नेशनल दुनिया जयपुर के पूर्व चीफ रिपोर्टर राकेश कुमार शर्मा ने मालिक शलभ भदौरिया को लिखा लंबा-चौड़ा पत्र

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नेशनल दुनिया, जयपुर के पूर्व चीफ रिपोर्टर राकेश कुमार शर्मा ने अखबार के मालिक और प्रधान संपादक शैलेन्द्र भदौरिया को लंबा चौड़ा पत्र लिखकर अखबार के अंदरखाने चल रहे करप्शन और गड़बड़ियों का खुलासा किया है. साथ ही उन्होंने संस्थान से इस्तीफा देने की घोषणा करते हुए बकाया दिलाने की मांग की है. उन्होंने पत्र में सब्जेक्ट के रूप में लिखा है- ”नेशनल दुनिया जयपुर संस्करण के संपादक के संरक्षण में डरा-धमकाकर हो रही उगाही और भ्रष्ट कार्यशैली के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट, साथ ही एक महीने के नोटिस पूरा होने के बाद संस्थान को छोडऩे एवं मेरे देय वेतन-भत्ते दिलवाने के बाबत।”

इस पत्र के शुरुआत में कुछ पैराग्राफ में वे लिखते हैं: ”अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की ऐतिहासिक तिथि के मौके पर 9 अगस्त, 2013 को जयपुर में नेशनल दुनिया संस्करण की शुरुआत की गई। तब विद्याश्रम स्कूल के सभागार में भाजपा के वरिष्ठ नेता और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुरली मनोहर जोशी, आपके (श्री शैलेन्द्र भदौरिया) और आपके ससुर विधायक श्री सलिल विश्नोई (कानपुर से भाजपा से चार बार विधायक) समेत अन्य वक्ताओं ने 9 अगस्त की ऐतिहासिक तिथि को याद करते हुए राजस्थान की धरा से भ्रष्टाचार को उखाडऩे तथा जनता की आवाज बनकर उनके साथ हमेशा खड़े रहने का वादा किया। इससे लोगों में आस बंधी थी कि यह समाचार पत्र जनता की आवाज बनेगा और जन मुद्दों को सरकार के सामने लाएगा। लेकिन जब तक दिल्ली की टीम जयपुर में रही, तब तक अखबार इस लाइन पर चला और जनता व मीडिया जगत में अपनी पहचान भी बनाई, पर जैसे ही आपकी निगाहें व निगरानी हटी, वैसे ही इस अखबार की साख के साथ ही प्रसार सं या भी औंधे मुंह गिरती गई और आज अखबार क्या स्थिति में है, यह हर कोई जानता है।  ढूंढते रह जाओ की स्थिति तक पहुंच चुके इस अखबार की ऐसी दुर्गति क्यों हुई और क्यों बाजार में इसकी साख गिरकर सड़क तक आ गई, इसके बारे में 2 दिसंबर, 2014 को आपको मेरे द्वारा इस्तीफे के नोटिस संबंधित ई-मेल और रजिस्टर्ड डाक से पत्र भेजकर भी अवगत करा दिया था। हालांकि इस पत्र के बाद आपके द्वारा कोई रिस्पांस नहीं दिखा, जिससे लगता है कि आप भी अखबार में जो चल रहा है, उसे नियति मना चुके हैं। फिर भी पत्रकार मन नहीं मानता और न ही मैं जिस घर और कौम में पैदा हुआ है, उसे संस्कार यह कहते हैं कि सच्चाई बताने से डरो, बल्कि सच्चाई को अंजाम तक पहुंचाने की हि मत रखता हूं। सो आपको आज विस्तार से बता रहा है, फिर चाहे आप कुछ भी करें, आपका अखबार है, लेकिन किसी के साथ भ्रष्टाचार और गलत खबर छपी तो इस संस्थान से बाहर रहकर भी बर्दाश्त नहीं करुंगा और सोश्यल मीडिया व कानून के डंडे से इसका सामना करुंगा। प्रधान संपादक महोदय, अखबार में भ्रष्ट व फर्जी पत्रकारों की भर्ती और इन पर कोई नियंत्रण नहीं होने के कारण जनता की सेवा के ध्येय के लिए खोला यह अखबार अब उगाही करने का संस्थान बन गया है। जिस अखबार का संपादक ही शाम को चार-पांच बजे कार्यालय में पहुंचता है और उसका पूरा वक्त ऑफिस में कम बाहर ज्यादा बीतता हो तो वो अखबार क्या चलेगा। खुद जीएम मनीष अवस्थी भी संपादक की टाइमिंग को देख चुके हैं। वे कहते भी थे कि क्या पत्रिका में भी यही टाइमिंग रहती थी कि क्या शाम को आना और कुछ देर बैठकर गायब रहना। लेकिन जब उनको यह बताते थे कि दोपहर बारह बजे पत्रिका में पहुंच जाते थे और रात दो बजे तक जब तक अखबार नहीं छूटता था, तब तक खिसक नहीं सकते थे। लेकिन यहां कोई देखना वाला तो था नहीं। जब संपादक