजी में जवाब देने का निर्णय किया। आज भले ही उनकी अंग्रेजी लगभग अच्छी है, 2007 में ऐसा नहीं था। इसके बाद इंटरव्यू की चर्चा करते हुए करण थापर ने लिखा है। “…. इसलिए मैंने उनसे उस बारे में पूछना शुरू किया ……. क्या मैं आपको बता सकता हूं कि सितंबर 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह गुजरात सरकार में भरोसा खो चुकी है? अप्रैल 2004 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने खुली अदालत में कहा था कि आप आधुनिक समय के नीरो हैं जो असहाय बच्चों औऱ महिलाओं को जलाए जाते समय दूसरी तरफ देखने लगते हैं। लगता है कि सुप्रीम कोर्ट को आपके दिक्कत है।” इसपर नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि अगर ऐसा कुछ लिखित में हो तो मैं सब कुछ जानकर खुश होऊंगा। इसपर थापर ने कहा कि, यह लिखित में नहीं है। आप सही हैं पर यह टिप्पणी (ऑबजरवेशन) है। मोदी – अगर यह फैसले में है तो मैं आप को जवाब देने में खुशी महसूस करूंगा। थापर – पर क्या आप यह कहना चाहते हैं कि अदालत में मुख्य न्यायाधीश की आलोचना का कोई मतलब नहीं है।

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इस विषय पर थोड़ी बात-चीत के विवरण के बाद थापर ने लिखा है, …. उस समय मुझे पता नहीं था कि आधुनिक समय के नीरो वाली टिप्पणी जिसका मैंने उल्लेख किया था वह मौखिक नहीं है बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए औपचारिक लिखित फैसले का भाग है। तीन मिनट के उस इंटरव्यू को देखने के बाद तीस्ता सेतलवाड ने मुझे विवरण दिया। …… अफसोस उस दिन मैं इससे वाकिफ नहीं था इसलिए मेरा सवाल जैसा हो सकता था उससे कमजोर था। पर जो मैंने पूछा वह भी उन्हें चिढ़ाने के लिए पर्याप्त था। हालांकि दो-तीन मिनट की बातचीत के बाद वे उठ गए। …. उनके शब्द थे, मुझे आराम करना है। मुझे पानी चाहिए और फिर माइक्रोफोन निकालने लगे।

….. इसके बावजूद मोदी ने कोई नाराजगी (नैस्टीनेस गंदगी, असल में अनुचित व्यवहार) नहीं दिखाई। आगे का विवरण है। अगले दिन सीएनएन-आईबीएन ने तीन मिनट के इस टेप को बार-बार दिखाया जिसमें वे कहते हैं, अपनी दोस्ती बनी रहे। बस। मैं खुश रहूंगा। आप यहां आए। मैं खुश हूं और आपका शुक्रगुजार हूं। मैं यह इंटरव्यू नहीं कर सकता हूं …. आपके आईडियाज हैं, आप बोलते रहिए, आप करते रहिए … देखो मैं दोस्ताना संबंध बनाना चाहता हूं। ….. गड़बड़ यह है कि इसके बाद मैं उनके साथ कम से कम एक घंटा रहा। वे इंटरव्यू करने के लिए तैयार नहीं हुए। यही कहते रहे कि उनका मूड बदल गया है। … फिर कभी इंटरव्यू करेंगे …. दोस्ती बनी रहे। जिसे बार-बार दिखाया गया। … हमलोग हाथ मिलाकर विदा हुए।

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अगले इतवार को जब चैनल ने इंटरव्यू जारी किया तो यह तत्काल सुर्खियों में आ गया जिसका अनुमान मुझे था। यह हरेक बुलेटिन में था। मोदी का वॉक आउट करना बड़ी खबर थी और चूंकि यह गुजरात चुनाव अभियान के मध्य में हुआ इसलिए कांग्रेस पार्टी ने इसका खूब लाभ उठाया। सोमवार को दोपहर में मोदी ने फोन किया। मेरे कंधे पर बंदूक रखके आप गोली मार रहे हो। मैंने कहा, मैं भी यही समझ रहा था इसीलिए मेरा मानना था कि उन्हें उठकर चले जाने की बजाय इंटरव्यू पूरा करना चाहिए था। इसपर मोदी हंसे थे और उस समय जो कहा उसे मैं कभी नहीं भूलूंगा। करण भाई, आई लव यू। जब मैं दिल्ली आउंगा भोजन करेंगे। …. सच यह है कि उसके बाद से मेरी मोदी से मुलाकात नहीं हुई है।

