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सुख-दुख

मैमेल, पक्षी और रेप्लटाइल की तुलना में इंसेक्ट आठ गुना ज्यादा तेजी से विलुप्त हो रहे हैं!

कबीर संजय-

पुरानी कहावत है, प्रकृति में अनश्वर कुछ भी नहीं। इवोल्यूशन और एक्सटिंशन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। कुछ प्रजातियां विकसित होती हैं तो समय के साथ कुछ का लोप हो जाता है। लेकिन, महत्वपूर्ण बात यह है कि हर प्रजाति कुदरत में एक खास किस्म की भूमिका अदा करती है।

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जब उस प्रजाति का प्राकृतिक तरीके से धीरे-धीरे यानी लाखों-हजारों सालों में लोप होता है तो कुदरत उसके काम को धीरे-धीरे किसी और को सौंपने लगती है। उस खास प्रजाति के विलोपन का ज्यादा असर नहीं पड़ता है और कुदरत के कारोबार चलते रहते हैं।

लेकिन, जब प्रजातियों के विलोप होने की यह प्रक्रिया बहुत तेज हो जाती है तो प्रकृति के सारे कारोबार बिगड़ जाते हैं। उसका चक्र प्रभावित हो जाता है। इंसानों के अलावा बाकी प्रजातियों के साथ भी फिलहाल यही हो रहा है। प्रकृति को अपने हिसाब से निर्धारित करने की स्थिति में मनुष्य के आने के साथ ही अन्य प्रजातियों के विलुप्त होने की प्रक्रिया बेहद तेज हो गई है। इसे सामान्य से 300 से 1000 गुना तक तेज माना जा रहा है।

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प्रजातियों के विलुप्त होने की यह गति इतनी ज्यादा तेज है कि प्रकृति खुद इसका संतुलन नहीं बना पा रही है। हाल ही में द गार्जियन की एक खबर इसी चिंताजनक स्थिति की ओर संकेत करती है। अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक इंसेक्ट यानी कीटों की आबादी पर भारी संकट छाया हुआ है। कीटों की चालीस फीसदी तक आबादी पर तबाह होने का खतरा है। मैमेल, पक्षी और रेप्लटाइल की तुलना में इंसेक्ट आठ गुना ज्यादा तेजी से विलुप्त हो रहे हैं।

पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, वातावरण में रसायनों की बढ़ोतरी आदि ऐसे कारण है जो इनकी जान ले रहे हैं। अलग-अलग इंसेक्ट पौधों में परागण से लेकर तमाम ऐसे काम करते हैं, जिनके बिना पृथ्वी पर मानव या अन्य प्रजातियों के अस्तित्व के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है। बहुत सारे पक्षियों का वे भोजन भी हैं। उनके समाप्त होने के बाद उन पक्षियों का जीवन भी समाप्त हो जाएगा। निसंदेह कुछ कीट इंसानों के लिए हानिकारक भी हैं, लेकिन पारिस्थितिक तंत्र तो ऐसे ही बनता है।

इंसेक्ट यानी कीट बहुत छोटे होते हैं। लेकिन, हमारे ईकोसिस्टम में उनका रोल किसी सुपरमैन या स्पाइडरमैन से कम नहीं है।जरूरत इस कीट जीवन को ज्यादा से ज्यादा जानने-समझने की है।

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