ये स्तब्ध और रोंगटे खड़े कर देने वाली खबर है. मजीठिया वेज बोर्ड न दिए जाने, मामले को कोर्ट में लटकाए रखने और दैनिक जागरण प्रबंधन की प्रताड़ना से त्रस्त एक मीडियाकर्मी का जान दे देना दरअसल दिखाता है कि अब यह पूरी व्यवस्था आम जन तो छोड़िए, मीडिया कर्मियों तक के लिए दम घोंटू गैस चैंबर में तब्दील हो चुका है. किसे पड़ी है दैनिक जागरण के उन सैकड़ों लोगों की सुध लेने की जो महीनों पहले ही बेलगाम दैनिक जागरण प्रबंधन द्वारा बर्खास्त किए जा चुके हैं. ये सैकड़ों लोग कई महीनों से बिना सेलरी सड़क पर हैं और अदालतों से लेकर सरकारों तक के चक्कर काट रहे हैं.
इसी तरह दर्जनों लोग दैनिक जागरण आफिस के अंदर काम तो कर रहे हैं पर मजीठिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केस वापस न लेने पर तबादला किए जाने के दबाव से जूझ रहे हैं. दैनिक जागरण के मालिक सुप्रीम कोर्ट से लेकर संविधान, कानून तक की ऐसी तैसी किए पड़े हैं. नरेंद्र मोदी जी की सरकार का हाथ जब इनकी पीठ पर हो तो इनके लिए कानून व सिस्टम के क्या मायने. क्रूर सिस्टम के हाथों तिल तिल बेदम कर मारे गए अतुल सक्सेना नामक इस मीडियाकर्मी के खून के छींटे दैनिक जागरण के मालिकों के माथे से लेकर सुप्रीम कोर्ट के न्याय के तराजू और नरेंद्र मोदी के अच्छे दिनों के नारे तक पर पड़ेंगे. ये दाग जल्द धुलेगा नहीं. ये खून व्यर्थ नहीं जाना चाहिए.
देश भर के सैकड़ों आम मीडियाकर्मी इस हत्या को देख सुन महसूस कर रहे हैं. इस मसले पर कोई चैनल न तो एक लाइन खबर दिखाएगा और न कोई अखबार सच्चाई छापेगा. बड़े लोग इस हत्या को भी मैनेज करने में जुट गए हैं. दो दशक से ज्यादा समय से दैनिक जागरण के लुधियाना आफिस के पीटीएस डिपार्टमेंट में काम करने वाले अतुल सक्सेना का जो हश्र हुआ, वही हश्र हमारा आपका भी होगा, अगर एकजुट न हुए, अगर लड़ने के लिए आगे न आए. अलग थलग रहकर हम सब एक एक कर मारे जाएंगे. वक्त चुप्पी तोड़ने का है दोस्तों. इन हत्यारे मीडिया मालिकों, खूनी सिस्टम और ढपोरशंखी न्याय प्रणाली से दो-दो हाथ करने का वक्त आ गया है.
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.
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