थापर ने लिखा है कि इस इंटरव्यू के बाद 10 वर्षों तक भाजपा से मेरे रिश्ते किसी भी रूप में प्रभावित नहीं हुए। ….. और यह 2016 के शुरुआत तक रहा। इसलिए शुरू में मुझे बात समझ में नहीं आई और समझने में समय लगा। …. फिर 18 अक्तूबर 2017 को जाने-माने राजनयिक, लेखक और राजनीतिज्ञ पवन वर्मा ने मुझे सबूत दिया। उन्होंने जो कहा उससे उस छवि की पुष्टि हुई जो नृपेन्द्र मिश्र से बात करके बनी थी। पवन ने जो कहानी बताई वह यकीन करने लायक है। मेरे ऑफिस में बैठे हुए उनकी आंख नरेन्द्र मोदी की एक तस्वीर पर पड़ी। यह प्रधानमंत्रियों का एक समूह है जिनका मैंने इंटरव्यू किया है हालांकि इनमें मोदी की तस्वीर टेलीविजन स्क्रीन से ली हुई है और बिल्कुल उस क्षण की है जब वे माइक निकालना शुरू करते हैं और इंटरव्यू खत्म हो जाता है। सीएनएन-आईबीएन का कैप्शन है – जो स्क्रीन पर पढ़ा जा सकता था, फोटो का भाग है। इसमें लिखा है, ‘कांट डू दिस इंटरव्यू’ (यह इंटरव्यू नहीं कर सकता)।

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पवन ने अचानक पूछा, क्या आप जानते हैं कि प्रशांत किशोर ने उस इंटरव्यू के बारे में मुझसे क्या कहा? उन्होंने कहा कि जब वे मोदी को 2014 के चुनावों के लिए तैयार कर रहे थे तो इसे उन्हें तीस बार दिखाया। उनकी टीम ने आपके इंटरव्यू का उपयोग मोदी को यह बताने के लिए किया कि कैस मुश्किल सवालों का जवाब दिया जाता है या खराब, मुश्किल क्षणों को संभाला जाता है। इसके बाद जो हुआ वह और भी चौंकाने वाला था क्योंकि पवन ने प्रशांत किशोर से अपनी बातचीत का विवरण दिया। मोदी ने प्रशांत से कहा कि इंटरव्यू के बाद उन्होंने जानबूझकर पूरे एक घंटे तक मुझे रोके रखा ताकि मैं इस विश्वास के साथ निकलूं कि उनकी ओर से कोई गलत भावना नहीं है। इसलिए चाय की प्याली, मिठाई, ढोकले सब मुझे निरस्त्र करने की रणनीति के भाग थे। मैंने जब पवन को बताया कि मोदी बेहद मित्रवत थे और किसी भी रूप में इंटरव्यू में जो हुआ उससे परेशान नहीं लगे तो पवन ने कहा कि वह सोचा समझा था। यह एक सोची हुई रणनीति का भाग था।

पवन ने आगे पूछा, क्या आप कुछ और जानते हैं? फिर कहा, मोदी ने प्रशांत से कहा कि वे आपको कभी माफ नहीं करेंगे और उन्हें जब भी मौका मिलेगा वे बदला लेंगे। यह एक ऐसी बात है जिसे प्रशांत ने दो-तीन बार दोहराया। यह मोदी द्वारा किसी खास मौके पर किया गया कमेंट भर नहीं था। प्रशांत को यकीन था कि यह मोदी का इरादा था और वे तब तक नहीं मानेंगे जब तक आपसे हिसाब बराबर नहीं कर लेते हैं। मेरे पास पवन पर यकीन नहीं करने का कोई कारण नहीं है। मुझे गलत जानकारी देने से उन्हें कोई फायदा नहीं होने वाला है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि उन्होंने जो कहा उससे साफ होता है कि 2016 के आरंभ से भाजपा का मेरे प्रति व्यवहार क्यों बदला। ……. मोदी ने मुझसे मिलने और मामला निपटाने से मना कर दिया।

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वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की प्रस्तुति।

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