सक्रिय पत्रकारिता में रहते हुए यूं तो कई यादगार खबरें की, इन खबरों से तमाम पीड़ितों को इंसाफ भी मिला और गुनाहगारों को सजा भी. यकीन मानिए जब ऐसी खबरें अपने मुकाम तक पहुंचती है तो एक पत्रकार को भी वैसे ही सुख की अनुभूति होती है जैसे एक पीड़ित को इंसाफ मिलने पर. ऐसी ही थी यूपी लोकसेवा आयोग के भ्रष्टाचार की खबर. खुद भी प्रतियोगी छात्र रहा हूं. सिविल की तैयारियां की है. इसीलिए एक सामान्य परिवार के बेरोजगार का दर्द जानता हूं. उसकी आंखों में पलने वाले सपनों और माता-पिता, रिश्तेदारों की उम्मीदों का बोझ महसूस कर सकता हूं.
मैंने देखा है कि कैसे एक वक्त की रोटी का जुगाड़ ना कर पाने वाले मां बाप भी किस तरह बच्चों को अफसर बनाने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देते हैं. ऐसे ही कुछ बच्चे आपको इलाहाबाद में सीढियों के नीचे बने छोटे छोटे कमरों में पढते हुए मिल जाएंगे. इन बच्चों की पीड़ा दिखती है मुझे. इसीलिए अंग्रेजों के जमाने में बनी ख्यातिलब्ध संस्था यूपी लोकसेवा आयोग को भ्रष्टाचार का कारखाना बनते देखा नहीं गया. सिलसिला शुरू हुआ आयोग के चेयरमैन अनिल यादव की नाकाबिलियत उजागर करने से और जा पहुंचा भर्तियों में साक्षात्कार के नाम पर होने वाले खेल के खुलासे तक.
इलाहाबाद में छात्र आंदोलनरत थे. जगह जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. इन सबके बीच भ्रष्टाचार के आरोपी अड़ियल चेयरमैन की अगुवाई में एक बार फिर पीसीएस प्री की परीक्षाएँ शुरू हो चुकी थीं. इसी दौरान एक दिन देर रात एक प्रतियोगी छात्र का फोन आया. उसने जो जानकारी दी वो हैरान करने वाली थी. उसके मुताबिक कल सुबह होने वाली पीसीएस की परीक्षा का पेपर बाजार में आ चुका था. पैसे लेकर व्हाट्सऐप पर भेजा जा रहा था. हम और वो छात्र सक्रिय हुए तो कुछ ही देर में ये पेपर हम दोनों के व्हाट्सऐप पर भी था.
खबर चलाने में एक बड़ा संकट था. संकट इस बात का कि क्या गारंटी है कि पेपर सही है या गलत. खबर चला दी जाए और व्हाट्सऐप पर आया पेपर सही ना निकले तो अनावश्यक भ्रम फैलेगा. लिहाजा तय किया गया कि इम्तेहान शुरू होते ही पेपर की जांच कराई जाए. मैने रात भर जागते हुए सुबह होने का इंतजार किया. ये एक बड़ा मामला था लिहाजा आंखों से नींद गायब थी. सुबह होते ही मैने व्हाट्सऐप पर आया पेपर तत्कालीन डीजीपी श्री एके जैन और तत्कालीन एसटीएफ आईजी श्री सुजीत पाण्डेय को भेज दिया. इस अनुरोध के साथ कि कृपया इस पेपर की जांच अपने स्तर से कराएं.
परीक्षा शुरू हुई और पेपर मिलान के बाद थोड़ी ही देर में ये साफ हो गया कि पेपर लीक हो चुका है. प्रशासन से पुष्टि होते ही मैंने आईबीएन7 पर ये खबर ब्रेक कर दी. दिल्ली के मुखर्जी नगर से लेकर, लखनऊ के अलीगंज और इलाहाबाद के तमाम हास्टलों से हमने इस खबर पर छात्रों के साथ लाइव शो किए. पर हद तो तब हुई जब ये सब करने के बावजूद चैयरमैन अनिल यादव ये मानने को तैयार नहीं थे कि पेपर लीक हुआ है. ये भी हो सकता है कि खुद इस खेल में शामिल होने का दंभ उनको ऐसा करने से रोक रहा था.
प्रशासन की रिपोर्ट और चौतरफा दबाव के बाद लोकसेवा आयोग को ये परीक्षा रद्द करनी पड़ी. बाद में अदालत ने अनिल यादव को बर्खास्त भी कर दिया. बाद में इस ख़बर के बदले अनिल यादव की तरफ से दर्जनों नोटिसें और कुछ मुकदमे मिले. पर इन बातों से तो कभी कोई दिक़्क़त रही ही नहीं. अब जबकि योगी जी अगुवाई में सरकार ने यूपी लोकसेवा आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच कराने का ऐलान किया है तब मैं बधाई देना चाहूंगा उन तमाम छात्रों को जो इंसाफ के लिए लड़ते रहे, पिटते रहे और कई तो जेल भी जाते रहे. अनिल यादव की अगुवाई में आयोग ने तमाम मेधावी बच्चों का हक लूटा है लेकिन अब वक्त आ गया है अनिल यादव को अपने कुकर्मों की सजा भुगतने का.
शलभ मणि त्रिपाठी
स्वतंत्र पत्रकार
प्रदेश प्रवक्ता, भारतीय जनता पार्टी
लखनऊ
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