लोकसभा टीवी अब पूरी तरह से ‘जोकसभा’ टीवी का रूप ले चुका है। ये चैनल अब काम के लिए कम और विवादों के लिए ज्यादा जाना जाता है। चाहे लोकसभा टीवी के पत्रकारों का शिकायती पत्र लोकसभा के महासचिव तक पहुँचने का मामला हो, या फिर पूर्व राष्ट्रपति कलाम के असामयिक निधन पर लोकसभा टीवी के सोये रहने का मामला हो। इन दिनों सोशल मीडिया और वेब मीडिया पर आलोचकों की टीआरपी में ये चैनल नंबर वन बना हुआ है।
लोकसभा टीवी को सोशल मीडिया ने ‘जोक सभा’ टीवी का दिलचस्प नाम दिया है। लोगों की हैरानी इस बात पर है कि देश के ज्वलंत मुद्दों पर क्यों लोकसभा टीवी कभी कोई कार्यक्रम नहीं बनाता है? चैनल पर पूरे वक्त सिर्फ पैनल डिस्कशन ही चलता है। इतना पैनल डिस्कशन किसी चैनल पर नहीं देखा जाता है। सामान्य तौर पर रात 8 और 9 बजे, चैनलों पर पैनल डिस्कशन के प्रोग्राम होते हैं, लेकिन लोकसभा टीवी पर आप दिन में कभी भी इस तरह के बेमतलब बहस के कार्यक्रम देख सकते हैं।
जबकि, गम्भीर मुद्दे जैसे किसानों की आत्महत्या, सीमा पार से आतंकवाद, नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, ग्रामीण पिछड़ापन जैसे अनगिनत विषयों पर बिरले ही कोई स्तरीय कार्यक्रम, रिपोर्ट या डॉक्यूमेंट्री प्रसारित होती है। सवाल ये है कि क्या सिर्फ दिन भर स्टूडियो डिबेट और पैनल डिस्कशन दिखाने के लिए ही लोकसभा टीवी को लॉन्च किया गया था?
लोकसभा टीवी के टिकर पर सिर्फ एक लाईन पूरे दिन चलती है, टिकर पर संसदीय मुद्दे, संसद में क्या हुआ, देश की बड़ी ख़बरें, संसद में पेश किये जाने वाले विधेयक इत्यादि की जानकारी चलाना भी लोकसभा टीवी के पत्रकारों को गंवारा नहीं। उन्हें तो बस मेकअप करके दिन भर स्टूडियो में अपना चेहरा चमकाने में ही आनंद आता है। शायद यही कारण है कि अपना चेहरा चमकाकर यहाँ के पत्रकारों ने कईं पुरस्कार तो जीत लिए, लेकिन अपनी लॉन्चिंग के 9 साल बाद भी लोकसभा टीवी कंटेंट के मामले में कोई उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल नहीं कर पाया है। तो क्या लोकसभा टीवी पुरस्कार हासिल करने और महज़ निजी हित साधने का जरिया बन चुका है?
गौर करने वाली बात ये है कि लोकसभा टीवी कोई फ़िल्मी चैनल ना होकर एक संसदीय चैनल है, बावजूद इसके आप इसपर बॉलीवुड की कईं मसाला फिल्मों का भी आनंद ले सकते हैं। लेकिन संसदीय मुद्दों पर डॉक्यूमेंट्री और स्तरीय प्रोग्रामों का यहाँ टोटा ही रहता है।
इस संसदीय चैनल पर सरकारी ख़ज़ाने से हर महीने करोड़ों रूपये खर्च होते हैं, लेकिन उनकी सार्थकता सवालों के घेरे में है। संसदीय चैनल होने के नाते इस चैनल से देश को काफी उम्मीदें थीं। ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि ये चैनल देश की आम जनता की आवाज़ बनेगा और सरकार और जनता के बीच पुल का काम करेगा। लेकिन ये चैनल फिलहाल तो कुछ ज्ञानी पत्रकारों के पीआर का जरिया बन गया है, जहाँ वो सांसदों और मेहमानों को बैठाकर घंटों ‘मंथन’ करते हैं। जिस तरह के कार्यक्रम इस चैनल पर प्रसारित होते हैं, उसे देखकर तो जनता की उम्मीदों और गाढ़ी कमाई पर पानी फिरता नज़र आता है।
एक टीवी पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित
gaurav gupta lstv
July 31, 2015 at 2:24 pm
आज जब सारा देश महान साहित्यकार और भारतीय आत्मा प्रेमचंद को याद कर रहा है, उनकी 135 वीं जयन्ती पर IBN7 सहित कैन न्यूज़ चैनल विशेष कार्यक्रम दिखा रहे हैं, वहीं लोकसभा टीवी पर प्रेमचन् कहीं नहीं हैं। आज के दिन भी भारत के इस महान साहित्यकार को याद करना लोकसभा टीवी को उचित नहीं लगा।