के ये हाल होंगे तो उनके द्वारा भर्ती किए गए चहेते फर्जी पत्रकारों की टीम भी वैसी ही निकम्मी होगी। वैसे भी इन फर्जी पत्रकारों में तीन तो ऐसे हैं, जो सिर्फ संपादक के शौक को पूरा करने के लिए उसके घर और उसके घरेलू कार्यों को पूरा करने के लिए नौकर की तरह लगे रहते हैं। अखबार और खबरों से इनका कोई वास्ता नहीं है। चौथा एक मीडिया चैनल के इशारे पर चलता है तो पांचवां सरकारी प्रेसनोट चलाकर और तबादले उद्योग में लगा रहता है। उसे अखबार व खबरों से कोई मतलब नहीं है। ऐसे भ्रष्ट माहौल के चलते ही नेशनल दुनिया को पिछले साल विधानसभा चुनाव में सीधे सरकार व भाजपा से करोड़ों रुपए का विज्ञापन दिलवाने वाले पत्रकार समेत आधा दर्जन वे रिपोर्टर अखबार छोड़ चुके हैं, जिनके दम पर ही अखबार कुछ महीने तो चला और बाजार में खड़ा भी हो सका। एक के बाद एक ऐसे पत्रकारों के छोडऩे से अखबार भी सड़क पर आ गया। दो पत्रकार तो संपादक की शौकिन मिजाजी के चलते छोड़ भागे क्योंकि वे अलवर के किसी साधु-संत के पास जाते थे। रास्ते में अपने होश खौ बैठते थे। अलवर में नेशनल दुनिया के पूर्व समूह संपादक डॉ. संजीव मिश्र भी आते थे और आज भी वे जयपुर और अलवर में जादू-टोने की जगहों पर मंडराते देखे जा सकते। वैसे भी संपादक की खबरों में हैसियत एक क्राइम रिपोर्टर से ज्यादा तक नहीं रही है। जब पत्रिका में रहते हुए इसकी पहचान प्रशासन, सरकार और राजनीतिक दलों में बिल्कुल नहीं थी। आज भी सरकार और राजनीतिक दलों से कोई काम पड़ता है तो पत्रिका के पत्रकारों का सहयोग मांगता है। पत्रिका में भी इनकी चाण्डाल चौकडी के कई सदस्य जमे हुए हैं। प्रधान संपादक महोदय, आपके भाई की शादी के कार्ड भी वहां के पत्रकारों के साथ जाकर बांटे हैं जो इसकी पहचान का परिचायक है। इनके फर्जी पत्रकार दूसरे साथियों को यह कहकर भ्रष्टाचार के लिए उकसाते हैं कि हमारे साथ रहो तो मेवा ही मेवा मिलेगा। शिकायतों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि संपादक की सीट पर हमारे बापजी बैठे हैं और मालिक को अखबार से कोई लेना-देना नहीं है। जब पत्रिका में अनुभवी संपादक इसकी कारगुजारियों को पकड़ नहीं सके तो यहां के मालिक की तो मजाल ही क्या। इनकी देखादेखी अब दूसरे साथी भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने लगे हैं। आपको भले ही यह बात गलत लगे, लेकिन आपके जयपुर में मीडिया जगत के अपने जानकार पत्रकारों के बारे में संपादक और उसकी फर्जी व लुटेरी टीम के बारे में पडताल कर सकते हैं। पूरे शहर में संपादक के संरक्षण में नेशनल दुनिया अखबार का डंका बजा रखा है, खबरों में नहीं, वसूली में। अब तो पुरस्कार भी डरा-धमकाकर लेने लगे हैं, चाहे पुरस्कार सूची में नाम हो या नहीं, लेकिन दबाव बनाकर पुरस्कार लेने पहुंच जाते हैं। तब तक कार्यक्रम में बैठते रहते हैं, जब तक उनका नाम पुकार नहीं जाए। हाल ही एक फर्जी के नाम से मीडिया जगत में मशहूर पत्रकार ने यह पुरस्कार हथिया है। आयोजकों के मना करने पर भी कार्यक्रम में पहुंच गए।”

कई पन्नों के इस पत्र में राकेश शर्मा ने कई कई कहानियां लिखी हैं, वह भी सविस्तार. इसमें कई लोगों के नाम लेकर उन पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं और उनकी पूरी पोल पट्टी खोल दी गई है. पत्र के आखिर में राकेश लिखते हैं: ”महोदय, इस पत्र के साथ ही यह भी बताना चाहता हूं कि मेरे एक महीने के नोटिस संबंधी समय पूरा हो गया है। आशा है आप मेरे इस्तीफे को स्वीकार करके मेरे संस्थान में बकाया वेतन, पीएफ राशि समेत अन्य वेतन परिलाभ का भुगतान तय समय कर देंगे। आपके संस्थान द्वारा दिए गए अखबार का आई कार्ड और मोबाइल की सिम (9166496490) एचआर सैक्शन में जमा करवा दी है। धन्यवाद”



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